भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा कार्यशाला आयोजित

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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान द्वारा कार्यशाला आयोजित


जोधपुर, 27 फ़रवरी (हि.स.)। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर द्वारा जोधपुर और झुंझुनू में बाजरा फसल पैटर्न, उत्पादकता, खपत और किसानों की आय पर एक ज्ञानवर्धक कार्यशाला का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला अरना झरना में थार रेगिस्तान संग्रहालय राजस्थान, मोकलावास, राजस्थान में आयोजित की गई। यह पहल भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित अल्पकालिक अनुभवजन्य अनुसंधान परियोजना 2023-24 के तहत आयोजित की गई। कार्यक्रम में विभिन्न वक्ताओं ने भाग लिया जिन्होंने बाजरा की खेती के विभिन्न पहलुओं और राजस्थान के सामाजिक-आर्थिक योगदान पर प्रकाश डालें।

भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित कार्यशाला का उद्देश्य विशेष रूप से जोधपुर और झुंझुनू जिलों में बाजरा फसल के पैटर्न, उत्पादकता, खपत और किसानों की आय की गतिशीलता का पता लगाना था। इसमें किसानों, वैज्ञानिकों, छात्रों और उद्यमियों को शामिल करने वाली प्रस्तुतियों और परस्पर संवादात्मक सत्रों के माध्यम से अनुसंधान निष्कर्षों, सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि और व्यावहारिक ज्ञान को साझा करने का प्रयास किया गया। कुलदीप कोठारी ने बाजरा के सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डाला, जबकि डॉ. विकास खंडेलवाल जैसे विशेषज्ञों ने खेती की तकनीकों और संबंधित लाभों पर चर्चा की । चर्चा में बाजरा की खपत में गिरावट, संभावित समाधान, मिट्टी परीक्षण के लाभ और किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों जैसे विषय शामिल थे, जो बाजरा खेती की व्यापक समझ प्रदान करते हैं। कार्यशाला का उद्देश्य बाजरा उत्पादन और उपभोग में मिट्टी की उर्वरता, सांस्कृतिक विरासत, रोजगार, शिक्षा और जागरूकता के महत्व पर जोर देते हुए भविष्य के अनुसंधान को प्रेरित करना है।

ग्रामीण राजस्थान में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन रूपायन संस्थान के सचिव कुलदीप कोठारी ने अरना झरना थार रेगिस्तान संग्रहालय की स्थापना के पीछे की कल्पना के लिए कोमल कोठारी को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम के प्रमुख आकर्षणों में से एक लंगा वंशानुगत समुदाय था, जिसने बाजरा पर एक संगीतमय प्रस्तुति दी, जिसमें कृषि जीवन शैली की झलकियां पेश की गईं, कि कैसे राजस्थान के लोग बाजरा को देखते हैं। भा.प्रौ.सं. जोधपुर में जैव विज्ञान एवं जैव अभियांत्रिकी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रोफेसर मिताली मुखर्जी ने शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं के लिए ऐसी कार्यशालाओं की आवश्यकता और लाभों पर जोर देते हुए प्रारंभिक वार्ता प्रस्तुत की। मौली मोंडन, रिसर्च स्कॉलर, स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप, भा.प्रौ.सं. जोधपुर ने परियोजना के उद्देश्यों, कार्यप्रणाली और निष्कर्षों को प्रस्तुत किया।

डॉ. वेंकटेश मूर्ति , सह आचार्य, स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एंड एंटरप्रेन्योरशिप, भा.प्रौ.सं. जोधपुर, ने जोधपुर और झुंझुनू के भीतर बाजरा खेती में प्रमुख मुद्दों और खेती के रुझान पर जोर दिया। कार्यक्रम में उपस्थित एक किसान गोवर्धन ने बाजार तक पहुंच हासिल करने में लागत कारकों पर ध्यान देते हुए खेत-से-बाजार रणनीतियों पर जोर दिया।

डॉ. भागीरथ चौधरी ने बाजरा की खेती के इतिहास पर एक विस्तृत नज़र डाली और बाजरा फसलों में भविष्य के अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए सुझाव दिए। डॉ. विकास खंडेलवाल, वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विश्वविद्यालय जोधपुर ने राजस्थान और सांस्कृतिक परिवेश में बाजरा के सर्वोपरि महत्व पर प्रकाश डाला, इसकी कम पानी और उर्वरक आवश्यकताओं और पश्चिमी राजस्थान में बाजरा की खेती के विशाल विस्तार पर जोर दिया।

हिन्दुस्थान समाचार/राजीव/ईश्वर /ईश्वर

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