वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ भूमि से उखाड़कर कुशा एकत्रित की

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वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ भूमि से उखाड़कर कुशा एकत्रित की


जयपुर, 2 सितंबर (हि.स.)। जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में भाद्रपद अमावस्या के अवसर पर सोमवार को वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ भूमि से उखाड़कर कुशा एकत्रित की गई। राजस्थान मंत्र प्रतिष्ठान के तत्वावधान में हुए अनुष्ठान में कुलपति, शिक्षकों और विद्यार्थियों ने कुशा का पूजन किया। प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. देवेंद्र कुमार शर्मा ने यजुर्वेद की माध्यन्दिनी शाखा के मंत्रों से पूजन करवाया। इस अवसर पर कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे ने कहा कि तीनों देवता कुश में निवास करते है। ब्रह्मा कुश की जड़ में, विष्णु मध्य में एवं शंकर अग्रभाग में रहते हैं। कुश एवं तुलसी बार-बार प्रयुक्त होने पर भी बासी नहीं होते। श्राद्ध के लिए पिंड रखने के लिए बिछाई गई और तर्पण में प्रयुक्त कुशा ही त्याज्य हैं। उनका प्रयोग पुन: नहीं हो सकता। कुश का ऊपरी भाग देवों का होता है, मध्य मनुष्यों का एवं जड भाग पितरों का।

दर्शन विभागाध्यक्ष शास्त्री कोसलेंद्रदास ने कहा कि भाद्रपद की अमावस्या पर वर्ष भर काम में आने वाली कुशा एकत्रित की जाती है। यही कुशा यज्ञों से लेकर, सूर्य या चन्द्र के ग्रहण होने पर उपयोग में आती है। जब व्यक्ति मरणासन्न रहता है तो उसे कुशा बिछाकर पृथ्वी पर लिटाया जाता है। कुश ग्रहण के अवसर पर ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ. कैलाश चंद्र शर्मा सहित अनेक विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश

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