बडोली मंदिर की प्रचीन मूर्तियां खंडित, श्रद्धालुओं ने जीर्णोद्धार की मांग की
कोटा, 13 अगस्त (हि.स.)। दसवीं एवं ग्यारहवीं शताब्दी की स्थापत्य कला के प्रतीक माने जाने वाले बाडोली मंदिर में महादेव, गणेश, शिव, विष्णु एवं महादेवी की प्राचीन प्रतिमायें कुछ वर्ष पूर्व खंडित हो जाने से यहां आने वाले सैलानी एवं श्रद्धालु आहत हो जाते हैं। सावन के मौसम में हजारों पर्यटक रावतभाटा की प्राकृतिक वादियों में सैर करने निकलते हैं। रावतभाटा के निकट बाडोली मंदिर समूह दर्शनीय विरासत होने से यहां विदेशी सैलानी भी प्राचीन मंदिरों की अनूठी स्थापत्य कला की बारीकियों को कैमरे में उतारकर अपने साथ ले जाते हैं।
पुरातत्व विभाग के शिलालेख के अनुसार, बाडोली मंदिर समूह में नौ छोटे-बडे प्राचीन शैली के मंदिर हैं। इनमें महादेव, गणेश, विष्णु, महिषासुर, दुर्गा आदि की प्रतिमायें स्थापित की गई थी लेकिन इसको क्षतिग्रस्त कर देने से इसके गौरव को गहरी ठेस पहुंची है। इस परिसर में सबसे विशाल घटकेश्वर महादेव मंदिर है जिसका निर्माण दसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में हुआ था। मंदिर में गर्भगृह, अंतराल एवं अर्द्धमंडप की योजना से बनाया गया जबकि श्रंगार चौकी के नाम से प्रसिद्ध रंगमंडप परवर्तीकालीन है।
भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारी ने बताया कि इस मंदिर का नामकरण संभवतः गर्भगृह में स्थापित घट अथवा घडे की आकृति के शिवलिंग के कारण किया गया। अर्द्धमंडप के सामने दर्शनीय स्तम्भ पर टिके प्रचुरता से अलंकृत मकरतोरण एवं अन्य स्तम्भों पर उत्कीर्ण स्त्री मूर्तियां क्षतिग्रस्त दिखाई देती है। अर्द्धमंडप की छतों पर स्थापत्य कला शैली के अलंकरण बेहद दर्शनीय हैं।
मंदिर परिसर के बीच में चट्टानों से बहता पानी इसके प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगा देता है। हरियाली से आच्छादित इस दर्शनीय स्थल पर जल प्रवाह, जल कुंड सहित प्राचीन शैली के विशाल गुम्बद पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। लेकिन श्रद्धालुओं का कहना है कि प्राचीन शिवलिंग यहां मंदिर से बाहर खुले में रखे हुये है। उनकी सुरक्षा के लिये पुरातत्व विभाग को मंदिर के पुनरूद्धार करने की कार्ययोजना बनाकर मुख्यमंत्री को प्रस्ताव भेजना चाहिये। जिससे इस प्राचीन धरोहर का मूल स्वरूप बहाल हो सके। हाडौती के पर्यटन मानचित्र में बाडोली के मंदिर विशिष्ट पहचान रखते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द / संदीप
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