भारत में हम गीता की शपथ लेते हैं, लेकिन गीता पढ़ाई नहीं जाती - शंकराचार्य
उदयपुर, 23 अक्टूबर (हि.स.)। काशी सुमेरू पीठ के जगदगुरु शंकराचार्य नरेन्द्रानंद सरस्वती ने कहा है कि देश में हो रहे नैतिक अवमूल्यन के लिए हमारी शिक्षा और शिक्षा पद्धति जिम्मेदार है। हम न्यायालय में सत्य बोलने के लिए गीता की शपथ तो लेते हैं, लेकिन गीता को पढ़ाया नहीं जाता। यह देश सनातन है, सनातन के संस्कार वेद-पुराण सहित प्राचीन ग्रंथों में छिपे हैं, लेकिन उनका पठन-पाठन हमारे देश के पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है। जब तक संविधान में संशोधन कर सनातन धर्मग्रंथों को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक देश अपने सनातनी सद्संस्कारों को भूलता जाएगा।
अपने दो दिवसीय प्रवास के तहत सोमवार को उदयपुर आए जगदगुरुव शंकराचार्य ने पत्रकारों से चर्चा मंे कहा कि इस देश में धर्माचार्यों ने सदैव शासकों के मार्गदर्शन और अनीतियों पर नियंत्रण का कार्य किया है और शासकों ने धर्माचार्यों के मार्गदर्शन को स्वीकार किया है, लेकिन मुगल और अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान सनातन संस्कारों को शनै-शनै क्षीण करने के प्रयास हुए। आजादी के बाद जो संविधान बना उसके नियमों ने हमारे सनातनी ग्रंथों को किनारे कर दिया। यही वजह है कि देश पर राज करने वालों का भी नैतिक पतन हो रहा है। धर्माचार्यों का कार्य हमेशा से देश के सांस्कृतिक और सामाजिक पठन-पाठन का रहा है, शासन का नहीं। उन्होंने कहा कि हर धर्म में धर्माचार्यों को महत्व दिया जाता है, लेकिन भारत में धर्माचार्यों की कौन सुनता है।
जगदगुरु शंकराचार्य ने कहा कि अभी के नेताओं का काम इटिंग-मीटिंग-चीटिंग का है। जनता के सामने संस्कारों की बात करेंगे और सिनेमा के फूहड़ प्रदर्शनों को गलत कहेंगे, लेकिन सत्ता में जाने के बाद सेंसर बोर्ड को ठीक नहीं करेंगे। यही प्रवृत्ति देश के पतन का कारण है। आज कोई भी सनातन को चुनौती दे देता है, कोई देश को ही गाली दे देता है और उसे कोई सजा नहीं होती। आज भारत में सनातन के लिए ईश निंदा जैसे कानून की आवश्यकता है, देश को गाली देने वाले को फांसी की सजा की आवश्यकता है। इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता है।
जगदगुरु शंकराचार्य ने देश की न्याय प्रणाली में भी परिवर्तन की आवश्यकता बताते हुए कहा कि पिछले 70 सालों से 300 परिवारों के ही सदस्य न्यायाधिकारी बन रहे हैं। न्यायपालिका इस बारे में कहीं चिंतित नहीं है कि 5 करोड़ लम्बित मुकदमों में न्याय दिया जाए। एक माह में निर्णय अनिवार्य किया जाए। जगदगुरु शंकराचार्य ने सवाल उठाया कि निचली अदालत फांसी की सजा सुनाती है, उसे ऊपर की अदालत आजीवन कारावास में तब्दील कर देती है और उससे ऊपर की अदालत बरी कर देती है, जबकि सबूत-साक्ष्य-अनुसंधान समान रहते हैं। इन स्थितियों में सुधार के लिए भी संविधान में सुधार की आवश्यकता है। हर विषय के 5-5 विशेषज्ञों को बिठाकर संविधान में ऐसे संशोधन पर विचार किया जाना चाहिए जिससे राष्ट्र हर क्षेत्र में सशक्त बने।
