जबलपुर : वकील की टिप्पणी को जज ने माना अवमानना, कार्यवाही के लिए चीफ जस्टिस के पास गया मामला

जबलपुर, 26 मार्च (हि.स.)। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक वकील ने सुनवाई के दौरान न्यायालय की कार्यवाही पर कड़ी और असंतोषजनक टिप्पणी की। कोर्ट ने इस टिप्पणी को गंभीरता से लेते हुए इसे न्यायपालिका की अवमानना माना और इस पर उचित कार्रवाई के लिए मामला मुख्य न्यायाधीश के पास भेजने का आदेश दिया। कोर्ट ने माना की इस टिप्पणी से कोर्ट की गरिमा और अनुशासन प्रभावित हुआ है।
न्यायालय में यह विवाद उसे समय हुआ जब हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला की एकल पीठ के समक्ष सुनवाई हो रही थी। राजहंस बगाड़े एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य से क्रिमिनल अपील के मामले जिसमें पांढुर्णा में हुई एक मारपीट की घटना को लेकर हाईकोर्ट में अपील दायर की गई थी। इस केस में पूर्व में दिए गए आदेश के खिलाफ क्रिमिनल रिवीजन अपील दाखिल की गई थी, इस अपील की सुनवाई के दौरान जब वकील की ओर से असंतोषजनक और आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया गया, तब कोर्ट ने इसे अनुशासनहीनता और न्यायपालिका की गरिमा के विरुद्ध मानते हुए आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया।
दरअसल अपीलकर्ताओं के वकील ने न्यायालय की कार्यवाही पर असंतोष व्यक्त करते हुए बेहद तीखी और अनुचित भाषा का प्रयोग किया। वकील ने कहा इस कोर्ट में चार घंटे से तमाशा चल रहा है मैं बैठा देख रहा हूं। इसके साथ ही वकील ने जो बोला उन वाक्यों को न्यायपालिका ने गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले वाक्यों में माना है। इतना ही नहीं वकील ने यह भी कहा कि उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता मोहन यादव से लगभग 20 बार संपर्क कर आग्रह किया कि यह मामला किसी अन्य पीठ को स्थानांतरित कर दिया जाए, क्योंकि वह वर्तमान पीठ के समक्ष बहस नहीं करना चाहते। इस प्रकार का बयान सीधे-सीधे न्यायालय की निष्पक्षता पर सवाल उठाने जैसा था।
वकील के इन शब्दों को न्यायमूर्ति अनुराधा शुक्ला ने गंभीरता से लिया एवं अपनी आर्डर शीट पर भी इसके संबंध में लिखा । न्यायमूर्ति शुक्ला ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस प्रकार की भाषा न केवल अशोभनीय है, बल्कि यह न्यायालय की गरिमा के खिलाफ भी जाती है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस तरह के बयान अदालत की स्वायत्तता और न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता को प्रभावित करते हैं। किसी भी वकील द्वारा इस तरह की असंयमित भाषा का उपयोग करना न्यायपालिका पर सीधा प्रहार करने के समान है। इसलिए, न्यायालय ने निर्देश दिया कि इस आदेश की प्रमाणित प्रति मुख्य न्यायाधीश को आवश्यक कार्यवाही हेतु भेजी जाए। इस पूरे घटनाक्रम के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई स्थगित कर दी है।
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हिन्दुस्थान समाचार / विलोक पाठक