भारत में शब्दों का असीमित भंडार, यहां हुआ है शब्दों पर गम्भीर चिंतनः प्रो. सलूजा

भारत में शब्दों का असीमित भंडार, यहां हुआ है शब्दों पर गम्भीर चिंतनः प्रो. सलूजा
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भारत में शब्दों का असीमित भंडार, यहां हुआ है शब्दों पर गम्भीर चिंतनः प्रो. सलूजा


- भारतीय ज्ञान प्रणाली और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के परिप्रेक्ष्य में शब्दावली में परिवर्तन पर केंद्रित राष्ट्रीय कार्यशाला शुरू

- दो दिवसीय कार्यशाला में देशभर के विशेषज्ञ विद्वान कर रहे हैं शब्दावली पर मंथन

भोपाल, 27 जून (हि.स.)। दिल्ली के वरिष्ठ शिक्षाविद प्रो. चांदकिरण सलूजा ने कहा कि भारत में शब्दों का असीमित भंडार है और यहां शब्दों पर गम्भीर विमर्श हुआ है। जीवन के प्रत्येक व्यवहार और ज्ञान के सभी क्षेत्रों का समावेश वेदों में है। भारतीय शास्त्र परंपरा में शब्द, अक्षर, छंद आदि की व्यापक पहचान की गई है। किसी ग्रंथ का अर्थ कैसे किया जाए, इसके लिए विभिन्न प्रकार की युक्तियों का समावेश किया गया है। मूल ग्रंथ और उनमें निहित असंख्य शब्दों को पहचानें, यह जरूरी है।

प्रो. सलूजा गुरुवार को विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के स्वर्ण जयंती सभागार में भारतीय ज्ञान प्रणाली और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के परिप्रेक्ष्य में शब्दावली में परिवर्तन पर केंद्रित राष्ट्रीय कार्यशाला को बतौर मुख्य अतिथि वक्ता संबोधित कर रहे थे। मध्यप्रदेश शासन, उच्च शिक्षा विभाग के सहयोग से विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा आयोजित इस दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का गुरुवार को उद्घाटन हुआ। इस कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों के विशेषज्ञ विद्वान और शिक्षाविद् भाग लेने के लिए उज्जैन आए हैं।

मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ के संचालक अशोक कड़ेल ने कहा कि सुसंस्कृत मानव का निर्माण भारतीय चिंतन का उद्देश्य है। संपूर्ण देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन में मध्य प्रदेश और विक्रम विश्वविद्यालय अग्रणी रहे हैं। शब्दावली परिवर्तन को लेकर कार्यशाला आयोजित करने की दृष्टि से विक्रम विश्वविद्यालय देश का प्रथम विश्वविद्यालय बन गया है। शिक्षा में भारतीयता आए, यह जरूरी है। इस दिशा में हिंदी ग्रंथ अकादमी अपने प्रकाशनों के माध्यम से निरंतर महत्वपूर्ण कार्य कर रही है।

वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग नई दिल्ली के चेयरमैन प्रो. गिरीशनाथ झा ने कहा कि भारत में शब्दकोशों की समृद्ध परंपरा है। भारतीय भाषाओं के शब्दों के निर्माण के पहले संस्कृत का कोश बनाया जाना आवश्यक है, तभी उसे समस्त भारतीय भाषाओं तक पहुंचाया जा सकेगा।

कुलगुरु प्रो. अखिलेश कुमार पांडेय ने कहा कि विक्रम विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय शिक्षा के नीति के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भाषा और शब्दकोश की दृष्टि से वर्तमान में व्यापक प्रयास जरूरी है। ग्रंथों में वर्णित शब्दों को देखते हुए उन्हें सर्वसामान्य तक पहुंचाने की आवश्यकता है।

सारस्वत अतिथि महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. सीजी विजयकुमार मेनन ने कहा कि शब्दावली के निर्माण के साथ उसका प्रयोग भी आवश्यक है। वर्तमान दौर में असाधु के स्थान पर साधु शब्दों का प्रयोग बढ़ाया जाना आवश्यक है। व्याकरण, लौकिक और वैदिक सभी प्रकार के शब्दों का अनुशासन करता है।

बीज भाषण में कुलगुरु डॉक्टर खेमसिंह डहेरिया ने कहा कि विभिन्न अध्ययन क्षेत्रों में प्रयोग में लाए जाने वाले शब्द सरल हों यह जरूरी है। भाषा को सर्वव्यापी बनाने के लिए सरलता की ओर ले जाना जरूरी है। ज्ञान की विस्तार के साथ शब्दों के विकास और परिवर्तन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

तकनीकी सत्र में प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने भारतीय संदर्भ में शब्द की व्यापक अवधारणा को अपने व्याख्यान की माध्यम से प्रस्तुत किया। डॉ. पूरन सहगल ने लोक शब्दावली के प्रयोग और महत्व पर प्रकाश डाला।

कार्यशाला की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र की उपलब्धियों का लाभ तभी लिया जा सकता है, जब भारतीय भाषाओं को सम्पूर्ण रूप से ज्ञान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के शिक्षण, अनुसंधान एवं संचार का माध्यम बनाया जाएगा। इस दिशा में शब्दावली के विकास और प्रयोग - प्रसार की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।

अतिथियों को अंग वस्त्र, प्रतीक चिह्न एवं तुलसी का पौधा अर्पित कर उनका सम्मान विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार शर्मा, कार्यशाला के मुख्य समन्वयक प्रो. शैलेंद्रकुमार शर्मा, समन्वयक डीएसडब्ल्यू प्रो. सत्येंद्र किशोर मिश्रा, प्रो. संदीप कुमार तिवारी, प्रो. डी.डी. बेदिया, प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा आदि ने किया।

इस अवसर पर विक्रम विश्वविद्यालय की शोध पत्रिका विक्रम के कालिदास विशेषांक का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। वरिष्ठ कलागुरु लक्ष्मीनारायण सिंहरोडिया द्वारा उज्जयिनी: पुरातन और अर्वाचीन चित्रकृति विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पांडेय को अर्पित की गई। स्वागत भाषण समन्वयक प्रो. सत्येंद्र किशोर मिश्रा ने दिया।

कार्यशाला के तकनीकी सत्र में देश के विभिन्न भागों के अध्येताओं ने व्याख्यान एवं शोध पत्रों का वाचन किया। इनमें प्रमुख थे डॉ. पूरन सहगल, मनासा, प्रो. एन. लक्ष्मी अय्यर, किशनगढ़, राजस्थान, डॉक्टर रेखा भालेराव, डॉ. सोनल सिंह, डॉ. गीता नायक, राजलक्ष्मी गर्ग, डॉ. डी.डी. बेदिया गोर्की दुबे आदि।

उद्घाटन समारोह का संचालन प्रो. जगदीश चंद्र शर्मा ने किया एवं आभार प्रदर्शन कुलसचिव डॉ. अनिल कुमार शर्मा ने किया। शोध पत्र प्रस्तुति सत्र का संचालन डॉ. प्रीति पांडे ने किया। आभार प्रदर्शन समन्वयक प्रो. संदीप तिवारी ने किया।

कार्यशाला के समापन दिवस पर शुक्रवार, 28 जून को प्रातः 10:30 बजे से दोपहर तक तीन तकनीकी सत्र होंगे। कार्यशाला का समापन अपराह्न 4:00 होगा।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/प्रभात

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