दीपावली स्पेशल: बाजारों में सजे मिट्टी के रंग-बिरंगे दीपक
जयपुर, 9 नवंबर (हि.स.)। नए जमाने की हवा भले ही पुराने रीति-रिवाजों को पीछे छोड़ने पर उतारू हो मगर दीपावली पर आज भी मिट्टी के एक छोटे से दीपक की लौ के आगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की चका-चौंध के बाजार की चमक फीकी ही है। कोई भी त्योहार हो, कुम्हारों के चाक और बर्तनों के बिना पूरे नहीं होते। ऐसी मान्यता है कि मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।
कुम्हार के चाक से बने खास दीये दीपावली में चार चांद लगाते हैं। दीपावली का त्योहार को कुछ दिन शेष है ऐसे में कुम्भकारों के चाक ने गति पकड़ ली है और मिट्टी के दीपक बनाने का काम तेज कर दिया है। जिसके चलते बाजारों में मिट्टी के रंग बिरंगे दीपकों के ढेर लगे हुए है और लोग इन्हे खरीदते नजर आए रहे है।
पांच तत्वों से मिलकर बनता है मिट्टी का दीपक
मिट्टी का दीपक पांच तत्वों से मिलकर बनता है जिसकी तुलना मानव शरीर से की जाती है। पानी, आग, मिट्टी, हवा तथा आकाश तत्व ही मनुष्य व मिट्टी के दीपक में मौजूद होते हैं। दीपक जलाने से ही समस्त धार्मिक कर्म होते हैं। दीपावली के शुभ अवसर पर मिट्टी के दीयों का ही अत्यंत महत्व है। वास्तु शास्त्र में इसका महत्व इस बात से है कि यदि घर में अखंड दीपक को जलाने व्यवस्था की जाए तो वास्तु दोष समाप्त होता है।
दीपावली पर इन दिनों कुम्हार बिक्री के लिए अलग-अलग वैरायटी के दीपक तैयार करने में लगे हुए हैं। इस बार महंगाई के चलते मिट्टी के दीयों में बढोतरी की गई है। कुम्हार रमेश ने बताया कि बाजार में ग्राहकों को 70 रुपये से 90 रुपये में सौ दीये दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि दीया बनाना ही परेशानी का सबब नहीं बल्कि बिक्री करने में भी काफी दिक्कतें होती है। लोग इतनी कम कीमत के बाद भी मोलभाव करते हैं।
दीयों की जगह पहले चायनीज लड़ियों ने ले ली थी
एक समय ऐसा भी था जब मिट्टी के दीयों की जगह चायनीज लड़ियों ने ले ली थी और लोग मिट्टी के दीये कम खरीद रहे थे। लेकिन दो-तीन सालों में फिर से मिट्टी के दीयों का दौर लौट आया है। इस बार दीयों की वैरायटी भी इतनी है कि ग्राहक खरीदने से पहले कंफ्यूज हो रहे हैं कि क्या खरीदे। वहीं बाजारों में इस बार की स्थिति देखकर यह अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि चीनी वस्तुओं की अनदेखी हो रही है। ग्राहक चीनी दीये लेने की बजाए लोकल दीये खरीद रहे हैं।
मिट्टी के दीपकों का ही दीपावली में महत्व होता है। इसे बच्चे व युवा खूब अच्छे से जान रहे हैं। लोगों की माने तो रौशनी के त्योहार का असली मजा दीपको की रौशनी से है, ना कि इलक्ट्रोनिक लड़ियों से। भगवान राम का स्वागत अयोध्यावासियों ने दीपक जलाकर ही किया था।
शास्त्रों के अनुसार सरसों का तेल अथवा देशी घी डाल कर मिट्टी के दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और मच्छरों का नाश होता है। दीपावली पर सभी को मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए और लोगों को भी प्रेरित करना चाहिए।
पहले फ्री में मिलती थी मिट्टी अब एक हजार रुपये प्रति ट्रॉली
पिछले कई वर्षों से मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य करने वाले वृद्ध कैलाश ने बताया कि उनकी चौथी पीढ़ी मिट्टी से बर्तन बनाने का कार्य कर रही है। पिछले कई वर्षों से मिट्टी के दीपक बनाने में काम में बहुत उतार-चढ़ाव देखे है। कुछ वर्षों पूर्व मिट्टी के दीपक की मांग बिल्कुल कम हो गई थी। लोग अपने घरों में इलेक्ट्रानिक लडिय़ों से घरों को रोशन करने लगे थे। लेकिन चाइनीज वस्तुओं के बहिष्कार करने के अभियान के बाद से मिट्टी के दीपक की मांग एक बार फिर बढ़ गई है। लेकिन सरसों के तेल व दीपक के बढ़ते हुए भावों के कारण इनकी मांग अपेक्षाकृत कम है। उन्होंने बताया कि मिट्टी के बर्तन बनाने में लागत पहले की अपेक्षा काफी बढ़ गई है। कुछ समय पूर्व तक मिट्टी निःशुल्क मिल जाती थी। बैलगाड़ी पर जाकर मिट्टी ले आते थे तो उस पर लागत नहीं आती थी। आज बर्तन बनाने वाली मिट्टी के भाव एक हजार रुपए प्रति ट्रॉली हो गए है। बर्तन को पकाने के लिए लकड़ी के भाव भी आसमान पर है। जिससे लागत अधिक आती है। उन्होंने बताया कि एक कारीगर एक दिन में एक हजार के लगभग दीपक बनाता है। बढ़ रही लागत को देखते हुए इस बार होलसेल के दामों में भी दीपक के दाम बढ़ाने की मजबूरी है। उन्होंने बताया कि आगामी पीढ़ी इस कारीगरी के कार्य से दूर होती जा रही है। कई परिवार मिट्टी के बर्तन बनाने के काम को छोड़ गए है।
ऐसे देते है मिट्टी को बर्तन का आकार
मिट्टी को बर्तन का आकार देने में तीन से चार दिन लगते है। मिट्टी को एक बर्तन में डाल कर भीगने के लिए छोड़ दिया जाता है। लगभग 48 घंटे बाद उसे उस बर्तन से निकालकर गूंथकर सुखाया जाता है। इसके बाद अगले दिन उसे चाक पर चढ़ाया जाता है,जिसके बाद उसे घड़ा,सुराही,दीपक या अन्य किसी मिट्टी के बर्तन का आकार दिया जाता है। मिट्टी के बर्तन को सूखने के बाद उसे पक्का करने के लिए आग पर पकाया जाता है। उसके बाद कई कारीगर उस पर रंग या अन्य कारीगरी भी करते है। जिसके बाद वह बर्तन बाजार में बिकने के लिए तैयार हो जाता है।
मिट्टी के दीये बेचने वाले दुकानदारों ने बताया कि इस बार की दीपावली पर काफी बिक्री होने उम्मीद है। उन्होंने बताया कि पिछली दीपावली पर तो जब वे घरों में दीये बेचने जाते थे तब भी बहुत कम बिक्री होती थी लेकिन इस बार तो लोग उनकी दुकान पर आकर दीयों के साथ साथ अन्य मिट्टी का सामान भी खरीद रहे हैं।
पंडित राजेश शर्मा ने बताया कि मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है। मंगल साहस, पराक्रम में वृद्धि करता है और तेल को शनि का प्रतीक माना जाता है। शनि को भाग्य का देवता कहा जाता है। मिट्टी का दीपक जलाने से मंगल और शनि की कृपा आती है।
हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश/संदीप
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