बुजुर्ग दंपती ने एक साथ लिया 'संथारा', पति ने पहले छोड़ा संसार-अब पत्नी भी तैयार

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बुजुर्ग दंपती ने एक साथ लिया 'संथारा', पति ने पहले छोड़ा संसार-अब पत्नी भी तैयार


बाड़मेर, 14 जनवरी (हि.स.)। जिले के जसोल कस्बे में 18 दिन पहले एक बुजुर्ग दंपती ने स्वेच्छा से संसार छोड़ने का मन बनाया था। ऐसा करने के लिए दोनों ने एक साथ संथारा लिया। शनिवार को 83 वर्षीय पति ने संसार छोड़ दिया। पति के देहांत के बाद पत्नी भी पार्थिव शरीर के पास बैठ गई और णमोकार मंत्र का जाप शुरू कर दिया है। दंपती ने साथ में संथारा ग्रहण किया था और इच्छा थी कि दोनों साथ में देह त्यागे। हालांकि शनिवार सुबह 5 बजे 83 साल के पुखराज संकलेचा ने देह त्याग दी।

संथारा शव यात्रा कार्यक्रम में हजारों की संख्या में लोग उमड़े। बैकुंठी यात्रा में ढोल नगाड़े, बैंड, डीजे के साथ लोग णमोकार मंत्र का जाप करते हुए मुक्तिधाम की ओर बढ़ें। इस यात्रा में ट्रैक्टरों पर भी जैन समाज के लोग भजनों के साथ बैकुंठी यात्रा के लिए रवाना हुए थे। पुखराज संकलेचा के पुत्रों सुशील,कांतिलाल ने चंदन और पीपल की लकड़ी से मुखाग्नि दी। इस दौरान पंचायत समिति प्रधान भगवत सिंह चौहान जसोल, सरपंच ईश्वर सिंह चौहान सहित कई जनप्रतिनिधि और लोग उपस्थित थे।

दरअसल, 18 दिन पहले 83 वर्ष के पुखराज संकलेचा और उनकी 81 वर्षीय पत्नी गुलाबी देवी ने संथारा ग्रहण किया था, तभी से दूर-दूर से लोग इस दंपती के दर्शन करने जसोल में संकलेचा निवास पर पहुंच रहे थे। संकलेचा परिवार के भी 150 से ज्यादा सदस्य देशभर से जसोल पहुंच चुके थे। जैन समाज का ये दंपती स्वेच्छा से मृत्यु का वरण करने की परंपरा ‘संथारा’ में एक नया अध्याय जोड़ रहा है। जैन इतिहास में इसे पहला अवसर बताया जा रहा है जब पति-पत्नी ने एक साथ संथारा ग्रहण किया है। पदयात्रा के जरिए देशभर में भ्रमण कर चुके आचार्य महाश्रमण भी मानते हैं कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं सुना जब पति-पत्नी ने एक साथ संथारा लिया हो। पुखराज आठ भाइयों में सबसे बड़े हैं। दो भाइयों की मृत्यु हो चुकी है। उनके पांचों छोटे भाई हीरालाल, दलीचंद, पृथ्वीराज, माणकचंद और तुलसीराम तथा पुत्र कांतिलाल, सुशील कुमार सहित पोते-पोतियां, दोहिते-दोहितियां सभी इस वक्त जसोल में हैं। पुखराज के एक चचेरे भाई पृथ्वीराज ने भी करीब 32 वर्ष पूर्व सांसारिक जीवन में रहते हुए दीक्षा ली थी। उनके पुत्र कुमारपाल संकलेचा कहते हैं- हम मृत्यु को भी एक महोत्सव मानते हैं।

गुलाबी देवी ने दस साल पहले जब उनकी दोहिती ने दीक्षा ली थी तभी तय कर लिया था कि दीक्षा के दस वर्ष पूरे होने पर संथारा लेंगी, लेकिन परिवार ने उन्हें संथारा लेने से रोका हुआ था। पुखराज का संथारा का कोई विचार नहीं था। इसी बीच गत 7 दिसंबर को पुखराज को हार्ट अटैक आ गया और उन्हें जोधपुर के निजी अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया, लेकिन कोई चमत्कार ही था कि वे 83 की उम्र में 16 दिसंबर को स्वस्थ होकर घर लौट आए। घर लौटने पर परिवार ने उनका ढोल-नगाड़ों से भव्य स्वागत किया, लेकिन जीवन से विरक्ति हो चुकी थी। 27 दिसंबर को उन्होंने भोजन-दवा छोड़ दी और कहा मैं अब संथारा पर हूं। उन्हें सुमति मुनि के सान्निध्य में संथारा दिलाया गया। उनके पीछे-पीछे पत्नी गुलाबी देवी ने भी भोजन-पानी छोड़ दिया, लेकिन इसी दौरान तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण आने वाले थे। सो उन्होंने तीसरे दिन पानी लेना शुरू कर दिया। 6 जनवरी को आचार्य महाश्रमण ने उन्हें संथारा ग्रहण करवाया।

क्या होता है संथारा

जैन धर्म में सबसे पुरानी प्रथा मानी जाती है संथारा प्रथा (संलेखना)। जैन समाज में इस तरह से देह त्यागने को बहुत पवित्र कार्य माना जाता है। इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु निकट है तो वह खुद को एक कमरे में बंद कर खाना-पीना त्याग देता है। जैन शास्त्रों में इस तरह की मृत्यु को समाधिमरण, पंडितमरण अथवा संथारा भी कहा जाता है।

हिन्दुस्थान समाचार/रोहित/ ईश्वर

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