राजसमंद में दूल्हा बनकर नाचे लोग, भीलवाड़ा में कोड़ामार होली खेलकर निभाई परंपरा

राजसमंद में दूल्हा बनकर नाचे लोग, भीलवाड़ा में कोड़ामार होली खेलकर निभाई परंपरा
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राजसमंद में दूल्हा बनकर नाचे लोग, भीलवाड़ा में कोड़ामार होली खेलकर निभाई परंपरा


राजसमंद, 25 मार्च (हि.स.)। राजस्थान के अलग-अलग हिस्सों में होली विशेष परंपरा के तहत मनाई गई। राजसमंद के खमनोर क्षेत्र के बड़ाभाणुजा गांव में ग्रामीणों ने सालों से चलती आ रही विशेष परंपरा के तहत होली मनाई। गांव के ब्राह्मण समाज के लोग दूल्हे का रूप धारण कर नाचे। इस अलौकिक नजारे को देखने सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण लोग जमा हुए। गांव में स्थित मंदिर के चौक में भगवान लक्ष्मी नारायण के फूल डोल सजाने के बाद यहां पर यह नृत्य किया गया, जिसमें गांव में रहने वाले सभी ब्राह्मण परिवार के सदस्य दूल्हे का वेश धारण करके शामिल हुए।

गांव के लोग खासतौर पर सिर पर साफा बांधकर तुर्रा किलंगी आदि लगाकर इस चौक में थाली-मादल की थाप पर नाचे और आपस में गले भी मिले। दोपहर में शुरू हुआ यह नृत्य शाम तक चलता रहा। इस दौरान भजन आदि कार्यक्रम भी हुए। वहीं, आयोजन के दौरान बीच-बीच में विशेष भजनों का कार्यक्रम भी हुआ एवं आपस में मिल-जुलकर लोगा फूंदी लेकर भी खूब नाचे। नृत्य के दौरान यदि किन्ही व्यक्तियों के बीच में बोलचाल नहीं हैं तो भी नाचते समय आमने-सामने आ जाने पर दोनों गले मिलते हैंं, जिससे एक-दूसरे के गिले-शिकवे दूर होते हैं। नृत्य की इस परंपरा को जीवंत बनाए रखने गुजरात व महाराष्ट्र आदि कई शहरों में रोजगार को लेकर प्रवासरत अधिकांश सदस्य भी यहां पहुंचे और इस नृत्य में पूरी श्रद्धा व उत्साह के साथ भाग लिया।

प्रदेश के श्रीगंगानगर, भीलवाड़ा और हनुमानगढ़ में कोड़ामार होली खेलने की परंपरा सालों से चल रही है। यहां लोग ढोल की थाप पर टोली में रंग-गुलाल उड़ाते हुए होली खेलते रहे। इसके बाद ग्रामीण टोली में बंटकर कपड़े को कोड़े की तरह लपेट कर रंग में भिगोकर एक दूसरे को पीटते नजर आए। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि लगभग 200 वर्ष पूर्व समाज के बुजुर्गों ने रंग तेरस पर कोड़ा मार होली के आयोजन को प्रारम्भ किया गया था। तब से यह परंपरा निभाई जा रही है। भीलवाड़ा की कोड़ामार होली शान और परंपरा बन गई है।

हिन्दुस्थान समाचार/रोहित/ईश्वर

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