जातिवाद में बांटे जा रहे लोकतंत्र में महर्षि के विचारों की प्रासंगिकता पहले से ज्यादा
अजमेर, 18 अक्टूबर(हि.स.)। वेदों की ओर लौटे सत्र के मुख्य अतिथि राज्यसभा सदस्य घनश्याम तिवाड़ी ने कहा कि जितने भी समाज सुधारक हुए हैं उनमें राष्ट्रीय चेतना, वैदिक संस्कृति, नारी उत्थान के लिए आन्दोलन, विधवा विवाह का समर्थन और वेदों का हिन्दी रूपान्तरण कर वेदों को आमजन में पहुंचाने का कार्य महर्षि दयानन्द ने किया। चाहे १८५७ की क्रान्ति हो अथवा स्वतन्त्रता संग्राम की ज्योति प्रज्ज्वलित करना, इन सभी कार्यों में महर्षि दयानन्द की अग्रणी भूमिका थी। लोकतन्त्र में आज जो जातिवाद, छुआछूत जहर घोल रहे हैं इस वातावरण में जितनी आवश्यकता महर्षि दयानन्द के विचारों २०० वर्ष पूर्व थी उससे अधिक आवश्यकता आज है।
सत्र वेदों की ओर लौटने का तात्पर्य यही है कि प्रातकालीन वेदों मन्त्रों से दिन का आरम्भ हो और रात्रीकालीन वेदमन्त्रों से दिन की समाप्ति हो। यदि हम ऋषियों द्वारा सुझाए गए वेदमन्त्र एवं दिनचर्या का पालन करेंगे तो दीर्घायु होकर निरोगी रहेंगे।
सत्र के वक्ता नरेश कुमार धीमान ने कहा कि महर्षि दयानंद ने भारत की दुर्दशा को देखा और उसके प्रत्येक पक्ष का विचार किया और उनका विचार मात्र धार्मिक नहीं था और आत्म प्रतिष्ठा के लिए भी नहीं था अपितु वे हर जाति व समूह की के सामूहिक उन्नति और भारत की प्राचीनतम वैदिक संस्कृति के उत्थान और समन्वय के लिए था। महर्षि द्वारा बताये गये वेद मार्ग की आज समाज में महत्ती आवश्यकता है।
रूपचंद्र दीपक ने कहा की प्राचीन काल में रामायण-महाभारत से पहले सब लोग वेद पढ़ते थे, वेदों के आधार पर ग्राम सभाएं होती थी, विवाह होते थे। सत्य का जो वर्णन है वेदों में है कही और नही है। आज लोग कहते है कि गर्मी बहुत हो रही है, सारे संसार में 16-16 आहुति रोज देने से इतनी गर्मी नहीं आएगी जितनी रूस और यूक्रेन के युद्ध से एक दिन में आ रही है। अर्थात् गर्मी रोकने की बात तो हो रही है पर युद्ध नजर नहीं आ रहे। जबकि वेद सन्मार्ग पर चलने व शान्ति का सन्देश देता है। यदि हम अभी हम वापस वेदों की तरफ लौटेंगे तो संसार खुशनुमा हो जाएगा।
डॉ. महावीर मीमांसक ने कहा कि हमे इस बात का गर्व करना चाहिए की महर्षि दयानंद ने वेदों में विज्ञान की घोषणा की। वेद विज्ञान को मानता है यह महर्षि दयानंद ने अपने वेद भाष्य में लिखकर बताया और विज्ञान से तात्पर्य है कि सब कुछ तर्क पूर्ण है। वेद का मूल मंत्र है मनुर्भव: वेद में सीधा और सच्चे शब्दों में कहा गया मनुष्य बनो और इंसान तो बनो ही साथ ही संतान ऐसी हो जिसमे तुमसे ज्यादा मानवता के गुना से भरपूर हो।
डॉ. रघुवीर वेदालंकर ने कहा कि जहां संगठन नहीं होगा वहां समाज टूट और बिखर जाएगा इसलिए हम सभी को एकत्रित और संगठित होने की आवश्यकता है। वेद कहता है की संसार में मनुष्य एक दूसरे की रक्षा करें और मनुष्य को सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
