ऋषि दयानन्द ने किया राष्ट्र की संकल्पना का प्रतिपादन - प्रो. रविप्रकाश आर्य
अजमेर, 30 अक्टूबर(हि.स)। ऐतिहासिकता, संस्कृति, भाषा, पहचान, भौगौलिक रेखा तथा स्वशासन की योग्यता के मानदण्डों पर एक समग्र राष्ट्र की यूरोपीय संकल्पना पर भारत को एक राष्ट्र सिद्ध करने का कार्य सर्वप्रथम महर्षि दयानन्द ने किया। उन्होंने राष्ट्रीय जीवन में आने वाली श्रेष्ठताओं को उजागर करने के साथ ही उसे खोखला करने वाली सामाजिक रूढ़ियों के प्रति विशाल जनजागरण का भी महत्वपूर्ण कार्य प्रारंभ किया जिसमें अछूतोद्धार, स्त्री शिक्षा इत्यादि सम्मिलित थे। इसके साथ ही उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अच्छे विदेशी शासन के स्थान पर यदि स्वशासन में कुछ कमियां भी हों तो भी वह श्रेयस्कर होता है।
महर्षि दयानन्द के उक्त विचारों को कालांतर में महात्मा गाँधी ने भी अपने दर्शन में समाहित किया। एम डी विश्वविद्यालय, रोहतक के महर्षि दयानन्द चेयर प्रो रवि प्रकाश आर्य ने महर्षि दयानन्द सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर द्वारा ऋषि निर्वाण दिवस पर आयोजित “महर्षि दयानन्द और राष्ट्रधर्म” विषयक संगोष्ठी के अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए उक्त विचार व्यक्त किए।
कार्यक्रम के वक्ता मुनि सत्यजित् ने विभिन्न उदाहरण देकर आज के समय में ऋषि दयानन्द की प्रासंगिकता को सिद्ध किया। डाॅ. मोक्षराज ने महर्षि दयानन्द के अजमेर में रहकर किए गए राष्ट्र उन्नति, सामाजिक एकता एवं वैदिक सिद्धांतों के प्रतिपादन में दिए गए सहयोग को रेखंाकित किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. अनिल शुक्ल ने कहा कि स्वामी दयानन्द द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने का उत्तरदायित्व आज की युवा पीढ़ी पर है। स्वामी दयानन्द और विजरानन्द इस युग के आदर्श उदाहरण हैं। स्वामी दयानन्द ने अपने गुरू की आज्ञा पर अपना पूरा जीवन न्यौछावर करते हुए कर्तव्य परायणता का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। स्वामी दयानन्द की शिक्षाओं का अनुसरण करते हुए अपने कर्तव्यभाव को जाग्रत करते हुए भारत को विश्वगुरू बनाने का महत्वपूर्ण कार्य आज के युवाओं के कंधे पर है।
इससे पूर्व कार्यक्रम का आरंभ ऋषि उद्यान के ब्रह्मचारीगणों द्वारा किया गया। संगोष्ठी में स्वागत उद्बोधन यूजीसी चेयर प्रोफेसर नरेश कुमार धीमान ने दिया। निदेशक प्रो. ऋतु माथुर ने बताया कि यह आयोजन भारत सरकार द्वारा प्रकाशित राजपत्र के दिशा-निर्देशों में महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की 200वीं जन्म-जयन्ती की शृङ्खला के अन्तर्गत किया गया।
हिन्दुस्थान समाचार/संतोष/संदीप
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