पराबैंगनी किरणों से धरती पर जीवन को बचाने काे रक्षक की भूमिका निभाती है ओजोन परत- संभागीय आयुक्‍त

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पराबैंगनी किरणों से धरती पर जीवन को बचाने काे रक्षक की भूमिका निभाती है ओजोन परत- संभागीय आयुक्‍त


बीकानेर, 16 सितंबर (हि.स.)। संभागीय आयुक्‍त वंदना सिंघवी ने कहा कि सूरज से उत्‍पन्‍न होने वाली पराबैंगनी किरणों से धरती पर जीवन को बचाने के लिए ओजोन परत एक रक्षक की भूमिका निभाता है परंतु इसका क्षरण, मानवीय जागरुकता की मांग करता है क्‍योंकि इसके क्षरण में मानव गतिविधियां अधिक जिम्‍मेदार हैं।

वे यहां राष्‍ट्रीय उष्‍ट्र अनुसंधान केन्‍द्र में नेशनल एनवॉयरमेंटल साइंस अकादमी (नेसा), नई दिल्ली द्वारा एनआरसीसी सहित अन्य विभिन्न संस्थानों के संयुक्त तत्वावधान में साेमवार से दो दिवसीय नेशनल कॉन्फ्रेंस (16-17 सितम्‍बर 2024) का शुभारम्‍भ माैके पर बाेल रही थीं।

ओजोन लेयर, इट्स डिप्‍लीशन एण्‍ड इम्‍पेक्‍ट ऑन लिविंग बींगस् पर आयोजित किए जा रहे इस सम्‍मेलन में देशभर के विभिन्‍न राज्‍यों से करीब 100 से अधिक विषय-विशेषज्ञ, अनुसंधानकर्त्‍ता, विश्‍वविद्यालयों के विद्यार्थी भाग ले रहे हैं।

संभागीय आयुक्‍त ने बदलते परिवेश में कम खर्चें में अधिक कृषि उत्‍पादन की प्रवृत्ति, इस के लिए पेस्‍टीसाइड का अंधाधुंध प्रयोग व इससे होने वाले दुष्‍प्रभाव, इनके प्रयोग में बरती जाने वाली असावधानियों, वर्षा की अनिश्चितता, रासायनिक धुओं, विभिन्‍न आधुनिक उपकरणों, वनों की कटाई आदि विभिन्‍न पहलुओं व मुख्‍य घटकों की ओर सदन का ध्‍यान खींचा तथा कहा कि ओजोन के संरक्षण की दिशा में अधिक तत्‍परता से काम किया जाना होगा ताकि धरती पर जीवन बचा रह सकें। उन्‍होंने आधुनिक खेती में कीटनाशकों के अत्‍यधिक प्रयोग को नियत्रित करने के लिए एक मार्गदर्शिका बनाने तथा इस विषय पर एक कार्यशाला आयोजित करने की आवश्‍यकता जताई।

निदेशक, एनआरसीसी एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ.आर.के.सावल ने स्‍वागत उद्बोधन देते हुए कहा कि वैश्विक स्‍तर पर बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं का एक प्रमुख कारण ओजोन परत का क्षरण होना है अत: इस ज्‍वलंत विषय पर सम्‍मेलन के माध्‍यम से जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए जन सहभागिता बढाने एवं इसके बारे में जागरुकता फैलाने की ओर ध्‍यान आकर्षित करना है ताकि मानव जीवन को और अधिक सुखद बनाया जा सकें। डॉ. सावल ने जलवायु परिवर्तन और इसमें ऊंट की अनुकूलनता पर भी प्रकाश डालते हुए नेसा द्वारा एनआरसीसी संस्‍थान को इस कार्यक्रम के आयोजन का अवसर प्रदान करने के लिए आभार व्‍यक्‍त किया तथा कहा कि इस गंभीर विषय पर चिंतन से निश्चित तौर पर इस दिशा में सकारात्‍मक परिणाम निकलेंगे। उन्‍होंने सभी प्रतिभागियों को इस दो दिवसीय वैज्ञानिक चर्चा में बढ़कर सहभागिता के लिए प्रोत्‍साहित किया।

समारोह के विशिष्‍ट अतिथि डॉ.आर्तबन्‍धु साहू , निदेशक, राष्ट्रीय पशु पोषण एवं शरीर क्रिया विज्ञान संस्थान, बेंगलूरु ने कहा कि ओजोन परत के क्षरण से वर्तमान में ग्‍लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापवृद्धि) व वैश्विक जलवायु परिवर्तन को स्‍पष्‍टत: देखा जा सकता है। उन्‍होंने परत के क्षरण में पशुधन के योगदान की बात करते हुए कहा कि सभी पशुधनों में ऊंट बहुत कम मिथेन का उत्‍सर्जन करता है अत: यह एक पर्यावरणीय मैत्रीय पशु है। डॉ. साहू ने कहा कि यद्यपि हम सब के सक्रिय प्रयासों से ओजोन परत के क्षरण की भरपाई आंशिक तौर पर प्रारम्‍भ हो चुकी है परंतु हमें इसके प्रति और अधिक जागरूक रहकर कार्य करना होगा।

इस अवसर पर विशिष्‍ट अतिथि डॉ.एन.के.शर्मा, आचार्य, कृषि महाविद्यालय, श्रीगांगानगर ने कहा कि वर्तमान में हमारा पूरा ध्‍यान कृषि उत्‍पादन पर ही केन्द्रित है जबकि वातावरण में परिवर्तन से फसल प्रबंधन व ऐसे अनेक नुकसान पहुंचाने वाले उभरते पहलुओं पर समय रहते ध्‍यान दिया जाना चाहिए ।

मंचस्‍थ अतिथियों के द्वारा सम्‍मेलन संबंधी एक कम्‍पेंडियम व अन्‍य प्रकाशनों में ‘मरु क्षेत्र में उत्‍पादकता बढ़ाने हेतु पशु पोषण की पौराणिक एवं नूतन तकनीकियां’ तथा ‘ सस्‍टेनेबल फोडर सोल्‍यूशन्‍स’ तकनीकी बुलेटिन का विमोचन किया गया।

हिन्दुस्थान समाचार / राजीव

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