स्मारिका का हुआ विमोचन
महर्षि दयानन्द की द्विजन्मशताब्दी के अवसर पर प्रकाशित स्मारिका और वैद्य रविदत्त की पुस्तक का शुक्रवार को ऋषि मेले के उद्घाटन अवसर पर विमोचन किया। पुरुषोत्तम आर्य ने भारत सरकार के डाक विभाग द्वारा जारी किये गये विभिन्न डाक टिकिटों का संकलन भेंट किया।
इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. योगानन्द शास्त्री पूर्व अध्यक्ष विधानसभा दिल्ली ने की, संचालक डॉ. राजेन्द्र विद्यालंकार थे। सत्र में पूर्व कुलपति डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने भी विचार व्यक्त किए। दिनेश पथिक ने सुमधुर भजनों की प्रस्तृति दी।
सर्वव्यापक निराकार ईश्वर ही गणेश है-
यजुर्वेद पारायण महायज्ञ सत्र में वेदमन्त्र की व्याख्या करते हुए यज्ञ के ब्रह्मा प्रो. डॉ. कमलेश शास्त्री ने कहा कि यजुर्वेद हमें शुद्ध ज्ञान के अनुसार शुभ कर्म करने को प्रेरित करता है। यजुर्वेद 23वें अध्याय के 'गणानां त्वां गणपति हवामहेÓ मन्त्र की व्याख्या करते हुए डॉ. कमलेश ने कहा कि सर्वव्यापक निराकार ईश्वर ही हम सभी प्राणियों का स्वामी- नियन्त्रणकर्त्ता है। ईश्वर भक्त वही है जो अपना ज्ञान गुण, कर्म, स्वभाव आचरण ईश्वर जैसा पवित्र बनाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहे।
वेद मन्त्रों के तीन भाग
- डॉ. कमलेश शास्त्री ने कहा कि प्रत्येक वेदमन्त्र के निम्न तीन भाग हैं-शब्द रूप, अर्थात्मक व क्रियात्मक। वेदज्ञान से हमारा तभी कल्याण होगा जब हम वेदमन्त्र के शब्दों को जान उनके वास्तविक अर्थ-सन्देशों को समझकर उन्हें अपने आचरण में लाएंगे। यज्ञोपरान्त अपने उपदेश में प्रो. डॉ. वेदपाल, मेरठ विश्वविद्यालय ने कहा कि निराकार सर्वव्यापक एक ही ईश्वर है और ईश्वर अवतार नहीं लेता- यही वेद और ऋषियों का मत है।
पुरावस्तुओं की प्रदर्शनी
आर्यवीर हिम्मतसिंह ने पुरा वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई जिसमे प्राचीन आर्य साहित्य, आर्य जगत के प्रारंभिक समाचार पत्र, डाक टिकट, महर्षि दयानंद के चित्र आदि प्रदर्शित किए, जिन्हें अतिथियों ने बखुबी सराहा।
सम्मान
सुश्री रुचि आर्या-त्रिपुरा को डॉ. मुमुक्षु आर्य पुरस्कार, ब्र. विमल जी पाण्डीचेरी को श्रीमान् बिरदी चन्द आर्य ईनाणी छात्रवृत्ति, ब्र. शिवनाथ रोजड को श्रीमती सुगनी देवी आर्य ईनाणी छात्रवृत्ति, आचार्य ब्रह्मदत्त आर्य को डॉ. प्रियव्रतदास वेद-वेदांग पुरस्कार, ब्रह्मचारी नवनीत आर्य को विश्वकीर्ति आर्य युवा पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया।
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हिन्दुस्थान समाचार / संतोष
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