जवाहर कला केन्द्र :लोकरंग 2024: विभिन्न राज्यों की लोक कलाओं की प्रस्तुति ने मोहा मन

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जवाहर कला केन्द्र :लोकरंग 2024: विभिन्न राज्यों की लोक कलाओं की प्रस्तुति ने मोहा मन


जयपुर, 20 अक्टूबर (हि.स.)। जवाहर कला केन्द्र की ओर से आयोजित 27वें लोकरंग महोत्सव का रविवार को तीसरा दिन रहा। राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में बड़ी संख्या में लोग पहुंचे और दस्तकारों के उत्पाद खरीदते नजर आए। यहां मुख्य मंच पर कुचामणी ख्याल, लोक गायन, भपंग, कथौड़ी नृत्य, भवाई, चरी, कालबेलिया, तेरहताली की प्रस्तुति हुई। लोक गायन सभा में माधवी मेवाल की लोक गायन और बाड़मेर के फकीरा खान भादरेश की मांगणियार गायन की प्रस्तुति हुई। मध्यवर्ती के मंच पर राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, गोवा, ओडिशा व उत्तर प्रदेश की लोक कलाएं साकार हुई।

मध्यवर्ती में 'मुजरो मान ली जो सा' और 'घोड़लियो' गीत के साथ जैसलमेर से आए मांगणियार बच्चों ने प्रस्तुति की शुरुआत की। सिर पर कलश रखकर बिहार के कलाकारों ने झिझिया नृत्य की प्रस्तुति दी। जेठ बैसाख माह में इंद्र देव का आभार व्यक्त करने के लिए यह नृत्य किया जाता है। मध्य प्रदेश के कलाकारों ने करमा नृत्य की प्रस्तुति दी। गोंड जनजाति के कलाकार यह नृत्य करते हैं। बताया गया कि समुदाय के लोग श्रम को कर्म देवता मानते हैं, नृत्य में अच्छी फसल होने पर कर्म देवता का आभार व्यक्त किया जाता हैं। मुख्य रूप से कर्म पूजा महोत्सव में यह नृत्य किया जाता है। हिलजात्रा नृत्य की प्रस्तुति दर्शकों को उत्तराखंड की यात्रा पर ले जाती है। नेपाल के सीमावर्ती पिथौरागढ़ में होने वाला यह नृत्य कृषक समुदाय की ओर से किया जाता है जिसमें नेपाली संस्कृति का प्रभाव भी देखने को मिलता है। यह मुखौटा प्रधान नृत्य है, लख्या भूत नामक पात्र सभी का ध्यान खींचता है। लख्या को शिवगण माना जाता है उसकी उपस्थिति भगवान शिव के आशीर्वाद के रूप में देखी जाती है।

जम्मू—कश्मीर के कलाकारों ने सुरमा नृत्य की प्रस्तुति दी। शृंगार प्रधान नृत्य में नायिका अपने प्रियतम से घर आने की गुहार लगाती है। गोवा के कलाकारों ने समई नृत्य की प्रस्तुति दी। यह हस्तशिल्प और कला को समाहित करने वाली विधा है। पितल का दिया जिसे क्षेत्रीय भाषा में समाई कहा जाता है उसे सिर पर रखकर कलाकार नृत्य करते है।जौनसार, उत्तरखंड के जनजातीय कलाकारों ने जौनसारी नृत्य पेश किया। पुरुष और महिलाएं इसमें हिस्सा लेते है और प्रकृति व जीवन के बीच के संबंध को जाहिर करते हैं। ओड़िशा के कलाकारों ने डालखाई नृत्य पेश किया। यह एक जनजाति नृत्य है जिसमें अच्छी खेती के लिए डालखाई देवी का धन्यवाद व्यक्त किया जाता है। उत्तर प्रदेश से आए कलाकारों ने मयूर नृत्य की प्रस्तुति से माहौल को कृष्णमय कर दिया।

रंग चौपाल में गवरी का मंचन

शिल्पग्राम के मुख्य द्वार के सामने लॉन में सजी रंगचौपाल पर उदयपुर से आए कलाकारों ने गवरी लोक नाट्य खेला। सोमवार को शाम 4 बजे से चौपाल में लोक नाटक की प्रस्तुति होगी।

शिल्पग्राम में गूंजे पश्चिमी राजस्थान के स्वर

त्योहारी सीजन में शिल्पग्राम में लगे मेले में रौनक देखने को मिली। गायन सभा में माधवी मेवाल की लोक गायन और बाड़मेर के फकीरा खान भादरेश की मांगणियार गायन प्रस्तुति हुई। फकीरा खान व साथी कलाकारों ने 'राधा रानी दे दारो बंसी म्हारी', झिर मीर बरसे मेह', 'हिचकी' आदि लोक गीत गाए। मेले में गूंजते राजस्थानी गीतों का सभी आगंतुकों ने आनंद लिया।

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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश

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