अजमेर में करबला की जंग का सा नजारा, तलवारों से खेला हाइदौस, मातम मनाया
अजमेर, 17 जुलाई (हि.स.)। मोहर्रम महीने की दस तारीख होने से बुधवार को मुस्लिम क्षेत्र में मातम रहा और दोपहर बाद ताजियों का जुलूस निकलना शुरू हुआ। जिन्हें शाम को सैराब कर दिया जाएगा। ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के बड़े ताजिया का जुलूस रात्रि दस बजे इमामबाड़ा से निकलेगा और गुरुवार अलसुबह झालरा में सैराब किया जाएगा। दोपहर में अंदरकोट में तलवारों से हाइदौस खेलते हुए डोला शरीफ निकाला गया। तारागढ़ और दौराई में रक्त रंजित मातम करते हुए ताजिया की सवारी निकाली गई। दोनों जगहों पर शिया मुस्लिमों ने फाके किए। अंदरकोट में आशिकान ए हुसैन ने नंगी तलवारों से बड़ा हाईदौस खेल कर करबला की जंग का मंजर साकार किया।
हाईदौस के दौरान तोप के गोले दागे जा रहे थे और अकीदतमंद विशेष आवाज निकाल रहे थे। जंग के मैदान की तरह ही बिगुल बजाया जा रहा था। एक गोल घेरे में तलवारों की पैंतरे बाजी का प्रदर्शन करते हुए अकीदतमंद आगे बढ़ रहे थे। हाईदौस खेलने वालों को नियंत्रित रखने के लिए कार्यकर्ता लठ और हॉकी लेकर व्यवस्था बनाते नजर आए। पुलिस द्वारा हाईदौस की वीडियोग्राफी कराई गई। बुधवार को मोहर्रम महीने की दस तारीख होने से सुबह 8 बजे से लंगरखाना स्थित इमाम बारगाह, छतरी गेट सहित दरगाह परिसर के बाहर भी कई जगहों पर बयाने शहादत हुई। दोपहर एक बजे बाद मन्नत वाला चांदी का ताजिया दरगाह के निजाम गेट पर रखा गया। जौहर की नमाज के बाद ढोल ताशे बजाकर ताजियों की सवारियां शुरू हुई। इस दौरान दरगाह के निजाम गेट के बाहर अखाड़े के लोगों द्वारा पट्टेबाजी की गई। अंजुमन के बड़े ताजिया को छोड़कर शेष सभी ताजिए बुधवार शाम सात बजे से पहले सैराब कर दिए जाएंगे।
अंजुमन का ताजिया की सवारी ख्वाजा साहब की दरगाह का आस्ताना बंद होने के बाद इमामबाड़ा से शुरू होगी, जो गुरुवार की सुबह पांच बजे झालरा पहुंचेगी। वहां ताजिया सैराब कर दिया जाएगा। राजस्थान के अजमेर शहर को यह गौरव प्राप्त है कि ऐतिहासिक ढाई दिन के झोंपड़े के पास (अंदरकोट) से शुरू हुई हाईदौस खेलने की परंपरा सरहद पार पाकिस्तान में भी बड़ी आस्था के साथ खेली जाती है। मोहर्रम के मौके पर जिस तरह से अंदरकोट में मोहर्रम की नाै तारीख को रात में और 10 तारीख को दिन में हाईदौस खेल कर करबला की जंग का मंजर साकार करने की कोशिश की जाती है। ऐसा ही मंजर पाकिस्तान के हैदराबाद सिंध में भी साकार किया जाता है। देश के बंटवारे से पहले मोहर्रम के मौके पर विश्वभर में केवल अंदरकोट में ही हाईदौस खेला जाता था। बंटवारा के समय अंदरकोट के ही कुछ लोग पाकिस्तान चले गए। पाकिस्तान में जा बसे अंदरकोट बिरादरी के ही लोग अपने देश में हाईदौस खेलते हैं। पाकिस्तान में हैदराबाद सिंध के खाता चौक में यह हाईदौस होता है और ताराचंद अस्पताल के पास तक खेलते हुए जाते हैं। पाकिस्तान में हाजी कमाल मोहम्मद, हाजी शरीफ जमील, हाजी आबिद हुसैन, मुंशी वजीरुद्दीन आदि ने हाईदौस शुरू किया था। जो अब भी हर साल होता है। दी सोसायटी पंचायत अंदर कोटियान के पूर्व अध्यक्ष हाजी चांद खान बताते हैं कि बुजुर्गों से सुना है कि मराठों के काल से अंदरकोट में हाईदौस खेली जाती है। लेकिन इसका कोई लिखित दस्तावेज अभी उपलब्ध नहीं है। हाजी चांद खान ने बताया कि नंगी तलवारों के साथ ही बिगुल भी बजाया जाता है।अंदरकोट में नंगी तलवारों से हाईदौस खेल कर करबला का मंजर साकार किया।
हिन्दुस्थान समाचार / रोहित / संदीप
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