मप्रः लघु वनोपजों के निर्यात के लिए आदिवासी बहुल जिलों को जल्द मिलेगा जैविक प्रमाण-पत्र

मप्रः लघु वनोपजों के निर्यात के लिए आदिवासी बहुल जिलों को जल्द मिलेगा जैविक प्रमाण-पत्र
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मप्रः लघु वनोपजों के निर्यात के लिए आदिवासी बहुल जिलों को जल्द मिलेगा जैविक प्रमाण-पत्र


- वन मंत्री नागर सिंह चौहान ने औपाचारिकताएं पूरी करने के दिये निर्देश

भोपाल, 15 फरवरी (हि.स.)। लघु वनोपजों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये आदिवासी बहुल जिलों को जल्द ही जैविक प्रमाण-पत्र मिलेगा। वन मंत्री नागरसिंह चौहान ने इसके लिये सभी औपचारिक प्रक्रियाएं पूरी करने के निर्देश दिये हैं। उन्होंने गुरुवार को कहा कि तेन्दूपत्ता संग्राहकों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिये उन्हें संबल योजना में शामिल किया गया है।

वन मंत्री चौहान ने कहा कि तेंदूपत्ता संग्रहण से जुड़े जनजातीय परिवारों की आर्थिक सुरक्षा के लिये तेंदूपत्ता संग्रहण दर 3000 रुपये प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 4000 रुपये प्रति मानक बोरा कर दी गई है। वर्ष 2003 में संग्रहण दर 400 रुपये प्रति मानक बोरा थी। इस निर्णय के परिणामस्वरूप संग्राहकों को लगभग 560 करोड़ रुपये का संग्रहण पारिश्रमिक के रूप में वितरित किया गया है।

उन्होंने कहा कि संग्रहण पारिश्रमिक के साथ-साथ तेन्दूपत्ता के व्यापार से प्राप्त शुद्ध लाभ भी संग्राहकों के साथ बांटा जाता है। यह लाभांश भी बढ़ाया जा रहा है। वर्ष 2003 में जहाँ शुद्ध लाभ का 50 प्रतिशत अंश संग्राहकों को बोनस के रूप में वितरित किया जाता था, अब 75 प्रतिशत भाग बोनस के रूप में संग्राहकों को वितरित किया जा रहा है। वर्ष 2002-03 में वितरित बोनस की राशि 5.51 करोड़ रुपये थी, जबकि वर्ष 2022-23 में वितरित बोनस की राशि 234 करोड़ रुपये है।

वर्तमान में लगभग 15 लाख परिवारों के 38 लाख सदस्य लघु वनोपज संग्रहण कार्य से जुड़े हैं। इनमें 50 प्रतिशत से ज्यादा जनजातीय समुदाय के हैं। उनहें बिचौलियों के शोषण से बचाने और उनकी संग्रहित लघु वनोपज का लाभ दिलाने के लिए सहकारिता का त्रिस्तरीय ढांचा बनाया गया है। इसमें प्राथमिक स्तर पर 15.2 लाख संग्रहणकर्ताओं की सदस्यता से बनायी गयी 10 प्राथमिक वनोपज सहकारी समितियां है। द्वितीय स्तर पर 51 जिलों में जिला स्तरीय यूनियन तथा शीर्ष स्तर पर म.प्र. राज्य लघु वनोपज संघ कार्यरत है।

कोरोना काल में भी तेन्दूपत्ता संग्राहकों को परिश्रमिक 397 करोड़ रुपये एवं 415 करोड़ रुपये भुगतान किया गया। पिछले 10 सालों के 2000 करोड़ रुपये संग्राहकों को (बोनस) प्रोत्साहन पारिश्रमिक के रूप में दिये जा चुके हैं।

तेन्दूपत्ता श्रमिकों के बच्चों की शिक्षा के लिये 2011 में एकलव्य वनवासी शिक्षा विकास योजना प्रारंभ की गयी। मेधावी बच्चों को सहायता राशि दी जाती है। अभी तक 15,026 छात्रों को 14 करोड़ रुपये से अधिक की सहायता राशि दी जा चुकी है।

वर्ष 2004-05 में लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र बरखेड़ा पठानी की स्थापना की गई थी। इसे लघु वनोपज आधारित 840 औषधियां बनाने का लाईसेंस मिला है और 350 औषधियों का निर्माण किया जा रहा है।

लघु वनोपज संग्राहकों को वनोपज का उचित मूल्य दिलाने हेतु राज्य शासन द्वारा 32 प्रमुख लघु वनोपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी घोषित किया गया है ताकि यदि बाजार में उचित मूल्य न हो तो संग्राहक को वनोपज का उचित मूल्य मिल सके।

लघु वनोपज संग्राहकों की आय बढ़ाने के लिये प्रसंस्करण पर भी ध्यान दिया जा रहा है तथा प्रदेश में प्रधानमंत्री वन विकास योजना के तहत 126 वनधन केन्द्रों की स्थापना की स्वीकृति दी जा चुकी है। इनमें से लगभग 70 वन धन केन्द्रों द्वारा प्रसंस्करण उत्पाद निर्माण का कार्य भी शुरू कर दिया गया है।

पेसा कानून में 20 जिलों की 268 ग्राम सभाओं में वर्ष 2022-23 से पेसा नियमों के तहत संग्रहण के संकल्प प्राप्त हुए तथा संग्रहण वर्ष 2023-24 में 13363 मानक बोरा तेंन्दूपत्ता संग्रहित किया जाकर 7.19 करोड़ रुपये का व्यापार किया गया। इस प्रकार प्रथम वर्ष के अनुभव से ग्राम सभाओं को लघु वनोपज व्यापार का अनुभव प्राप्त हुआ, तेंदुपत्ता संग्रहण एवं विपणन हेतु आत्मविश्वास मिला तथा इस वर्ष 229 ग्राम सभाओं द्वारा तेन्दूपत्ता संग्रहण का कार्य प्रारंभ हुआ।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश

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