अरावली को ‘बचाने’ नहीं, ‘बेचने’ की साजिश रच रही केंद्र सरकार: अशोक गहलोत

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अरावली को ‘बचाने’ नहीं, ‘बेचने’ की साजिश रच रही केंद्र सरकार: अशोक गहलोत


जयपुर, 22 दिसंबर (हि.स.)। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार पर अरावली पर्वत श्रृंखला को संरक्षण के नाम पर खनन माफिया को सौंपने की साजिश रचने का गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि अरावली की परिभाषा बदलने और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के उस दावे कि केवल 0.19 प्रतिशत क्षेत्र में ही माइनिंग संभव होगी, को पूरी तरह भ्रामक और तथ्यों से परे बताया।

गहलोत ने कहा कि भाजपा सरकार आंकड़ों के जाल में जनता को उलझाकर असली मंशा छिपा रही है। अरावली की ‘100 मीटर’ वाली नई परिभाषा को अकेले नहीं, बल्कि दो अन्य बड़े फैसलों के साथ जोड़कर देखना चाहिए, जिससे साफ होता है कि यह पर्यावरण संरक्षण नहीं बल्कि संस्थाओं पर कब्जा कर अरावली को खनन माफिया को सौंपने की तैयारी है। गहलोत ने आरोप लगाया कि 2002 में पर्यावरण संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में गठित केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) को पांच सितंबर 2023 को एक नोटिफिकेशन के जरिए शक्तिहीन कर दिया गया। उन्होंने कहा कि पहले सीईसी के सदस्य सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी से नियुक्त होते थे, लेकिन अब सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार केंद्र सरकार के पास है, जिससे यह समिति सरकार के इशारों पर काम कर रही है।

गहलोत ने याद दिलाया कि इसी सीईसी की निष्पक्ष रिपोर्ट के आधार पर 2011 में कर्नाटक में अवैध खनन मामले में मंत्री जनार्दन रेड्डी की गिरफ्तारी हुई थी, लेकिन 12 साल बाद उसी तारीख को इस “पर्यावरण प्रहरी” को कमजोर कर दिया गया।

गहलोत ने कहा कि संरक्षित क्षेत्रों में खनन की कोशिशों का सबसे बड़ा उदाहरण सरिस्का टाइगर रिजर्व है। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्ष 2025 में राजस्थान की भाजपा सरकार ने सरिस्का के क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट की सीमाएं बदलने का प्रस्ताव तैयार किया, जिससे 50 से अधिक बंद खदानों को फिर से चालू किया जा सके।

उन्होंने बताया कि यह पूरा मामला “48 घंटे की मंजूरी” का है—24 जून को राज्य वन्यजीव बोर्ड, 25 जून को एनटीसीए और 26 जून को केंद्रीय समिति से स्वीकृति दिलाई गई। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने छह अगस्त 2025 को सख्त टिप्पणी करते हुए रोक लगाई और पूछा कि जो काम महीनों में होता है, वह 48 घंटे में कैसे हो गया।

गहलोत ने एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि थानागाजी के एक खदान मालिक ने 14 जून को प्रधानमंत्री कार्यालय को शिकायत भेजी थी कि खदानें दोबारा चालू करवाने के लिए पैसे इकट्ठा करने को कहा जा रहा है। रिपोर्ट में सीईसी के एक सदस्य के हवाले से यह भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट की डेडलाइन से पहले काम पूरा करने का दबाव है, क्योंकि इस पर मंत्री व्यक्तिगत रूप से नजर रखे हुए हैं। गहलोत ने कहा कि इन सभी तथ्यों से साफ है कि केंद्र और राजस्थान की भाजपा सरकार संरक्षित क्षेत्रों में भी सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। पहले अरावली की परिभाषा बदली गई और अब सरिस्का जैसे संरक्षित क्षेत्रों की सीमाएं बदलने का प्रयास किया जा रहा है।

उन्होंने चेतावनी दी कि राजस्थान अपनी प्राकृतिक धरोहर के साथ इस तरह का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करेगा और इस फैसले के खिलाफ हर स्तर पर आवाज उठाई जाएगी।

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हिन्दुस्थान समाचार / रोहित

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