भीलवाड़ा में खेजड़ली बलिदान दिवस की स्मृति में एक मिनट में 1730 पौधे लगाए
भीलवाड़ा, 12 सितंबर (हि.स.)। खेजड़ली बलिदान दिवस की पावन स्मृति में गुरुवार को भीलवाड़ा में कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अनूठी पहल की गई। कार्यक्रम का आयोजन संकल्प पर्यावरण संस्थान द्वारा किया गया था, जिसमें 1730 लोगों ने एकजुट होकर केवल एक मिनट में 1730 पौधे लगाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। यह कार्यक्रम उन 363 वीर बलिदानियों की अमर स्मृति को समर्पित था, जिन्होंने 12 सितंबर 1730 को पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। इन बलिदानियों में अमृता देवी विश्नोई का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
कार्यक्रम की शुरुआत वैदिक मंत्रोच्चार और राष्ट्रगीत वंदे मातरम के साथ हुई। पौधारोपण के पश्चात सामूहिक रूप से राष्ट्रगान का गायन किया गया, जिससे पूरे वातावरण में देशभक्ति और पर्यावरण संरक्षण की भावना जागृत हो गई। कार्यक्रम में भाग लेने वाले सभी आयु वर्ग के लोगों में उत्साह देखने लायक था, जिसमें महिलाएं, विद्यार्थी, बुजुर्ग, और विभिन्न सामाजिक संगठनों के सदस्य शामिल थे। महिलाओं और बच्चों की भागीदारी ने इस कार्यक्रम को और भी प्रेरणादायक बना दिया।
कार्यक्रम के प्रमुख अतिथि भीलवाड़ा के महापौर राकेश पाठक थे। उनके साथ राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल के क्षेत्रीय अधिकारी दीपक धनेतवाल, मुख्य वैज्ञानिक महेश कुमार, यूआईटी उद्यान शाखा प्रभारी रफीक, अधिवक्ता आजाद शर्मा, और क्षेत्रीय पार्षद संतोष कंवर जैसे गणमान्य लोग उपस्थित रहे। इन सभी ने पौधारोपण कर खेजड़ली के बलिदानियों को श्रद्धांजलि अर्पित की और पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपना संकल्प दोहराया।
संकल्प पर्यावरण संस्थान के अध्यक्ष दीपक सुवालका ने अपने संबोधन में कहा, खेजड़ली बलिदान दिवस हमें यह याद दिलाता है कि पर्यावरण की रक्षा हमारी जिम्मेदारी है। अमृता देवी विश्नोई और उनके साथियों का बलिदान हमें सिखाता है कि पेड़ों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाना चाहिए। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर यह संदेश दिया कि प्रकृति की रक्षा हर हाल में की जानी चाहिए।
सुवालका ने आगे कहा, पिछले वर्ष हमने 363 पौधे लगाकर इन अमर बलिदानियों को श्रद्धांजलि दी थी, और इस वर्ष 1730 पौधे लगाकर हम न केवल इतिहास को पुनर्जीवित कर रहे हैं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने का संदेश भी दे रहे हैं। यह पहल सिर्फ एक दिन का कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह एक निरंतर चलने वाली मुहिम है, जो आने वाले समय में और भी बड़े पैमाने पर की जाएगी।
इस कार्यक्रम को सफल बनाने में चोपड़ा जैन फाउंडेशन, राजकीय विद्यालय किश्नावतो की खेड़ी, गांधीनगर बालिका विद्यालय, आस्था स्कूल, साईं ऑर्गेनाइज, मधुबाला महाजन, ब्रह्मकुमारी, और विश्नोई समाज का विशेष सहयोग रहा।
पौधारोपण के दौरान सभी उपस्थित लोगों ने पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लिया। उन्होंने वचन दिया कि वे न केवल इन पौधों की देखभाल करेंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाएंगे। संकल्प लिया गया कि पेड़ हैं तो हम हैं, इस संदेश को जन-जन तक पहुँचाया जाएगा और इसे जीवन में आत्मसात किया जाएगा। सभी ने एक स्वर में कहा कि प्रकृति और मनुष्य का अटूट संबंध है, जिसे हर हाल में बनाए रखना होगा।
महापौर राकेश पाठक ने अपने संदेश में कहा, खेजड़ली बलिदान दिवस न केवल इतिहास का एक पवित्र अध्याय है, बल्कि यह हमें आज के युग में भी पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा देता है। अमृता देवी और उनके साथियों ने जो किया, वह सिर्फ उस समय की बात नहीं है, बल्कि वह आज भी हमें यही सिखाता है कि पेड़ों की रक्षा के लिए हमें सदैव तत्पर रहना चाहिए। उन्होंने आगे कहा, भीलवाड़ा की इस अनूठी पहल को मैं सलाम करता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि यह हमारे समाज में एक नई जागरूकता लाएगा। आने वाले वर्षों में इसे और भी व्यापक रूप में आयोजित किया जाएगा, ताकि अधिक से अधिक लोग इसमें शामिल हो सकें और पर्यावरण की रक्षा का संकल्प ले सकें। संकल्प पर्यावरण संस्थान ने इस वर्ष 1730 पौधे लगाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है, लेकिन उनकी योजना इसे केवल एक रिकॉर्ड तक सीमित नहीं रखने की है। दीपक सुवालका ने बताया कि संस्थान का लक्ष्य हर साल इस संख्या को बढ़ाना है और पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाना है। उनका मानना है कि ऐसे कार्यक्रम न केवल पर्यावरण की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि समाज को एकजुट करने और सामूहिक जिम्मेदारी का एहसास कराने में भी सहायक हैं। उन्होंने कहा, हमारा उद्देश्य सिर्फ पौधे लगाना नहीं है, बल्कि उन्हें बड़ा होते देखना भी है। यह तभी संभव है जब हम सभी मिलकर इनकी देखभाल करें और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक हरा-भरा भविष्य सुनिश्चित करें।
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हिन्दुस्थान समाचार / मूलचंद
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