पांच साल से कम उम्र के बच्चों में फ्लू के कारण अस्पताल में भर्ती होने का खतरा सात गुना ज्यादा

पांच साल से कम उम्र के बच्चों में फ्लू के कारण अस्पताल में भर्ती होने का खतरा सात गुना ज्यादा


जयपुर, 23 नवंबर (हि.स.)। इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (आईएपी) और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 6 महीने से 5 साल तक की उम्र के बच्चों को हर साल टीका लगवाने का सुझाव दिया है। बच्चों में पूरे साल फ्लू का खतरा रहता है, विशेष रूप से सर्दियों में और मानसून में यह खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। टीकाकरण के बाद शरीर में एंटीबॉडी विकसित होने में करीब 2 हफ्ते का समय लग जाता है, इसलिए मानसून या सर्दियों का मौसम आने के 2 से 4 हफ्ते पहले टीका लगवा लेना चाहिए। 5 साल से कम उम्र के बच्चों में न केवल फ्लू के कारण ज्यादा परेशानी होने का खतरा रहता है, बल्कि वे अन्य लोगों को संक्रमित भी कर सकते हैं।

सालाना 4-इन-1 फ्लू टीकाकरण की जरूरत को लेकर डॉ. एल सी बैद चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के कंसल्टेंट पीडियाट्रिशियन डॉ. एल.सी. बैद ने कहा कि फ्लू सामान्य सर्दी-जुकाम से अलग तरह का संक्रमण है। वैसे तो कुछ लक्षण एक जैसे होते हैं, लेकिन स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां, विशेषरूप से 5 साल से कम उम्र के बच्चों में स्थिति गंभीर हो सकती है। उनके लिए जरूरी है कि फ्लू से बचाव के लिए उन्हें 4-इन-1 टीका लगवाया जाए। माता-पिता को फ्लू के टीके के बारे में डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए और टीका लगवाने के सही समय के बारे में पता करके टीका लगवाना चाहिए। फ्लू इन्फ्लूएंजा वायरस के कारण होता है और यह नाक, गले व फेफड़े पर असर डालता है। इसके कुछ सामान्य लक्षण हैं खांसी, बुखारी, गले में खराश, थकान, मांसपेशियों में दर्द और सिरदर्द। संक्रमित लोगों के बोलने, छींकने या खांसने से वायरस आसानी से दूसरों में पहुंच सकता है। सांसों के साथ बाहर आने वाले ड्रॉपलेट प्रत्यक्ष तौर पर स्वस्थ लोगों तक पहुंच सकते हैं या किसी सतह पर गिरकर वहां से किसी अन्य को संक्रमित कर सकते हैं, जैसे किसी दरवाजे पर वायरस हो सकते हैं, जिसे कोई स्वस्थ व्यक्ति छूकर वायरस के संपर्क में आ सकता है। ज्यादातर लोग कुछ दिन या हफ्ते में ठीक हो जाते हैं, लेकिन 5 साल से कम उम्र के बच्चे, खासकर 2 साल से कम उम्र के बच्चे और जिन बच्चों को पहले से कोई गंभीर बीमारी हो, उनमें फ्लू के कारण बहुत ज्यादा बीमार पड़ने का खतरा रहता है और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ सकता है।

बच्चों में न्यूमोनिया और ब्रोंकाइटिस जैसी गंभीर परेशानियों का भी खतरा रहता है, क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम पूरी तरह से विकसित नहीं होता है। अध्ययन बताते हैं कि भारत में सांस संबंधी गंभीर परेशानियों का सामना कर रहे 5 साल से कम उम्र के 11 प्रतिशत बच्चे फ्लू से संक्रमित होते हैं। बहुत से फ्लू वायरस हैं जो संक्रमण का कारण बन सकते हैं। इन्हीं में से एक है एच1एन1 वायरस, जो ‘स्वाइन फ्लू’ श्रेणी का वायरस है। 4-इन-1 फ्लू टीका सबसे ज्यादा पाए जाने वाले चार वायरस वैरिएंट से बचने में मदद कर सकता है। इन वायरस में लगातार बदलाव होता रहता है। इसीलिए फ्लू के टीके की हर साल समीक्षा होती है और बीमारी का कारण बन रहे वायरस को ध्यान में रखते हुए जरूरत पड़ने पर इनमें बदलाव भी किया जाता है। इसी कारण से, साथ ही समय के साथ टीकाकरण का प्रभाव कम होने की संभावना को देखते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि बच्चों को साल में एक बार टीका अवश्य लगवा देना चाहिए।

हिन्दुस्थान समाचार/दिनेश/संदीप

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