जेकेके में नाटक कठपुतलियां का मंचन: मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी से प्रेरित है नाटक
जयपुर, 30 जून (हि.स.)। युवाओं की ऊर्जा, रचनात्मकता और रंगमंच में प्रयोग से तैयार नाटकों से रूबरू करवाने वाले युवा नाट्य समारोह का रविवार को समापन हुआ। अंतिम दिन वरिष्ठ साहित्यकार मनीषा कुलश्रेष्ठ की कहानी से प्रेरित नाटक 'कठपुतलियां' का मंचन हुआ। अनुराग सिंह ने नाट्य रुपांतरण और निर्देशन किया।
नाटक मनुष्य के अंदर की चेतना और जागृति की बारे में बात करता है और प्रेम की गहराई और शुद्धता को टटोलता है। कामनाओं के पाश में बंधा इंसान दृष्टिहीन होकर उनकी पूर्ति की ओर बढ़ता है तो
कठपुतलियों की तरह ही हो जाता है। मन उसे इधर—उधर दौड़ाता रहता है। वहीं संयम के साथ जब वह विचार करता है तो प्रेम और मोह के अंतर को समझ पाता है। नाटक की नायिका अपने ही कथित प्रेम के लावण्य में जिस तरह उलझी रहती है और अंततः वो चेतन होकर यह समझ पाती है की स्त्री केवल मोहपाश में बंधी हुई कोई भौतिक वस्तु ना होकर के एक सृजनकर्ता, ममत्व से भरी हुई, प्रकृति, मां है।
ये कहानी है कठपुतली कलाकार रामकिशन और सुगना की। रामकिशन कुशल कठपुतली कलाकार है। दुर्भाग्यवश बच्चे को जन्म देने के बाद उसकी पत्नी का निधन हो जाता है। सरल स्वभाव रामकिशन खुद बच्चे को पालता है। वह बच्चे को साथ लेकर गांव—गांव जाकर कठपुतली का खेल भी दिखाता है। इधर दूसरे गांव में रहने वाली सुगना जग्गू गाइड से प्यार करती है। जग्गू उसे सब्जबाग दिखाता है और जीप खरीदने के बाद शादी करने की बात कहता है। सुगना के परिजन उसका विवाह रामकिशन से कर देते है। सुगना जग्गू को भुला नहीं पाती है और उसका मन बार- बार उसे बीते दिनों में ले जाता है। रामकिशन सुगना की हर भावना की कदर करता है। अंतत: सुगना को रामकिशन की नेकदिली का एहसास होता है और वह खुशी—खुशी अपनी गृहस्थी बसाती है। नाटक में कई बार मुखौटे लगाकर पात्रों को कठपुतली की तरह दिखाया गया है जो दर्शकों को बड़ा आकर्षित करता है।
नाटक में कुलदीप सिंह, नारायण सिंह चौहान, शिवांगी बैरवा, महावीर सैन, प्रभु प्रजापत, विभूति नारायण चौधरी, अंकित शाह, विकास जैन, दुष्यंत हरित व्यास, आराधना शर्मा, गरिमा पंचोली, रेखा जैन, कोमल पारीक, दिव्या ओबेरॉय, राहुल रांका, दिनेश चौधरी आदि कलाकरों ने अभिनय किया।
हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश सैनी/ईश्वर
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