जिन महान विभूतियों को कांग्रेस ने भारत रत्न सम्मान से वंचित रखा, भाजपा ने उन्हें सम्मान दिया :सीपी जोशी
जयपुर, 10 फ़रवरी (हि.स.)। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने किसानों के मसीहा और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पीवी नरसिम्हा राव और हरित क्रांति के जनक डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न दिए जाने के निर्णय को अभिनंदनीय बताते हुए प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त किया।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह का देश पर बहुत बड़ा ऋण है। उन्होंने देश को बर्बाद होने से बचाया था। 1957 में जब जवाहर लाल नेहरू सोवियत संघ की यात्रा से अभिभूत होकर लौटे थे, वहां कॉमरेड ने जो पाठ पढ़ाया था उससे प्रेरित होकर उन्होंने कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में सामूहिक खेती का प्रस्ताव रखा, जिसका चौधरी चरण सिंह ने पुरजोर विरोध किया और उनके द्वारा प्रस्तावित संशोधन बहुमत से पारित हो गया। इससे नेहरू गुस्सा हो गए और अपने अपमान का बदला लेने के लिए चौधरी चरण सिंह का उत्तर प्रदेश सरकार में विभाग बदल दिया। चौधरी चरण सिंह फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए उठाने वाले लोगों में से एक थे। उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व मंत्री के तौर पर उन्होंने राज्य में भूमि सुधारों को लागू करने का एक ईमानदार प्रयास किया था। चौधरी चरण सिंह गैर कांग्रेसवाद के प्रमुख प्रवर्तकों में से थे। कांग्रेस ने उनसे झूठा वादा करके अपनी ही पार्टी से दूर किया और उनकी सरकार गिरा दी। वामपंथियों ने उन्हें ’’कुलक’’ नेता बताकर उनका कद कम आंकने की कोशिश की।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पीवी नरसिम्हा राव एक प्रतिष्ठित विद्वान और कुशल राजनेता थे। उनका दूरदर्शी नेतृत्व भारत को आर्थिक रूप से उन्नत बनाने व देश के विकास के लिए मजबूत नींव रखने में सहायक रहा। संजय बारू की ’’द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’’ पुस्तक स्वर्गीय नरसिम्हा राव के प्रति गांधी खानदान और उनके कमाण्डोज की नफरत को उजागर करती है। इस पुस्तक के पृष्ठ संख्या 72-73 में पूरा ब्योरा है कि कैसे अहमद पटेल ने यह कोशिश की राव साहब का अंतिम संस्कार दिल्ली में ना हो पाए।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा कि डॉ. एमएस स्वामीनाथन को हरित क्रांति का जनक कहा जाता है, उन्होंने चुनौतीपूर्ण समय में भारत को कृषि में आत्मनिर्भरता हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। नेहरू ने तो कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए दूसरी पंचवर्षीय योजना में बजट आवंटन में भारी कटौती कर दी थी। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने 1962 में संसद में अपनी भूल भी स्वीकार की, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और भारत अनाज के आयात पर निर्भर हो चुका था, देश के विभिन्न भागों में सूखे का कहर व्याप्त रहता था और नेता गण जनता को दिन भर में एक ही बार भोजन करने की सलाह देने लगे थे। यह स्थिति तब तक बरकरार रही जब तक कि डॉ. स्वामीनाथन ने हरित क्रांति के लिए खेत तैयार नहीं कर दिया।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा कि स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर जी को कांग्रेस ने जो यातनाएं दी, उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में भी जिक्र किया था।
हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश/संदीप
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