दुनिया में एक अलग पहचान बनाई खीचन गांव ने, सात समंदर पार कर हजारों की संख्या में कुरजां पहुंची

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दुनिया में एक अलग पहचान बनाई खीचन गांव ने, सात समंदर पार कर हजारों की संख्या में कुरजां पहुंची


दुनिया में एक अलग पहचान बनाई खीचन गांव ने, सात समंदर पार कर हजारों की संख्या में कुरजां पहुंची


बीकानेर, 14 दिसंबर (हि.स.)। जोधपुर जिले की फलोदी तहसील स्थित खीचन गांव ने एक अलग पहचान कुरजां (डेमोइसेल क्रेन) की वजह से बनायी है। हर वर्ष सर्दियों में सात समंदर पार से यहां आने वाली कुरजां एक बार फिर हजारों की संख्या में पहुंच गयी है। यह गांव बड़ी संख्या में कुरजां के लिए जाना जाता है जो हर सर्दियों में यहां आते हैं। पक्षियों के आने का यह सिलसिला 1970 के दशक में लगभग 100 कुरजां के साथ शुरू हुआ जब एक स्थानीय दंपति ने कबूतरों को दाना खिलाना शुरू किया था। अन्य ग्रामीण भी उनके इस प्रयास में शामिल हुए, और 2014 की रिपोर्ट के अनुसार खीचन में अब हर साल अगस्त के शुरुआती दिनों में 20 हजार से अधिक डेमोइसेल क्रेन आती है और अगले वर्ष के मार्च महीने तक रहती है। दक्षिण पश्चिम यूरोप, काला सागर क्षेत्र, पोलैंड, यूक्रेन, कजाकिस्तान, उत्तर और दक्षिण अफ्रीका और मंगोलिया से प्रवास करके यहां आती हैं। अक्टूबर और मार्च के महीने में इन पक्षियों को यहाँ भारी मात्रा में देखा जा सकता है।

बुधवार को वाईल्ड लाईफ फोटोग्राफर राकेश शर्मा ने खींचन गांव में झील के किनारे अवलोकन किया और बताया कि ये पक्षी यूरोप की भीषण ठण्ड से बचने के लिए इतनी लम्बी दूरी की यात्रा करते हैं। हर साल बड़ी संख्या में ये प्रवासी पक्षी भारत आते हैं लेकिन इनमें से 4 से 6 हजार पक्षी ही इस अभयारण्य में आते हैं। यहां आने पक्षी कुर कुर की आवाज निकालता है और उसका वजन 4 से 6 किलोग्राम के मध्य होता है और इसकी लम्बाई 3 फीट तक होती है। इनकी विशेष प्रकार की आवाज के कारण ही स्थानीय लोग इसे कुरजां के नाम से पुकारते हैं। ये पक्षी लम्बी दूरी की यात्रा करने की क्षमता रखता है। ये पक्षी 40 से 60 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ़्तार से उड़ता है। कुरजां में कई और विशेष गुण होते हैं जो इसे अन्य पक्षियों से अलग और उनसे सुन्दर बनाते हैं। खीचन पक्षी अभयारण्य प्रकृति प्रेमियों के बीच काफी लोकप्रिय है और हर साल यहाँ लाखों पर्यटक इन पक्षियों को देखने के लिए इस अभयारण्य में आते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/राजीव/संदीप

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