मेवाड़: कहीं सीधा तो कहीं त्रिकोणीय मुकाबला
उदयपुर, 22 नवम्बर (हि.स.)। माना जाता रहा है कि मेवाड़ सत्ता पाने की सीढ़ी रहा है, यदि कुछ मौकों को छोड़ दें तो यह बात सही भी साबित होती रही है। लेकिन, इस बार मेवाड़ की कुछ सीटें ऐसी हैं जिन पर राजनीतिक विश्लेषकों की खास नजर है। इसका कारण यह है इन सीटों पर बागियों की मौजूदगी और वह भी सक्रिय मौजूदगी।
मेवाड़ क्षेत्र में आने वाले उदयपुर, राजसमंद और चित्तौड़ तीनों जिलों की बात करें तो उदयपुर जिले की वल्लभनगर, राजसमंद जिले की राजसमंद और नाथद्वारा तथा चित्तौड जिले की चित्तौड़ सीट को लेकर दोनों दलों में तरह-तरह के कयास लग रहे हैं। वल्लभनगर में यदि त्रिकोणीय मुकाबला है तो चित्तौड़ और राजसमंद में बागियों ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। नाथद्वारा सीट दो बड़े नामों के आमने-सामने होने से लगातार चर्चा में बनी हुई है।
उदयपुर की वल्लभनगर सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो चला है। यहां कांग्रेस प्रत्याशी प्रीति गजेन्द्र शक्तावत के सामने भाजपा ने उदयलाल डांगी को उतारा है, लेकिन यहां पर जनता सेना ने इस बार रणधीर सिंह भीण्डर की पत्नी दीपेन्द्र कुंवर को खड़ा किया है। वैसे यहां लगातार कांग्रेस जीतती रहीं हैं, लेकिन भाजपा से नाराज होकर अलग हुए रणधीर सिंह भीण्डर द्वारा गठित जनता सेना का भी दबदबा माना जाता है और यही वजह है कि जनता सेना प्रत्याशी दोनों ही बड़े दलों का गणित बिगाड़ती नजर आ रही है। वर्ष 2018 में तत्कालीन कांग्रेस प्रत्याशी गजेन्द्र सिंह शक्तावत ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जनता सेना के रणधीर सिंह भीण्डर को 3719 वोटों से हराया था। भाजपा के उदयलाल डांगी तीसरे नंबर पर थे। शक्तावत का निधन होने के बाद हुए उपचुनाव में यहां भाजपा ने मुंह की खाई थी, तब उदयलाल डांगी टिकट नहीं मिलने पर भाजपा से बगावत कर अन्य पार्टी से चुनाव लड़े थे, इस बार डांगी ने पुनः भाजपा का दामन थामा और पार्टी ने उन्हें टिकट दिया है। अंदरखाने कई भाजपा कार्यकर्ता भी इस बात से हैरान और नाराज नजर आ रहे हैं, हालांकि ऊपरी तौर पर ऐसा कुछ नजर नहीं आ रहा है।
राजसमंद जिले की बात करें तो यहां दो सीटें बड़ी ही चर्चा में बनी हुई है। राजसमंद विधानसभा क्षेत्र में भाजपा से बागी दिनेश बड़ाला ने ऐसी ताल ठोकी है कि मौजूदा विधायक दीप्ति किरण माहेश्वरी को भी पसीना आ रहा है। बड़ी संख्या में भाजपा की भीड़ में दिखने वाले चेहरे निर्दलीय के साथ नजर आ रहे हैं। यहां से दिनेश बड़ाला भाजपा के मजबूत दावेदार थे। यहां लोगों का कहना है कि दिवंगत विधायक किरण माहेश्वरी की अपनी वरिष्ठता थी, लेकिन दीप्ति को उनके स्थान पर लाया जाना पूर्व में भी वंशवाद की परिभाषा को लेकर मुद्दा बना था और अब पुनः टिकट देने पर स्थानीय कार्यकर्ता यह सवाल उठा रहे हैं कि स्थानीय पात्र कार्यकर्ता को मौका कब मिलेगा। इसी कारण यह सीट भी त्रिकोणीय मुकाबले में शामिल होती नजर आ रही है। यहां पर उपचुनाव में जीत का अंतर भी खास नहीं था। हालांकि, यहां दिवंगत किरण माहेश्वरी अच्छे अंतर से जीतती रहीं हैं। वर्ष 2013 में जीत का अंतर 30 हजार 575 था तो वर्ष 2018 में 24 हजार 623 था।
राजसमंद जिले की दूसरी सीट बड़े नामों की वजह से चर्चा में है। यह सीट नाथद्वारा की है जहां एक ओर विधानसभा अध्यक्ष और कांग्रेस के कद्दावर नेता डॉ. सीपी जोशी हैं और दूसरी तरफ भाजपा ने मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के महाराज कुंवर विश्वराज सिंह मेवाड़ को प्रत्याशी के रूप में उतारा है। एक तरफ कांग्रेस का बड़ा नाम है तो दूसरी तरफ मेवाड़ क्षेत्र का बड़ा नाम है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यहां भाजपा ने राजपूत वोटों को साधने के लिए विश्वराज सिंह को टिकट दिया है, साथ ही मेवाड़ में उनके सम्मान का भी लाभ उनको मिल सकता है। भाजपा ने मेवाड़ को टिकट देकर एक तरह से कांग्रेस के कद्दावर नेता को भी बांधने की कोशिश की है। इन्हीं कारणों से यह सीट भी रोचक मुकाबलों में शुमार हो चली है।
चित्तौड़ जिले में एक ही चित्तौड़ विधानसभा सीट इस बार भाजपा पर भारी पड़ सकती है। पूर्व विधायक चंद्रभान सिंह आक्या को टिकट नहीं देकर यहां राजवी को टिकट दिया गया है। बड़ी संख्या में स्थानीय कार्यकर्ता राजवी को बाहरी मान रहे हैं और आक्या के समर्थन में नजर आ रहे हैं। यहां कांग्रेस प्रत्याशी सुरेन्द्र सिंह जाड़ावत को इस बगावत का फायदा मिलने के आसार हैं। यहां आक्या लगातार जीतते रहे हैं, वर्ष 2013 में जीत का अंतर 11 हजार 850 तो वर्ष 2018 में जीत का अंतर 23 हजार 894 था।
हिन्दुस्थान समाचार/सुनीता कौशल/संदीप
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