हमारी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण आवश्यकः लखावत

हमारी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण आवश्यकः लखावत
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हमारी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण आवश्यकः लखावत


जोधपुर, 19 जनवरी (हि.स.)। पूर्व सांसद और राजस्थान धरोहर संरक्षण विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावत ने कहा कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को बचाना बेहद जरूरी है। इसके संरक्षण पर चर्चा करना और उसको धरातल पर उतारा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी सांस्कृतिक विरासत 1947 के बाद की बनी हुई नहीं है, लेकिन यदि इसके बारे में उस वक्त विचार किया जाता तो आज चर्चा की आवश्यकता नहीं पड़ती।

पूर्व सांसद लखावत आपदा प्रबंधन और सांस्कृतिक धरोहर पर एक दो दिवसीय कार्यशाला के समापन समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि विरासत को केवल इमारतों से परिभाषित नहीं किया जा सकता। हमारा जीवन, हमारे महापुरुष और हमारा साहित्य सब हमारी विरासत है। यह कार्यशाला राजस्थान के इतिहास और साहित्य के संरक्षण के लिए एक अमृत जैसी साबित होगी।

कार्यशाला का आयोजन जोधपुर के ऐतिहासिक मेहरानगढ़ दुर्ग में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, आईआईटी जोधपुर, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, (सांस्कृतिक मंत्रालय) और मेहरांगढ़ म्यूज़ियम ट्रस्ट की ओर से किया गया था। कार्यशाला में विशेषज्ञों ने विभिन्न ऐतिहासिक इमारत में हुए नुकसान के बारे में बताया और कहा कि समय रहते आपदा राहत के इंतजाम रहते तो इस तरह के नुकसान से बचा जा सकता था, उन्होंने भविष्य की जरूरत पर भी जोर दिया।

कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में पूर्व महाराजा गज सिंह ने कहा कि हमें सांस्कृतिक धरोहर को सहजने के लिए पहले भाषाओं को सहेजने की आवश्यकता है। अगर हम भाषाओं को सहेज लेते हैं तो संस्कृति को सहजने में सरलता रहती है, इस तरह की कार्यशाला से आपदा से खत्म हो रही सांस्कृतिक धरोहर को किस तरह से बचाया जा सकता है। इसमें एक महत्वपूर्ण कदम होगा

एनआईडीएम के कार्यकारी निदेशक राजेंद्र रतनू ने बताया कि इस तरह की कार्यशाला हमारी विरासत को बचाने के लिए मिल का पत्थर साबित होगी। उन्होंने कहा कि आपदा से होने वाले खतरों के न्यूनीकरण पर हमें ज्यादा बात करनी चाहिए। इसके लिए हमें आधुनिक तकनीकी को आत्मसात करना होगा। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को भी जब हमारी सांस्कृतिक धरोहर से रोजगार मिलेगा तो वे इससे अवश्य जुड़ना चाहेंगे। उन्होंने भारत आज पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था है। 2047 में एक विकसित और आत्मनिर्भर भारत का सपना है। इसमें हमारी सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन की बहुत बड़ी भूमिका होगी।

हिन्दुस्थान समाचार/ईश्वर/प्रभात

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