अरावली पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला लोकतंत्र और मीडिया की जीत: नेशन फर्स्ट

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अरावली पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला लोकतंत्र और मीडिया की जीत: नेशन फर्स्ट


उदयपुर, 29 दिसंबर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सोमवार को अरावली पर्वतमाला से जुड़े मामले में आए फैसले का नेशन फर्स्ट ने स्वागत करते हुए इसे जनता और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ माने जाने वाले मीडिया की जीत बताया है। संगठन ने इस निर्णय को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम करार दिया है।

नेशन फर्स्ट के संयोजक एडवोकेट अशोक सिंघवी ने कहा कि न्यायपालिका ने अपने ही निर्णय पर रोक लगाकर यह स्पष्ट संदेश दिया है कि व्यापक जनहित में किसी भी फैसले पर न केवल पुनर्विचार संभव है, बल्कि आवश्यक सुधार भी किया जा सकता है। यह न्यायिक विवेक और संवेदनशीलता का उदाहरण है।

सिंघवी ने कहा कि अरावली कोई वस्तु नहीं है, बल्कि यह धरती मां का अभिन्न हिस्सा है। प्रकृति की परिभाषा, उसकी सीमा या ऊंचाई तय करने का अधिकार मानव को नहीं होना चाहिए। पहाड़ का अर्थ केवल उसकी ऊंचाई से नहीं तय किया जा सकता—पहाड़, पहाड़ होता है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या मानव प्रकृति को बांध सकता है या उसे बांधना चाहिए। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि आज अरावली की बात हो रही है, कल गंगा मैया की लंबाई-चौड़ाई नापी जाएगी और परसों हिमालय को लेकर भी ऐसे ही तर्क दिए जा सकते हैं। यह सोच खतरनाक है और प्रकृति के अस्तित्व के लिए गंभीर चुनौती है।

अशोक सिंघवी ने भारत की सनातन संस्कृति का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारी परंपराएं धरती को मां के रूप में पूजती हैं—चाहे वह धरती माता हो, गोवर्धन पर्वत पूजन हो या गंगा आरती। ये सभी परंपराएं संरक्षण को सर्वोपरि मानती हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि सुप्रीम कोर्ट भविष्य में भी इसी भावना के अनुरूप पर्यावरण से जुड़े मामलों में न्यायपूर्ण और संवेदनशील निर्णय देता रहेगा।

एडवोकेट विजय ओसवाल, एडवोकेट मनोज अग्रवाल, एडवोकेट निमेष भट्ट, एडवोकेट राजेंद्र धाकड़, समाजसेवी हरीश नरसावत आदि ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुनीता

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