इण्डिया स्टोनमार्ट में जयपुर आर्किटेक्चर फेस्टिवल का 5वां संस्करण आयोजित
जयपुर, 2 फ़रवरी (हि.स.)। जयपुर एग्जीबिशन एण्ड कन्वेंशन सेन्टर सीतापुरा में चल रहे इण्डिया स्टोनमार्ट-2024 के 12वें संस्करण के दूसरे दिन शुक्रवार को बायर्स और सेलर्स के बीच जहां चर्चा के दौर चले वहीं आज इस आयोजन में जयपुर आर्किटेक्चर फेस्टिवल (जेएएफ) के 5वें संस्करण का भी शुभारंभ हुआ। जिसमें बांग्लादेश के प्रमुख आर्किटेक्ट एमडी इस्तिहाक जहीर प्रमुख वक्ता रहे।
ज़हीर ने कहा, हमें अपने प्रोजेक्ट्स में प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन को इस तरह से सुविधाजनक बनाना चाहिए जो शहरी पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरण की रक्षा और सुधार करे, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वायु प्रदूषण को कम करे और पारिस्थितिकी तंत्र आधारित समाधानों को बढ़ावा दे। उन्होंने अपने गुरु मुज़हरुल इस्लाम के उद्धरण को भी उद्धृत किया कि एक वैश्विक आदमी और एक स्थानीय वास्तुकार बनें। उन्होंने बांग्लादेश में प्रकृति के अनुरूप बनाई गई विभिन्न परियोजनाओं की तस्वीरें भी दिखाईं।
इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्चर (जेएएफ) राजस्थान चैप्टर के उद्घाटन सत्र में अध्यक्ष तुषार सोगानी ने कहा कि राजस्थान पत्थरों की भूमि है साथ ही उन्होंने टिकाऊ पत्थरों के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी। उन्होंने आज और कल आयोजित होने वाले सत्रों की भी जानकारी दी। आर्किटेक्चर जहीर ने बताया कि संस्कृति और विरासत को टिकाऊ तरीके से कैसे विकसित किया जाए और संसाधनों का उपयोग कैसे किया जाए। नेपाल की आर्किटेक्ट अंजू माला प्रधान ने भी विचार व्यक्त किये और स्टोन्स पवेलियन मैं प्रदर्शित स्टाल्स देखे व आउटडोर् एरिया के स्टाल भी देखकर बड़ी सराहना की ।
प्रमुख वक्ता के उद्बोधन के बाद ‘‘टाइमलेस एलिगेंस:एक्सप्लोर ट्रेडिशनल स्टोन टेकनीक इन मॉडर्न आर्किटेक्चर‘‘ विषय पर पैनल डिस्कशन हुआ जिसमें शालिनी गहलोत मॉडरेटर रही वही वक्ताओं में जयपुर के प्रमुख आर्किटेक्ट एन.एस राठौड़, श्वेता बालसुब्रमोनी और नेपाल से आई वास्तुविद अंजु माला प्रधान ने अपने विचार व्यक्त किये । इस चर्चा का सार यही रहा कि पत्थरों के बढ़ते दामों को देख कर इनका उपयोग वर्तमान उपलब्धताओं को देखते हुए किया जाना चाहिए, जहां तक पारम्परिक पत्थर उपयोग की बात है तो उस समय इनकी उपलब्धता अधिक रही इस वजह से उनमें अधिकाधिक पत्थरों का प्रयोग किया जाता रहा। यह भी कहा गया कि वर्तमान में हमारे बीच दो तरह के द्वंद्व है कि एक तो पत्थरों का ट्रेडिशनल तरीके से उपयोग किया जाए जो कि काफी महंगा पड़ता है इसलिए हमे इनोवेट करना होगा कि कम से कम लागत में अधिक से अधिक पारम्परिक तरीक से निर्माण हो सके। उन्होंने कहा कि यह सोच सभी इमारतों में लागू नहीं होती अब संसद भवन में जहां हमारे सामने सीमाएं थी इसलिए हमने पत्थर का उतना ही उपयोग करने का प्रयास किया। जहां तक अयोध्या में रामलला का मंदिर इनके निर्माण है वहां हमारे सामने बजट का कोई मुद्दा ही नहीं था इसलिए पत्थर भरपूर और सजावटी तरीके से उपयोग किया गया।
राजस्थान के विभिन्न स्थानों से आए पत्थर के कारीगरों ने यहां शिल्पग्राम में अपनी पत्थर से बनी कलाकृतियों को प्रदर्शित किया है, जिन्हें देखने भारी संख्या में दर्शकों का जमावड़ा आज भी बना रहा। यहां आए देशी और विदेशी दर्शक पत्थर के क्राफ्ट को देख कर हैरान है। इस बार इण्डिया स्टोनमार्ट 2024 ने एक पेवेलियन ‘‘स्टोन्स ऑफ राजस्थान‘‘ के नाम से भी बनाया है जिसमें राजस्थान के पत्थरों से बनी ऐतिहासिक इमारतों को बताया गया है। इसी प्रकार एक अन्य हॉल भी है जिसमें पत्थरों को आकार देने के लिए काम आने वाली अत्याधुनिक मशीन एवं उपकरण प्रदर्शित की गई है जिसमें देश विदेश के दर्शक इन उत्पादों के बारे में जानकारी प्राप्त कर रहे है। राजस्थान की खानों से निकाले गये बड़े आकार के ब्लॉक्स भी आउटडोर एरिया में प्रदर्शित किये गये है।
हिन्दुस्थान समाचार/ दिनेश/संदीप