दशहरे पर जलते है करोड़ों के रावण: रावण का पुतला बनाने वालों को नहीं मिल पाती सही कीमत
जयपुर, 23 अक्टूबर (हि.स.)। विजयादशमी (दशहरा) मंगलवार को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। जिसके चलते जयपुर शहर में उत्साह व उल्लास नजर आने लगा हैं। जानकारी के अनुसार इस अवसर पर दहन के लिए रावण व मेघनाथ-कुंभकरण के पुतले तैयार करने में राजस्थान के कई जिलों से करीब दो सौ से अधिक परिवार पिछले तीन माह से मानसरोवर मेट्रो स्टेशन के पास रावण मंडी में जुटे हुए हैं। यहां के बनाए रावण की डिमांड सिर्फ न केवल जयपुर और अन्य जिलों में है, बल्कि पड़ोसी राज्यों हरियाणा, मध्यप्रदेश से भी है। इस रावण मंडी में कारीगर 2 फीट से लेकर अधिकतम 111 फीट के रावण बना रहे हैं, जिनकी कीमत 500 रुपये से शुरू होकर डेढ़ लाख रुपये तक है। सबसे अधिक मांग 5 फीट से 12 फीट रावण की है, जिनका आसानी से गली-मोहल्ले, कॉलोनी और सोसाइटी में दहन किया जा सकता है।
मानसरोवर मेट्रो स्टेशन के पास स्थित कांटा चौराहे के पास बहुत की बडी रावण की मंडी है। जहां पर हर साइज के रावण बनाए जाते है। रावण बनाने के लिए यहां के कारीगर करीब तीन महीने पहले ही अपनी तैयारी शुरू कर देते है। लेकिन महंगाई के कारण दशानंद के पुतले बनाने वाले कारीगरों का हौंसला टूटता जा रहा है। खातीपुरा शनिदेव मंदिर के पास रावण बनाने वाले भंवरा राम ने बताया कि एक कोड़ी बांस की कीमत पिछले साल 12 सौ रुपये थी लेकिन अब वहीं कीमत 15 सौ रुपये हो गई है।
एक रावण बनाने में 6-7 किलो लोहे का तार लगता था। जिसकी कीमत 62 रुपये किलो थी, लेकिन अब लोहे के तार की कीमत 90 रुपये किलो है। रावण तैयार करने के लिए बांस का घेरा बनाया जाता है। उसी में करीब 1 किलो लोहे के तार लग जाते है, जिस अखबार की कीमत 25 रुपये किलो थी अब वहीं अखबार 42 रुपये किलो के हिसाब से खरीदना पड़ता है।
रावण मंडी अध्यक्ष जगदीश महाराज जोगी ने बताया कि वह चालीस सालों से रावण बनाने का काम कर रहे हैं। पिछले साल रावण मंडी में पन्द्रह हजार रावण के पुतले बिके थे, लेकिन अबकी बार कारीगरों ने बारह हजार रावण बनाने का लक्ष्य रखा। उन्होंने बताया कि रावण बनाने में काम आने वाला बांस वह असम से मंगवाते हैं। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के कारण बांस भी उन्हें महंगा पड़ रहा है। इसके साथ अन्य सामग्री जैसे पन्नी, अखबार का कागज, गोंद, कार्टन आदि के दाम भी दिनोंदिन बढ़ रहे हैं। हर साल अक्टूबर के महीने में 5-6 हजार के बीच पुतले बिक जाते थे। अबकी बार तो सिर्फ ढाई हजार रावण के पुतले बिके हैं। अभी फिलहाल एक दिन शेष बचा है।
जगदीश महाराज जोगी ने बताया कि रावण बनाने के लिए जो भी सामान खरीदते है उन सब पर जीएसटी देनी पड़ रहीं है ,जिसके कारण कच्चा माल काफी मंहगा मिल रहा है। माल महंगा होने के कारण ग्राहक सही दाम देने से कतराता है। जिसके चलते मेहनत का पैसा नहीं मिल पा रहा है। पिछले साल बारिश के कारण रावण के पुतले खराब हो गए थे, जिसके एवज में राज्य सरकार ने 38 कारीगरों को 25 हजार रुपये मुआवजा दिया था। इस साल भी असमय बारिश के कारण काफी नुकसान हुआ है।
कांटा चौराया मानसरोवर में रावण बनाने वाले कारीगर रमेश कुमार ने बताया कि रावण के श्रंगार के लिए जो कपड़े पहनाए जाते है वो पुरानी साड़ी पहले आठ रुपये की आती थी लेकिन अब वही 15 रुपये की लेनी पड़ती है। एक रावण तैयार करने के लिए पांच से आठ बांस की जरूरत पड़ती है। रावण में अखबार चिपकाने के लिए एक हजार रुपये की लाई लग जाती है।
कारीगर शंकर ने बताया कि पुतला बनाने के लिए जो माल बाजार से खरीदा जाता है वो सब नकद में लेना पड़ता है ,जिसके चलते मुखिया की गारंटी पर ब्याज पर पैसा लेकर बाजार से माल नकद में लाना पड़ता है। कई बार तो रकम का ब्याज निकालना भी भारी पड़ जाता है।
कांटा चौराहा मानसरोवर मेट्रो स्टेशन के पास हर साईज के रावण तैयार मिलते है। जिसमें छोटे रावण की कीमत 400 रुपये से शुरू होकर 7 सौ रुपये तक है । वहीं 70 फीट से लेकर 120 फीट के रावण की कीमत 50 हजार से लेकर 80 हजार रुपये तक है।
कारीगर भोला राम ने बताया कि जिस तरीके से मेहनत की जाती है। उस हिसाब से उन्हे कला का पैसा नहीं मिल पाता है। इतनी मेहनत करने के बाद भी उन्हे आज भी खानाबदोश जिन्दगी बितानी पड़ रही है। ना ही सरकार से इन्हें कोई सुविधा मिल पाती है। कई बार तो बिना मानसून की बरसात के कारण सारा माल खराब हो जाता है।
कारीगर रमेश ने बताया कि वह जोधपुर से यहां आकर रावण के पुतले बना रहा है। रात को भी देर तक काम करना पड़ रहा है। काम के दौरान कई बार हाथों में बांस चुभ जाती है। इससे घाव तक हो जाते हैं, जिसके कारण खाना खाने में भी परेशानी होती है। इस काम में मेहनत ज्यादा है, लेकिन इनकम कम है। परिवार का खर्च चलाना भी मुश्किल हो रहा है। मेहनत के हिसाब से बहुत कम रुपये मिल रहे है। पिछले साल की तुलना में इस बार रावण की लागत बढ़ गई है, लेकिन खरीदार वही पुराना भाव लगाते हैं, जिससे उनकी बिक्री पर बहुत फर्क पड़ा है।
हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश/संदीप
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