छतरपुर: आग से वनों में लाखों पौधे स्वाहा, खेतों में जलती नरवाई से क्षति
छतरपुर, 11 अप्रैल (हि.स.)। आग से वनों में लाखों पौधे स्वाहा होते देखे जा सकते हैं तथा खेतों में जलती नरवाई से कृषि भूमि और फसलों को क्षति होना बताई जा रही है। प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर वन और खेतों में आग को रोकने के लिए कारगार प्रयास नहीं देखे जा रहे हैं।
छतरपुर जिले में प्रकृति आधारित वन क्षेत्र इन दिनों आग की लपटों के बीच अपने बजूद और अकुरण से उपजे पौधों को नष्ट होते देख रहे हैं। वनों में लगे महुआ के बृक्ष बडी तादाद में हैं जिससे ग्रामीणों के बासिंदे एक बडा मुनाफा कामते हैं। हर साल की तरह अबकी बार फिर महुआ बीनने के लिए सफाई के सरल तरीके यानि आग लगाकर कचडा और सूखे पत्ते जलाए जा रहे हैं। आग की चिंगारी लगते ही वन क्षेत्र में लगे छोटे छोटे पौधे बडी संख्या में जलकर खाक नष्ट हो रहे है। गौरतलब है नेशनल पार्क पन्ना टाईगर रिजर्व इलाके से लगे। किशनगढ,देवरा,कुपी,खरयानी पल्कौंहा,मैनारी,ढोडन,बांकी गिरौली, लुहरपुरा, बडागांव, डिलारी, अमरपुरा, बेरखरी,पाटन,पडरो,खुवा,नागौरी,गुलाट,टिकरी से होते हुए बाजना ,वीरमपुरा, मझौरा, बक्स्वाहा, हीरापुर, बडामलहरा वन परिक्षेत्र में निजी स्वार्थ सिद्ध करने यानि महुआ बीनने के लिए सफाई करने से लाखो पौधे जल चुके है। इसे रोकने के लिए एससी में वन मण्डल अधिकारी से एसडीओ वन ,रेंजर और बीट गार्ड कार्यप्रणाली निष्क्रियतापूर्ण वनी हुई है।
खेतों में आग से कृषि और प्रकृति को क्षति
जिले में अधिकतर किसान हार्वेस्टर से कटाई करते हैं इसके उपरांत जो डंठल बचता है या फसल का अवशेष जमीन में लगा हुआ 90 प्रतिशत भाग बच जाता है उसको नष्ट करने के लिए अपने ही खेत में किसान एक सरल रास्ता चुनते हैं जो की आसानी से आग लगा देते हैं आग लगाना खेत में कितना घातक होता है इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है । कृषि भूमि में लाखों करोड़ों सूक्ष्मजीव जो की मिट्टी को बनाने में सहायक का कार्य करते हैं या मिट्टी को बनाने में मदद करते हैं वह सभी लाभदायक सूक्ष्म जीव सारे के सारे मृत हो जाते हैं साथ ही मिट्टी की उपजाऊ शक्ति की ऊपरी परत में बिद्यमान होते है वह भी खत्म हो जाते है । एक इंच मिट्टी के बनने में हजारों वर्ष लग जाते हैं लेकिन क्षणिक फायदा, या छोटे से फायदे के लिए खेत में आग लगा देते हैं यह हमारे लिए घातक हो सकता है घास तथा पत्तियों के जो अवशेष बचते हैं उस राख में बीज और पोधों को उगा पाना मुमकिन नही है साथ ही किसान का मित्र केचुआ भी नष्ट हो जाता है जो खाद बनाने का कार्य करता है। इसके लिए कृषि विभाग में ग्राम सेवक लेकर एटीएम, बीटीएम, एसएडीओ,एसडीओ और डीडीए की एक बडी टीम जिले में तैनात है लेकिन नरवाई से खेतों में लग रही आग से कृषि और प्रकृति को होने वाले नुकसान से इन्हें कोई सरोकार नहीं है। करोडों का बजट होने के बाद भी प्राकृतिक संतुलन और खेती को लाभ का धंधा बनाने में इनकी कार्यप्रणाली निष्क्रयतापूर्ण देखी जा सकती है।
कृषि विज्ञान केन्द्र नौगॉव के बैज्ञानिक कमलेश अहिरवार का कहना है कि किसानों और श्रमिकों को भूल करके भी अपने खेत में आग नहीं लगाना चाहिए आग लगाने के बजाय कटाई के बाद जो फसल का अवशेष बचता है उसमें कल्टीवेटर की सहायता से या हेरो की सहायता से या प्लाऊ की सहायता से उसी खेत में मिट्टी मे जिससे खेत में ही बिना खाद डाले खाद बनाकर तैयार हो जायेगी जिससे हमारी जमीन की मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ेगी जिससे फसलों की पैदावार मैं भी इजाफा होगा।
इस संबंध में उपसंचालक कृषि एसके पटेल ने बताया कि पिछले साल मातगुवां क्षेत्र में एसडीएम एक किसान पर कार्यवाही की थी। उन्होंने बताया कि कार्यवाही का अधिकार एसडीएम को है।डीडीए ने कहा कि मैंने अधीनस्थ अमले को आदेश दिया है कि नरवाई खेतों जलाने से रोका जाए।
वनों में आग से नष्ट होते पौधे और बडे पैमाने पर नुकसान को लेकर वनमण्डल अधिकारी छतरपुर से जब मोबाईल क्रमांक 9424791051 पर कॉल किया गया लेकिन डीएफओ से सम्पर्क नहीं हो सका।
हिन्दुस्थान समाचार/सौरभ भटनागर
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