इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट का एडवांस मेडिकल टेकनोलॉजी एवं ट्रीटमेंट पर मंथन
जयपुर, 11 जनवरी (हि.स.)। इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी ट्रीटमेंट से जुड़े आठ सौ से अधिक देशी-विदेशी इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट ने एडवांस मेडिकल टेकनालॉजी और ट्रीटमेंट पर विस्तार से चर्चा की। इंडियन सोसाइटी ऑफ वैस्कुलर एंड इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी का 24वां वार्षिक सम्मेलन एडवांस कंटरवेंशनल रेडियोलॉजी ट्रीटमेंट, प्रोटोकॉल, टिपिकल केसेज और एडवांस ट्रीटमेंट टेक्नोलॉजी पर भी विस्तार से चर्चा हुई। पहले दिन के सेमीनार में 12 सेशंस और वर्कशॉप हुई। वर्कशॉप में डॉ.सौरभ तनेजा और डॉ.किशोर मंगल ने लाइफ सपोर्ट स्किल्स के तहत बेसिक लाइफ सपोर्ट स्किल्स के बारे में बताया।
पहले दिन के सेशंस में एम्बोलिज़ेशन, एम्बोलोथेरेपी, एडवांस एम्बोलिज़ेशन, एमएसके एम्बोलिज़ेशन, पोर्टल इंटरवेंनशन, नेशनल-इंटरनेशनल ओरेशन आदि टॉपिक्स पर चर्चा और पैनल डिस्कशन हुआ। अंत में विषय विशेषज्ञों को सम्मानित किया गया। चार दिवसीय सेमीनार में यूएसए, थाइलैंड, यूएई, जापान सहित 23 देशों से 800 डॉक्टर्स हिस्सा ले रहे हैं। सेमीनार में 30 से ज्यादा मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट्स भी शामिल हैं।
सेमीनार में डॉ.मितेश गुप्ता ने बताया कि आज से कुछ साल पहले तक ब्रेन डेड, लीवर कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और फाइब्रॉइड जैसी बीमारियों के लिए केवल सर्जरी ही एक मात्र समाधान था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी ट्रिटमेंट एक नॉन सर्जिकल ट्रीटमेंट है जो न केवल बिना कट बिना किसी चीर-फाड़ के शरीर की बंद नसों को खोला जा सकता है। इसमें न केवल सफलता के चांस सर्जरी के मुकाबले काफी अधिक है, कम खर्च में जल्द रिकवरी भी संभव है। इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी के द्वारा हार्ट के अलावा सभी नसों को आसानी से खोला जा सकता है।
डॉ.मितेश गुप्ता ने आगे बताया कि यह तकनीक देश में नई है इसलिए थोड़ी महंगी हो सकती है लेकिन सर्जरी के बाद की दवाइयों और अन्य खर्चों के मुकाबले यह सस्ती व कारगर है। इस एडवांस टेक्नोलॉजी की मदद से लकवे का इलाज तीन से चार घंटे में ही किया जा सकता है। पिन हॉल पद्धति (सूई के बराबर का छेद) के जरिए केवल एक वायर द्वारा क्लॉट को बाहर निकाला जाता है और बंद नसों को खोला जाता है। इसमें दिल के अलावा सभी पॉइंट्स जैसे पैर, हाथ, दिमाग, थाइराइड की गांठ, ट्यूमर आदि में एनेस्थीसिया दिए बगैर ट्रीटमेंट किया जा सकता है और मरीज अगले ही दिन डिस्चार्ज होकर जा सकता है।
डॉ.अजित के.यादव और डॉ. बालाजी पटेल कोला ने बताया कि अभी तक रेडियोलॉजिस्ट को केवल एमआरआई या एक्सरे के लिए जाना जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। यह तकनीक अब ट्रिटमेंट तक आ पहुंची है और आगे भी इसका भविष्य काफी सुखद होने वाला है। आईएसवीआईआर स्टूडेंस व डॉक्टर्स को इस टेकनोलॉजी से रुबरु कराते हैं। अब तक नेपाल, बांग्लादेश आदि देशों में कई डॉक्टर्स को इस टेकनोलॉजी से अवगत कराया जा चुका है। भारत में भी करीब करीब सभी मेट्रो सिटीज में इस पद्धति को इस्तेमाल किया जा रहा है। आने वाले 5 से 10 सालों में छोटे शहरों में भी इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी को पूर्ण तौर पर अपनाया जा सकेगा।
हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश/संदीप
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