सरजूदास महाराज को राष्ट्रीय संत की उपाधि

सरजूदास महाराज को राष्ट्रीय संत की उपाधि
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सरजूदास महाराज को राष्ट्रीय संत की उपाधि


बीकानेर, 26 नवंबर (हि.स.)। इन दिनों बीकानेरवासियों की दिनचर्या पूर्णत: बदल चुकी है। 108 कुंडीय रामचरित मानस महायज्ञ व श्रीराम कथा में रोजाना करीब 25-30 हजार लोगों का शामिल होना वाकई कुम्भ सा प्रतीत हो रहा है।

हवनशाला में जहां लगभग 1200-1300 लोग अनुष्ठान में शामिल रहते हैं वहीं अनुमानत: एक बार में हवन शाला की एक बार की परिक्रमा में लगभग 650 श्रद्धालु शामिल होते हैं और यह क्रम सुबह 8 बजे शुरू होता है जो निरन्तर दोपहर 3 बजे तक जारी रहता है। इसके बाद शुरू होता है राम रसपान का समय यानि जगद्गुरु पद्मविभूषित स्वामी रामभद्राचार्यजी महाराज के श्रीमुख से श्रीराम कथा का वाचन हजारों श्रद्धालुओं को कृतार्थ करता है। यज्ञब्रह्मा अशोक ओझा ने बताया कि पं. जुगलकिशोर ओझा के आचार्यत्व में 108 कुंडीय रामचरित मानस महायज्ञ किया जा रहा है। रामचरित मानस की चौपाइयों, श्रीसुक्त पाठ और राम नाम मंत्र से हवन में आहुतियां प्रदान की जा रही है। दृश्य और भी विहंगम तब हो जाता है जब हवन पूर्णाहुति के बाद हनुमान चालीसा और सीतारामजी की आरती होती है। एक साथ हजारों श्रद्धालुओं द्वारा हनुमानचालीसा के पाठ करने से माहौल राममय हो जाता है।

रामझरोखा कैलाशधाम के पीठाधीश्वर सरजूदासजी महाराज ने बताया कि एक आवश्यक कार्य के कारण जगद्गुरु स्पेशल चार्टर विमान से दिल्ली जाकर आए। आयोजन का आरंभ चंद्रेश हर्ष, अशोक चौधरी, सुभाष गुप्ता, महेश मोदी, मेघराज मित्तल, कमलकुमार सर्राफ, सुनीलम् पुरोहित चरण पादुका पूजन कर किया। सीताराम, अरविन्द शर्मा, राकेश, दरबार, किशन, जयदयाल, कांता, सुनीता, मनफूल, अनिता, जितेन्द्र, श्यामसुंदर आदि आरती में शामिल हुए। इस अवसर पर खत्री-मोदी समाज द्वारा माल्यार्पण कर जगद्गुरु का अभिनन्दन किया गया।

जगद्गुरु रामभद्राचार्यजी महाराज ने भरत चरित्र का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया। उन्होंने बताया कि जब भरतजी अयोध्या पहुंचे तो उन्हें न पिता दिखे, न रामजी दिखे, कोई भी प्रसन्नता के भाव या किसी भी जीव में हर्ष नहीं दिख रहा था। माता कौशल्या से जब पूछा तो उन्होंने कहा कि यहां सूर्य भी नहीं और चंद्रमा भी नहीं है और आगे अनेक वृतांत के बाद राजसिंहासन ठुकराते हुए भरतजी निकल पड़े रामजी को मनाने। जगद्गुरु ने बताया कि जो राम प्रेम से मन भर देता है उसे भरत कहते हैं। वनवासी राम-लक्ष्मण और जानकी से मिले भरतजी और 14 वर्ष के लिए रामजी से पादुका लेकर भरत का लौटने के वृतांत ने जगद्गुरु सहित उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं के हृदय को झकझोर दिया।

सरजूदासजी महाराज को मिली राष्ट्रीय संत की उपाधि

महंत भगवानदासजी महाराज ने बताया कि अखाड़ा परिषद चतुष्सम्प्रदाय द्वारा रामझरोखा कैलाशधाम के पीठाधीश्वर श्रीसरजूदासजी महाराज को राष्ट्रीय संत की उपाधि प्रदान की गई। अखिल भारतीय पंच दिगम्बर अखाड़ा राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोरदास महाराज ने राष्ट्रीय संत से श्रीसरजूदासजी महाराज को अलंकृत किया और जगद्गुरु पद्मविभूषित स्वामी रामभद्राचार्यजी महाराज ने तिलक निकाल कर अभिनन्दन किया। इस दौरान गुरु रामदास महाराज, श्रीमद्भगवत् अग्रपीठाधीश्वर स्वामी राघवाचार्यजी महाराज, बाहुबल देवाचार्य बलदेवाचार्यजी महाराज, रामदासजी मुरारपुर धाम, परशमदासजी, प्रियमदासजी महाराज, अखिल भारतीय पंचनिर्वाणी अखाड़ा महंत धर्मदासजी महाराज, जगद्गुरु रामनंदाचार्य स्वामी रामदिनेशा महाराज, महामंडलेश्वर परमेश्वरदासजी महाराज, केशवदासजी महाराज सहित अनेक संत-महात्माओं ने श्रीसरजूदासजी महाराज का अभिनन्दन कर मंगलकामनाएं दी।

हिन्दुस्थान समाचार/राजीव/ईश्वर

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