दिवेर युद्ध विजय महाराणा प्रताप के जीवन का गौरवमय पृष्ठ

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दिवेर युद्ध विजय महाराणा प्रताप के जीवन का गौरवमय पृष्ठ


उदयपुर, 27 अक्टूबर (हि.स.)। हल्दीघाटी के युद्ध के करीब छह वर्ष पश्चात दिवेर का युद्ध हुआ, जो वास्तव में मुगलों के साथ प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप एवं मेवाड़ के लिए निर्णायक युद्ध था। दिवेर युद्ध के लिए महाराणा प्रताप ने सुनियोजित तैयारी की, जिसका सुखद परिणाम आक्रांताओं पर उनकी भव्य विजय के रूप में सामने आया और वह दिन विजयदशमी का था।

यह विचार इतिहासविद नारायणलाल उपाध्याय ने मेवाड़ टॉक फेस्ट की ओर से ‘ऐतिहासिक दिवेर विजय’ विषय पर पर आयोजित संवाद-परिचर्चा कार्यक्रम में व्यक्त किये। उपाध्याय नेएक घटना का वर्णन करते हुए कहा कि सुलतान खान से जब महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह युद्ध कर रहे थे तब अमर सिंह ने एक भाले के वार से सुलतान खान का वध किया था। भाला सुलतान खान के बाद उसके घोड़े को भी बींधता हुआ धरती में धंस गया था। सुल्तान खान को ऐसा लगा मानो किसी मनुष्य ने नहीं अपितु दैवीय शक्ति ने ये प्रहार किया हो। इस घटना ने मुगल सेना में असीम भय का संचार किया और वह युद्ध का मैदान छोड़ कर भाग खड़ी हुई।

उपाध्याय ने भारतीय युद्ध परम्परा में भी नीति-नियमों की चर्चा करते हुए कहा कि मरते हुए शत्रु सुल्तान खान को गंगाजल पिलाकर महाराणा प्रताप द्वारा उसके लिए भी मोक्ष की कामना की गई, जो भारतीय संस्कृति की महानता को दर्शाती है।

अकबर ने इस वीभत्स पराजय के बाद फिर कभी मुड़ कर मेवाड़ की ओर नहीं देखा। दो दिनों तक चले दिवेर युद्ध के बाद महाराणा प्रताप ने मुगलों की अधिकांश चौकियां और थाने नष्ट कर दिए, जब वे कुम्भलगढ़ के दुर्ग पर पहुंचे तो मुगल सेना वहां से युद्ध किए बिना ही पलायन कर चुकी थी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति के उपाध्यक्ष एवं इतिहास संकलन समिति उदयपुर के उपाध्यक्ष मदन मोहन टांक ने की। टांक ने कहा कि ज्यादातर इतिहास में भारत को संघर्ष या गुलाम की मानसिकता में दिखाया गया है, बल्कि वास्तव में ऐसा नहीं है ऐसी कई घटनाओं से पता चलता है कि भारत सदैव ही गौरवान्वित रहा है और ऐसे विषय युवा, समाज तक पहुंचें, ऐसी जरूरत भी है। भारत पहले भी विश्व गुरु था, आज भी है, जिसे हम अनुभव कर रहे हैं। टांक ने कहा कि वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के लिए वीर विनोद, राजप्रशस्ति जैसी पुस्तकों में विषद वर्णन मिलता है।

कार्यक्रम में एक सत्र प्रश्नोत्तर का हुआ, जिसमें उपस्थित प्रतिभागियों ने अपनी जिज्ञासा का समाधान किया। कार्यक्रम का संचालन चंद्र प्रकाश जावरिया ने किया एवं धन्यवाद नरेश यादव ने ज्ञापित किया। कार्यक्रम में डॉ मनीष श्रीमाली, डॉ बृज गोपाल, विकास छाजेड़, सुरेश चौहान, लक्ष्मण सोलंकी, डॉ सतीश अग्रवाल आदि ने विचार व्यक्त किये।

हिन्दुस्थान समाचार/सुनीता कौशल/ईश्वर

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