चौधरी चरण सिंह का कृषिगत दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक: मेघवाल
जोधपुर, 24 दिसम्बर (हि.स.)। कृषिगत उपादानों में में जैविक खेती, सहकारी खेती के साथ ही पर्यावरण संतुलन को अक्षुण्य बनाए रखते हुए अंतरराष्ट्रीय दबाव से दूर देश की जरूरत के अनुरूप कृषि कार्य आज की जरूरत है। पिछली सदी के सातवें दशक में चौधरी चरण सिंह ने बताया था कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां के दबाव से दूर सहकारी कृषि की भावना को सशक्त करने की स्वतंत्रता के पश्चात भी प्रासंगिकता बरकरार है।
राष्ट्रीय उत्पाद तथा खेती के संबंध में चौधरी चरण सिंह के विचारों की प्रासंगिकता और राष्ट्र के विकास में कृषि उत्पादन के योगदान पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में चर्चा करते हुए यह विचार कृषि विशेषज्ञ तथा पर्यावरणविद् आर के मेघवाल ने साझा किए। संगोष्ठी में उपस्थित बुद्धिजीवियों और युवाओं का मेघवाल ने आह्वान किया कि अर्थव्यवस्था तथा कृषिगत संसाधनों के समुचित सदुपयोग के संदर्भ में भारतरत्न चौधरी चरण सिंह के विचार आज भी प्रासंगिक है, जिनका अध्ययन हमें एक सशक्त अर्थव्यवस्था की ओर ले जाएगा। चौधरी चरण सिंह के कृषि और शिक्षा के समानांतर सशक्तिकरण के संदेश को सामाजिक कार्यकर्ता व पूर्व जिला प्रमुख अमिता चौधरी ने अपने संबोधन में प्रतिपादित किया वहीं भूराराम चौधरी ने गांधी दर्शन तथा नमक सत्याग्रह के दौरान चौधरी चरण सिंह की भूमिका तथा स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी सक्रियता पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय महासचिव शैलाराम सारण ने उनके सादगी भरे जीवन से प्रेरणा लेकर मानवता के हित में कार्य करने की अपेक्षा अपने संबोधन में की। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो डॉ गंगाराम जाखड़ ने अपने उद्बोधन में चौधरी चरण सिंह के आर्थिक सिद्धांतों तथा कृषि के संबंध में उनके नवाचारों के साथ-साथ उनके लेखन व जीवन से भी परिचय करवाया।
संगोष्ठी के निदेशक हनुमान राम सेवदा व इंजी. हीराराम जाखड़ ने स्वागत उद्बोधन दिया वहीं रामगढ़ी संस्थान के अध्यक्ष प्रदीप बेनीवाल ने इस अकादमिक् आयोजन के स्थल के रूप में रामगढ़ी चिंतन सभागार को चुने जाने के लिए आभार प्रकट किया।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के समन्वयक व सूत्रधार के रूप में मोटिवेशनल स्पीकर व शिक्षाविद डॉ बी एल जाखड़ ने संगोष्ठी में प्रस्तुत वैचारिक उद्बोधन तथा शोध पत्रों का समेकित सार प्रस्तुत किया तथा संस्थान के अध्यक्ष प्रदीप बेनीवाल से अपेक्षा की कि शीघ्र ही शोध पत्रों को लिपिबद्ध कर समाज के सामने पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया जाए। इस अवसर पर आयोजन व्यवस्था में संस्थान अधीक्षक लुंबाराम , मगाराम व अकादमिक निदेशक डॉ बलबीर चौधरी का विशेष सहयोग रहा।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश

