वरुणेंद्र जी तीर्थ के सानिध्य में यज्ञशाला के निर्माण का भूमि पूजन समारोह संपन्न हुआ


मंदसौर 15 दिसम्बर (हि.स.)। वेद की पहली रिचा ही अग्नि है। अग्नि ही यज्ञों के संवाहक होती हैं जो मनुष्य और देवताओं के बीच सेतु का काम करती है। वेद से भी पहले यज्ञ का महत्व है। यह उद्गार शंकराचार्य अवंत पीठ भानपुरा के युवाचार्य पूज्य स्वामी श्री वरुणेंद्र जी तीर्थ महाराज ने व्यक्त किए। आप श्री तलाई वाले बालाजी मंदिर ट्रस्ट के तत्वावधान में आगामी 20 से 25 जनवरी 2023 को होने जा रहे 6 दिवसीय स्वर्ण कलश आरोहण के निमित्त आयोजित 108 श्री हनुमंत महायज्ञ की यज्ञशाला के निर्माण के भूमि पूजन के समारोह को संबोधित कर रहे थे।
वरुणेंद्र जी तीर्थ महाराज ने कहा कि आकाश वायु अग्नि जल और पृथ्वी यह सभी पंच महाभूत तत्व हैं। चूंकि मनुष्य स्थूल रूप में होते हैं और देव सूक्ष्म रूप में इसलिए यज्ञों के ही माध्यम से देवताओं तक हमारी आहुतियां पहुंचती हैं और माध्यम बनती है अग्नि। इसलिए अग्नि के महत्व को सनातन परंपरा में शास्त्रों ने सर्वोपरि बताया है।
स्वामी जी ने कहा कि पुराणों में कहा गया है कि यज्ञ संस्कृति का प्रादुर्भाव सृष्टि के निर्माण के पहले से ही हुआ है। युवाचार्य ने ताले वाले बालाजी मंदिर शिखर पर आरोही स्वर्ण कलश समारोह के होने वाले आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि भगवान श्री राम श्री बालाजी के हृदय में विराजमान रहते हैं इसीलिए श्री बालाजी महाराज को अतुलित बल धाम भी कहा जाता है। भगवान राम अतुलित बल के प्रतीक हैं और धाम वह स्थान होता है जहां प्रभु का वास होता है तो श्री बालाजी के हृदय में भगवान श्री राम विराजते हैं। इसलिए प्रभु श्री राम के प्रति हमारी भक्ति से श्री बालाजी महाराज अति प्रसन्न होते हैं। भक्ति और सेवा में श्री बालाजी महाराज की बराबरी कोई नहीं कर सकता।आपने यज्ञों की वैज्ञानिक तत्वों की भी बड़ी प्रभावी विवेचना की।
हिन्दुस्थान समाचार/अशोक झलौया