(अपडेट) प्राकृतिक ज्ञान परंपरा और आधुनिक प्रौद्योगिकी का एकीकरण समय की आवश्यकता: राज्यपाल

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(अपडेट) प्राकृतिक ज्ञान परंपरा और आधुनिक प्रौद्योगिकी का एकीकरण समय की आवश्यकता: राज्यपाल


कोशिका एवं आण्विक जीव विज्ञान में नवीनतम नवाचार पर तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू

जोधपुर, 4 दिसंबर (हि.स.)। राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान तभी पूर्णता प्राप्त करेगा जब वह भारतीय ज्ञान परम्परा और प्राचीन वैज्ञानिक अवधारणाओं के साथ समन्वित रूप से आगे बढ़े। कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान के क्षेत्र में प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक दृष्टि और आधुनिक शोध की सम्मिलित दिशा नवाचार तथा मानव कल्याण के नए आयाम प्रस्तुत कर सकती है। वह गुरुवार को मारवाड़ इंटरनेशनल सेंटर में जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग (यूजीसी-सीएस) द्वारा कोशिका एवं आण्विक जीव विज्ञान में नवीनतम नवाचार: उदित होती अंतर्दृष्टि एवं अनुप्रयोग विषय आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।

पेड़-पौधे संवेदनशील जीव हैं, वे पर्यावरणीय परिस्थितियों पर देते प्रतिक्रिया :

राज्यपाल ने कहा कि पेड़-पौधे संवेदनशील जीव हैं, वे ताप, आर्द्रता, प्रकाश, रोग तथा पर्यावरणीय परिस्थितियों के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं। पौधों में जीवन, चेतना और संवेदनाएं विद्यमान होती हैं, तथा वे विभिन्न परिस्थितियों के अनुरूप वैज्ञानिक ढंग से कार्य करते हैं। उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि वृक्ष अपनी जड़ों द्वारा जल ग्रहण करते हैं और रोग होने पर जड़ों में औषधि के प्रयोग से उपचार संभव होता है, जो उनकी संवेदनात्मक एवं जीववैज्ञानिक संरचना का स्पष्ट संकेत है। राज्यपाल ने वैदिक काल से भारत में वनस्पति विज्ञान की उन्नत परंपरा का उल्लेख करते हुए महर्षि पाराशर के ‘वृक्ष आयुर्वेद’ का संदर्भ दिया।

कोशिका झिल्ली तथा ऊर्जा निर्माण के तत्वों का वर्णन प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता :

उन्होंने कहा कि प्रोटोप्लाज्म, कोशिका झिल्ली तथा ऊर्जा निर्माण के तत्वों का वर्णन प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है, जिनकी वैज्ञानिक पुष्टि सैकड़ों वर्ष बाद आधुनिक विज्ञान ने की। यह भारतीय वैज्ञानिक विरासत के गहन अध्ययन की आवश्यकता को सिद्ध करता है। राज्यपाल ने कहा कि डीएनए, आरएनए, प्रोटीन संरचना एवं आणविक तकनीकों के वर्तमान शोध में भारतीय पारंपरिक वनस्पति व्याख्या उपयोगी आधार प्रदान कर सकती है।

अनुसंधान-आधारित शैक्षणिक ढांचा विकसित करें :

उन्होंने वैज्ञानिक समुदाय से आग्रह किया कि वे भारतीय ज्ञान परम्परा और आधुनिक तकनीक के समन्वित अध्ययन के लिए अनुसंधान-आधारित शैक्षणिक ढांचा विकसित करें। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि विश्वविद्यालय के पादप विज्ञान विभाग में प्राचीन वनस्पति शोध और आधुनिक आणविक अध्ययन का एकीकृत शोध कार्यक्रम प्रारंभ किया जाए। राज्यपाल ने पर्यावरणीय परिवर्तन, ऊर्जा संकट और जैविक विविधता संरक्षण की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि इन समस्याओं के समाधान में कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। उन्होंने वैज्ञानिकों एवं शोधकर्ताओं से आग्रह किया कि वे भविष्यगत आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए शोध के मूल्यों को समाजहित और प्रकृति संरक्षण के साथ जोड़ें।

तीन दिन तक होंगे विभिन्न सत्र

तीन दिवसीय इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कुल दस मुख्य भाषण, 24 आमंत्रित व्याख्यान, 60 मौखिक प्रस्तुतियों और 75 पोस्टर प्रस्तुतियों होंगी, जिनमें भारत और विदेश के कुल 264 वैज्ञानिक एवं शोधकर्ता हिस्सा ले रहे है। सम्मेलन तीन समानांतर सत्रों में संचालित होगा, जिनमें कोशिका एवं आण्विक जीवविज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी तथा कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी एवं बायोइनफॉर्मेटिक्स जैसे उन्नत विषयों पर चर्चा होगी। सम्मेलन के तीनों विषय क्षेत्रों में श्रेष्ठ मौखिक प्रस्तुति पुरस्कार, श्रेष्ठ पोस्टर प्रस्तुति पुरस्कार एवं यंग रिसर्चर अवॉर्ड प्रदान किए जा रहे है।

हिन्दुस्थान समाचार / सतीश

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