काजरी में कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर तीन दिवसीय कांफ्रेंस का शुभारंभ

काजरी में कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर तीन दिवसीय कांफ्रेंस का शुभारंभ
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काजरी में कृषि पारिस्थितिकी तंत्र पर तीन दिवसीय कांफ्रेंस का शुभारंभ


जोधपुर, 3 मार्च (हि.स.)। भारतीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संगठन एवं केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान जोधपुर के संयुक्त तत्वावधान में कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में सतत कृषि विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में चुनौतियां विषय पर तीन दिवसीय कान्फ्रेन्स काजरी में रविवार से आरम्भ हुई। कॉन्फ्रेंस में देश के विभिन्न राज्यों के 250 वैज्ञानिक शोधकर्ता भाग ले रहे हैं।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् नई दिल्ली के उपमहानिदेशक डॉ. एस.के. चौधरी ने वर्चुअल उद्बोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि के विकास में शुष्क क्षेत्रों, तटीय क्षेत्रों, पहाड़ी क्षेत्रों में अनेक चुनौतियां सामने आ रही है जिसका समाधान अनुसंधान एवं तकनीकी से करना होगा। उन्होंने कहा कि काजरी ने शुष्क इलाकों में रेतीले टीलों को स्थिर करने, वायु कटाव रोकने, वर्षा जल प्रबंधन, एग्रो वाल्टिक प्रणाली, सौर उपकरण, संरक्षित खेती आदि की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किया है। उन्होंने शुष्क क्षेत्रों के विकास के लिए काजरी की इन तकनीकी को उपयोगी एवं लाभकारी बताया। सतत कृषि विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इन कृषि तकनीकियों का किसानों के खेतों पर हस्तांतरण करना प्रमुख प्राथमिकता है। उन्होनें कहा कि तटीय एवं पहाड़ी क्षेत्रों की विभिन्न प्राकृतिक समस्याओं जैसे चक्रवात, लैंड स्लाइडिंग आदि को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान एवं तकनीकी विकास पर जोर दिया। तटीय क्षेत्रों के लिए मछली पालन, ईको टूरिज्म, तथा पहाड़ी क्षेत्रों के लिए जल को संग्रह करने के लिए जलकुंड आदि तकनीकों को अपनाने पर जोर दिया।

आईसीएआर के सहायक महानिदेशक डा. राजबीर सिंह ने कहा कि देश में जलवायु परिवर्तन, बढ़ता तापमान, अनिश्चित बारिश, गर्म हवा, सूखा आदि कृषि की प्रमुख समस्याएं है जो की सिंचित एवं वर्षा आधारित कृषि उत्पादन को अत्यधिक प्रभावित करती है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में बारिश कम हो रही है और पश्चिमी क्षेत्रों में बढ़ रही है। उन्होंने राजस्थान में जीरा, ईसबगोल की फसलों में जैविक, प्राकृतिक खेती करने पर बल दिया।

आईआईटी जोधपुर के निदेशक प्रो. सान्तनु चौधरी ने कहा कि कान्फ्रेन्स में इन कृषि पारिस्थितिकी तंत्रों में मनुष्य जीवन की मूलभूत समस्याओं से सम्बंधित मुद्दों पर चर्चा हो रही है तथा चुनौतियों से निपटने के लिए तकनीकी हस्तक्षेप जैसे कृत्रिम बुद्धिमता , ड्रोन तकनीकी, वाटर-एनर्जी नेक्सस आदि पर बल दिया। वीएनएमकेवी, परभनी के कुलपति प्रो. आई.एम. मिश्रा ने कहा कि सतत कृषि विकास के लिए रियल-टाइम मशीनीकरण और स्वचालन तकनीकी के प्रयोग पर बल दिया। उन्होंने काजरी की विभिन्न कृषि प्रणालियों की सराहना करते हुए देश के अन्य शुष्क क्षेत्रों के लिए भी उपयोगी बताया।

कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं काजरी निदेशक डा. ओ.पी. यादव ने अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह कॉन्फ्रेंस इन कृषि पारिस्थितिकी तंत्र की वास्तविक चुनौतियों एवं व्यवहारिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए महत्वपूर्ण पटल है। वैज्ञानिकों के विचार मंथन के दौरान जो अभिशंसाएं आयेगी उन्हें नीति निर्धारकों को प्रेषित की जायेगी। काजरी की तकनीकी शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र में लक्ष्यों को हासिल करने में सक्षम है। अजराई के सचिव डा. विपिन चौधरी ने संगोष्ठी के कार्यक्रम के बारे में विस्तार से जानकारी दी तथा अजराई की गतिविधियों पर प्रकाश डाला । कार्यक्रम का संचालन प्रधान वैज्ञानिक डा. राजवन्त कौर कालिया ने किया।

हिन्दुस्थान समाचार/रोहित/ईश्वर

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