प्रताप गौरव शोध केन्द्र एवं राजस्थान विद्यापीठ के बीच एमओयू का नवीनीकरण

प्रताप गौरव शोध केन्द्र एवं राजस्थान विद्यापीठ के बीच एमओयू का नवीनीकरण
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प्रताप गौरव शोध केन्द्र एवं राजस्थान विद्यापीठ के बीच एमओयू का नवीनीकरण


उदयपुर, 27 फ़रवरी (हि.स.)। जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड-टू-बी) विश्वविद्यालय एवं प्रताप गौरव शोध केन्द्र के मध्य एक वर्ष पूर्व हुए आपसी द्विपक्षीय समझौते (एमओयू) का मंगलवार को नवीनीकरण किया गया। यह एमओयू संस्कृति, परम्परा, सभ्यता, विरासत को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के उद्देश्य से फरवरी-2023 में किया गया था। प्रताप गौरव शोध केन्द्र का संचालन प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ के अंतर्गत होता है।

इस अवसर पर राजस्थान विद्यापीठ के कुलपति प्रो. सारंगदेवोत ने कहा कि भारतीय संस्कृति, सभ्यता, परम्परा, विरासत हमारी धरोहर है, इसे बचाने एवं आने वाली पीढ़ी तक इनके गौरवशाली इतिहास को पहुंचाने की जिम्मेदारी हम सभी की है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए यह एमओयू किया गया है। एमओयू के तहत महाराणा प्रताप से सम्बंधित स्थलों का संरक्षण एवं लेखन का कार्य किया जाएगा। पुरास्थलों का संरक्षण एवं राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा।

एमओयू के अवसर पर प्रताप गौरव केन्द्र ‘राष्ट्रीय तीर्थ’ की ओर से निदेशक अनुराग सक्सेना, शोध केन्द्र प्रभारी डॉ. विवेक भटनागर एवं विद्यापीठ विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत, रजिस्ट्रार डॉ. तरुण श्रीमाली, साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो. जीवन सिंह खरकवाल ने हस्ताक्षर किए।

इस अवसर पर प्रताप गौरव केन्द्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने कहा कि यह समझौता महाराणा प्रताप के बारे में प्रचलित लोक कथाओं के सूत्र और स्रोत जानने में अत्यन्त महत्वपूर्ण कड़ी बनेगा। साथ ही प्रताप से सम्बंधित स्थलों के पुरातत्विक प्रमाणों के संधारण और अनुसंधान में उपयोगी बनेगा।

साहित्य संस्थान के निदेशक डॉ. जीवन सिंह खरकवाल और डॉ. विवेक भटनागर ने बताया कि विगत एक वर्ष में इस समझौते के तहत प्रताप गौरव केन्द्र और साहित्य संस्थान ने चावण्ड का सर्वे किया। साथ ही, मायरा की गुफाओं का भी अध्ययन किया गया। चावण्ड से इस्लामिककालीन चमकीले मृदभाण्ड मिले, जो मेवाड़ क्षेत्र में केवल चावण्ड से ही मिले हैं, यह एक विशिष्ट खोज है और इस पर और भी अध्ययन की आवश्यकता है। साथ ही चावण्ड में सर्वेक्षण के दौरान जस्ता प्रगलन के लिए काम में आने वाली मूसाएं मिली हैं। यह मूसाएं जावर के अलावा काया और चावण्ड में ही मिली हैं।

इस अवसर पर डॉ. कुल शेखर व्यास, डॉ. हेमंत साहू, डॉ. संजय चौधरी, निजी सचिव केके कुमावत सहित अकादमिक सदस्य उपस्थित थे।

हिन्दुस्थान समाचार/ सुनीता कौशल/ईश्वर

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