जगदगुरु शंकराचार्य ने कहा कि यही हालात देश की ब्यूरोक्रेसी का भी है। आईएएस-आईपीएस वाला एक सक्षम परिवार भी संवैधानिक नियमों के अनुसार महज जाति के आधार पर सदैव गरीब कब तक माना जाता रहेगा। इस स्थिति पर भी आज के शासकों को पुनर्विचार करना होगा।
इजराइल और हमास के युद्ध के सवाल पर जगदगुरु शंकराचार्य ने कहा कि आतंकी हमले का संरक्षण व संवर्धन कभी स्वीकार नहीं हो सकता। जो हमास का समर्थन कर रहे हैं, वे भारत की बर्बादी का दिवास्वप्न देखने वाले लोग हैं। आत्मरक्षा के लिए इजराइल ने जो किया है, कोई भी देश होता तो यही करता। उन्होंने कहा कि भारत को भी पूर्व में की गई भूलों को सुधारना होगा। आज भारत को अरुणाचल पर नहीं बल्कि कैलाश मानसरोवर पर बात करनी होगी, कश्मीर पर नहीं बल्कि सिंध पर बात करनी होगी। और इसके लिए आवश्यकता है मजबूत और स्पष्ट विचारों वाली सरकार की और ऐसी सरकार लाने की जिम्मेदारी देश की जनता और खासकर युवाओं की है।
यहां सनातनी चातुर्मास में 54 कुण्डीय मां बगलामुखी आराधना के महायज्ञ की पूर्णाहुति के निमित्त आए शंकराचार्य ने कहा कि यज्ञ कलयुग का साक्षात कल्पवृक्ष है। अनादि काल से सनातन धर्मावलम्बी धर्म, आध्यात्मिकता को बढ़ाने तथा समाज में व्याप नकारात्मक विचारों पर सकारात्मक विचारों की भूमिका को प्रबल करने के लिए यज्ञ करते आ रहे हैं। सनातन हर युग में विश्व के मानव को दिशा प्रदान करता आया है। वसुधैव कुटुम्बकम की भावना पर चलता आया है।
विजयदशमी पर शस्त्र पूजन करें सनातन धर्मावलम्बी - शंकराचार्य
-शंकराचार्य ने विजयदशमी पर संदेश देते हुए कहा कि विजयदशमी विजय के प्रतीक के रूप में हर सनातन धर्मावलम्बी मनाते रहे हैं। इसमें नीलकंठ पक्षी का दर्शन, लक्ष्मीपत्र का वितरण, राजा महाराजा शस्त्र पूजन करते थे, राष्ट्ररक्षा की शपथ लेते थे। उन्होंने एक अरब सनातन धर्मावलम्बियों को विजयदशमी पर शस्त्र पूजन करने का आह्वान करते हुए कहा कि भारत आज नपुंसक नहीं है, शक्ति सम्पन्न है। उन्होंने कहा कि विजयदशमी का पर्व सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए विश्व के लिए सुखद-मंगल-अभ्युदयकारी हो।
विजयदशमी पर महायज्ञ की पूर्णाहुति में शामिल होंगे शंकराचार्य
-काशी सुमेरू पीठ के जगदगुरु शंकराचार्य नरेन्द्रानंद सरस्वती सोमवार सुबह उदयपुर पहुंचे। उनके उदयपुर पहुंचने पर महाराणा प्रताप हवाई अड्डे पर श्रद्धालुओं ने उनकी अगवानी की और उन्हें बड़बड़ेश्वर महादेव मंदिर में चल रहे सनातनी चातुर्मास परिसर में लाया गया। सर्व समाज सनातनी चातुर्मास परिसर में निरंजनी अखाड़ा के मढ़ी मनमुकुंद दिगम्बर खुशाल भारती महाराज, 54 कुण्डीय मां बगलामुखी महायज्ञ के कोलाचार्य माई बाबा, आचार्य कालीचरण महाराज आदि ने उनकी अगवानी की व वंदन-अभिनंदन किया।
मीडिया संयोजक मनोज जोशी ने बताया कि जगदगुरु शंकराचार्य सोमवार अपराह्न 4 बजे चातुर्मास परिसर में चल रही देवी भागवत पुराण कथा में पहुंचे और भक्तों को आशीर्वचन प्रदान किया। विजयदशमी पर मंगलवार को होने वाली पूर्णाहुति में उनका सान्निध्य प्राप्त होगा। पूर्णाहुति का क्रम सुबह सवा सात बजे नियमित तय क्रम के अनुसार शुरू हो जाएगा। पूर्णाहुति के बाद वे उदयपुर से प्रस्थान कर जाएंगे।
हिन्दुस्थान समाचार/ सुनीता कौशल/ईश्वर
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