गांधी की पत्रकारिता का लक्ष्य था स्वराज्य और सर्वोदय: प्रोफेसर महान
जयपुर, 17 दिसंबर (हि.स.)। गांधी की समूची पत्रकारिता के दो ही लक्ष्य थे। एक ‘स्वराज्य’ और दूसरा ‘सर्वोदय’. आज की नौजवान पीढ़ी अगर इन लक्ष्यों को ध्यान में रखकर पत्रकारिता को अपना पेशा चुनेगी तो उन्हें पैसे और शोहरत के अतिरिक्त आत्मिक ख़ुशी और संतुष्टि भी मिलेगी। उपरोक्त विचार वरिष्ठ पत्रकार और प्रोफ़ेसर राजन महान ने हरिदेव जोशी पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित साप्ताहिक व्याख्यान श्रृंखला के अवसर पर प्रस्तुत किये। इस अवसर पर प्रोफेसर राजन महान ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की वर्तमान चुनौतियों और संभावनाओं पर विस्तार से बातचीत की। उन्होंने कहा कि आजकल की पत्रकारिता के सन्दर्भ में महान लेखक ज़ोर्ज ऑरवेल का कथन उचित प्रतीत होता है कि असली पत्रकारिता वही होती है जिसे शक्तिशाली सत्ताएं आम लोगों से छुपाना चाहती हैं।
वर्तमान मीडिया के संकट पर बात करते हुए प्रोफेसर महान ने कहा कि आज का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आम जन-जीवन की जिंदगी की कहानियां नहीं बता पा रहा है। पत्रकारिता के दो प्रमुख उद्देश्य ही होना चाहिए। पहला, सत्ता से सवाल पूछना और दूसरा बेजुबान लोगों की जुबां बनाना। लेकिन विडंबना है कि आज हमारे देश का मीडिया इन दोनों ही उद्देश्यों में अक्सर नाकाम होता हुआ दिखाई पड़ता है। प्रोफेसर महान ने इसके पीछे के कारण का ज़िक्र करते हुए कहा कि 1990 के दशक के बाद हमारी अर्थव्यवस्था की जो दिशा बनिया गई। इसी कारण से पत्रकारिता के पेशे में भी ‘मुनाफे की गणित’ ने केन्द्रीय स्थान हासिल कर लिया। यही वजह है कि आज का मीडिया जनपक्षधरता की बजाय सत्ता में बैठे शक्तिशाली लोगों का पक्षधर बन गया है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर नन्द किशोर पाण्डेय ने प्रोफेसर महान का स्वागत करते हुए कहा कि वे देश भर के मीडिया जगत की जानीमानी शख्शियत हैं। उनके अनुभवों से हमें मीडिया उद्योग की अंदरूनी दुनिया के बारे में जानने का बेहतरीन मौक़ा मिलेगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश

