वन विभाग का रिवाइल्डिंग प्रोजेक्ट : दस जिलों के जंगलोंं को एक बार फिर से बाघों का घर बनाने की तैयारी

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जयपुर, 17 मार्च (हि.स.)। वन विभाग की ओर से प्रदेश में बाघों के बढ़ते कुनबे को देखते हुए प्रदेश के दस जिलों के जंगलोंं को एक बार फिर से बाघों का घर बनाने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए वन विभाग की ओर से रिवाइल्डिंग प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। इसी क्रम में वन विभाग की ओर से हाल ही में करौली, धौलपुर व भरतपुर के जंगलों को जोड़कर प्रदेश का पांचवा टाइगर रिजर्व तैयार किया जा रहा है। जल्द ही अन्य जिलों में भी बाघों को बसाने की दिशा में वन विभाग की ओर से कार्य किया जाएगा।

वर्ष 1970-75 तक राजस्थान के 21 जिलों के जंगलों में टाइगर की दहाड़ सुनाई देती थी। अब जल्द ही राजस्थान के 10 से ज्यादा जिलों में टाइगर की दहाड़ सुनाई दे सकती है। इसके लिए उन जिलों में जंगल बसाए जाएंगे, जहां 50 साल पहले तक बाघ थे। गौरतलब है कि वर्तमान में प्रदेश के जंगलों में 100 से अधिक बाघ-बाघिन है। राजस्थान देश का ऐसा नौंवां राज्य है जहां के जंगलों में सौ से अधिक बाघ-बाघिन है। धौलपुर के बाद अगला नम्बर कुम्भलगढ़ के जंगलों का है जिसे टाइगर सेंचुरी के लिए केन्द्र सरकार की मंजूरी जल्द ही मिल सकती है। वर्तमान में राजस्थान में सवाईमाधोपुर, कोटा, बूंदी, करौली, धौलपुर, अलवर जिलों में ही बाघ पाए जाते हैं।

वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार भीलवाड़ा, चितौड़गढ़, बूंदी जिलों के सीमावर्ती क्षेत्र मेनाल, रावतभाटा, बिजौलिया, भीमलत के जंगलों में 1975 तक टाइगर देखे गए हैं। इन जंगलों में अब भी टाइगर के लिए संभावनाएं मौजूद हैं। जयपुर के झालाना-रामगढ़ में भी 60 साल पहले तक टाइगर की मौजूदगी थी। हाल के वर्षों में भी कई बार सरिस्का से बाघ जयपुर के रामगढ़ की ओर की मूवमेंट करता दिखाई दिया है। साथ ही, बांसवाड़ा, झालावाड़, प्रतापगढ़, धरियावाद के जंगलों में भी पहले बाघों की मौजूदगी रही है। ऐसे में यहां भी टाइगर के लिए पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं। इसी प्रकार टॉडगढ़,रावली, अजमेर, पाली के जंगलों में भी पानी और भोजन पर्याप्त रूप से उपलब्ध होने के चलते टाइगर के लिए खासी संभावनाएं मौजूद हैं। वर्ष 1970 से 1975 के दौर में जयपुर, अलवर, सीकर, झुंझनूं, धौलपुर, करौली, दौसा, भरतपुर, सवाईमाधोपुर, बूंदी, कोटा, झालावाड़, बारां, चितौडगढ़, भीलवाड़ा, अजमेर, पाली, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर,राजसमंद, प्रतापगढ़ जिलों में बाघों की मौजूदगी थी।

रिवाइल्डिंग का अर्थ है जंगल को फिर से जंगल बनाना। जंगलों को ठीक वही पहचान वापस देना, जिसके लिए वे प्रसिद्ध रहे हैं। इसमें पेड़, पौधे, पक्षी और वन्यजीव शामिल हैं। टाइगर चूंकि सबसे मशहूर और भारत के जंगलों का चौथा सबसे बड़ा जीव व राजस्थान का एकमात्र सबसे बड़ा जीव है, तो यह रिवाइल्डिंग प्रोजेक्ट की सबसे अहम कड़ी है। वन विभाग के हॉफ डॉ. डीएन पाण्डे ने बताया कि वन विभाग की ओर से बाघों को बेहतर जंगल व पर्यावास उपलब्ध कराने के लिए रिवाइल्डिंग प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। इसी क्रम में करौली, धौलपुर में नया टाइगर रिजर्व विकसित करने की दिशा में काम किया जा रहा है। इसके बाद प्रदेश केअन्य जिलोंं में भी इस दिशा में कार्य किया जाएगा।

हिन्दुस्थान समाचार/रोहित/ ईश्वर

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