स्वास्थ्य विशेषज्ञों की व्यापक दुर्लभ रोग नीति पर संपूर्ण अमल करने की अपील
जयपुर, 12 फ़रवरी (हि.स.)। 29 फरवरी को रेयर डिजीज डे के रूप में मनाया जाता है, इसलिए स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने व्यापक दुर्लभ रोग नीति पर संपूर्ण रूप से अमल करने की अपील की है। उन्होंने इसे वक्त की जरूरत बताया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार दुर्लभ रोग आमतौर पर एक हजार लोगों में से एक व्यक्ति को होता है। भारत में करीब सत्तर मिलियन लोग असाध्य रोगों से जूझ रहे हैं, जिसका कोई इलाज नहीं है। जिसमें मांसपेशियों को कमजोर बनाने वाली स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (एसएमए) खासतौर पर शामिल है।
स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी बेहद कम लोगों में पाई जाने वाली दुर्लभ आनुवांशिक स्थिति है, जिसमें रीढ़ की हड्डी में मौजूद मोटर न्यूरॉन्स का लगातार नुकसान होता है। इसके नतीजे के तौर पर मांसपेशियों में बेहद गंभीर रूप से कमजोरी आ जाती है। इससे संभावित रूप से मरीजों की जान को खतरा होता है। स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी का कोई इलाज नहीं है या इलाज के बेहद कम विकल्प हैं। भारत में हजारों लोग इस रोग से पीड़ित है। दुर्लभ रोगों की जल्द पहचान और इसका तुरंत इलाज शुरू करने के लिए लोगो को जागरूक देना, उन्हें इसके लिए मदद देना इस संबंध में असरदार रणनीति लागू करना वक्त की जरूरत है।
जयपुर में एसएमएस मेडिकल कॉलेज के डॉ. प्रियांशु माथुर ने बताया कि हमारे देश में दुर्लभ बीमारियों के लिए बनाई गई राष्ट्रीय नीति को जल्द लागू किया जाना जरूरी है। दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी होने के चलते हमारे यहां काफी लोग दुर्लभ बीमारियों से जूझ रहे हैं। अगर इन बीमारियों का इलाज समय से कराया जाए तो इन बीमारियों का इलाज संभव है। इसके लिए बीमारियों की जल्द जांच होना काफी जरूरी है। मरीजों के इलाज की सुनियोजित योजना समय से बनाई जाए। रोग के लक्षणों और कारणों से निपटने के लिए बहुआयामी रवैया अपनाया जाए। इस नीति को लागू करने में कई मुश्किलें और भी हैं। स्वास्थ्य रक्षा की दूसरी प्राथमिकताओं पर आने वाले खर्च की तुलना में इन बीमारियों पर होने वाला खर्च काफी ज्यादा है। दुर्लभ बीमारियों के इलाज की सुविधाएं जुटाने में होने वाले खर्च को केंद्र और राज्य सरकार में बांटने में काफी चुनौतियां है। ये कारक इस रोग के संबंध में बनाई गई राष्ट्रीय नीति को लागू करने में कठिनाई बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं।
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के दुर्लभ रोग केंद्र में बाल रोग विभाग के प्रोफेसर डॉ. अशोक गुप्ता ने दुर्लभ रोग,खासतौर से एसएम टाइप 1 के इलाज के प्रबंधन के लिए समग्र नजरिये को अपनाने के महत्व कहा कि असाध्य बीमारियों के प्रबंधन के लिए इसे पूर्ण परिपेक्ष्य में देखे जाने की जरूरत होती है। एसएमए से पीड़ित मरीजों में फिजियोथेरेपी इन रोगों के होने की रफ्तार को धीमा कर सकते है और मांसपेशियों की मजबूती और लचीलेपन को बरकरार रख सकती है। फिजियोथेरेपिस्ट चलने-फिरने में मदद करने वाले साधन, जैसे व्हीलचेयर, ब्रेसेज प्रदान कर सकते हैं। इसके साथ ही रोग का इलाज किए बिना असाध्य रोग में मरीजों को दर्द से राहत दिलाने में विशेषज्ञ काफी मददगार हो सकते हैं क्योंकि वह रोग के लक्षणों को मैनेज करने में मदद करते हैं और मरीजों को दर्द से राहत दिलाते हैं। समर्पित न्यूट्रिशिनस्ट मरीजों की पोषण संबंधी जरूरतों और उनको हो रही खास परेशानियों को ध्यान में रखते हुए डाइट प्लान बना सकते हैं। बीमारी के प्रबंधन के लिए अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े लोगों, जैसे न्यूट्रिशिनस्ट, दर्द से राहत दिलाने वाले विशेषज्ञ और फिजियोथेरेपिस्ट की साझेदारी से मरीजों के जीवन जीने के स्तर में उल्लेखनीय रूप से सुधार लाया जा सकता है। इसके साथ ही जांच की सुविधाएं बढ़ाने और इलाज को बेहतर बनाने की जरूरत है। प्राइवेट सेक्टर में सभी संसाधनों से लैस चिकित्सा संस्थानों को सीओई के रूप में वर्गीकृत कर यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।
दुर्लभ रोगों से मनुष्य का शरीर दिन पर दिन कमजोर होता जाता है, जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए मजबूत नीति के आधारभूत ढांचे के साथ मरीजों की बेहतर देखभाल की सुविधा रोगियों को उम्मीद की किरण दे सकती है। इससे इन बीमारियों से जूझते लोगों की असहनीय कठिनाइयों का बोझ कम किया जा सकता है।
वर्ष 2021 में रेयर डिजीज डे के संबंध में राष्ट्रीय नीति बनाई गई थी, लेकिन इसके बावजूद स्पाइल मस्कुलर एट्रॉफी (एसएमए) की कुछ खास चुनौतियां बरकरार है। एनपीआरडी का उद्देश्य इन बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या में कमी लाना और इसका व्यापक रूप से प्रसार रोकना है। इसके लिए दुर्लभ रोगों के लिए बनाई गई राष्ट्रीय नीति के तहत जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। जांच शिविर लगाए जाते है और मरीजों की काउंसलिंग की जाती हैं। हालांकि एसएमए से प्रभावित मरीजों की अलग जरूरतों को पूरा करने के लिए लक्ष्य पर केंद्रित प्रयास करने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने असाध्य रोगों के इलाज में मदद करने के लिए देश भर में 11 सेंटर ऑफ एक्सिलेंस स्थापित किए हैं। इसमें मरीजों को परामर्श दिया जाता है। उनकी जांच की जाती है। यहां असाध्य रोगों से जूझ रहे मरीजों के लिए गहन चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध है। हालांकि इसमें मरीजों का रजिस्ट्रेशन करने में कई चुनौतियां आड़े आ रही है। खासतौर से दूरदराज में रहने वाले ग्रामीण, जो अशिक्षा और गरीबी से जूझ रहे हैं, उनके लिए सेंटर ऑफ एक्सिलेंस में रजिस्ट्रेशन कराना खासा मुश्किल है।
हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश सैनी
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