शिवपुरी : अब किसान करेंगे कलौंजी की खेती, वैज्ञानिकों ने बताई तकनीक

शिवपुरी, 8 मई (हि.स.)। शिवपुरी कृषि विज्ञान केंद्र की 37वीं वैज्ञानिक परामर्श समिति की बैठक पिपरसमा स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रशासनिक भवन में आयोजित की गई। जिसमें पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मुकेश कुमार भार्गव द्वारा प्रस्तुत किया गया। बैठक में प्रमुख सुझाव इस प्रकार रहे-फसल विविधता एवं नवाचार में कलौंजी की खेती को प्रोत्साहन, मक्का फसल के बढ़ते हुए क्षेत्रफल को देखते हुए उत्पादन तकनीक जागरूकता, चारा फसल प्रोत्साहन, प्राकृतिक खेती सह पोषण वाटिका जागरूकता इत्यादि प्रमुख रहे।
कृषि विज्ञान केंद्र शिवपुरी में जिले के कृषि एवं कृषि से संबंधित विभागों के प्रमुख व प्रतिनिधियों में यू एस तोमर उप संचालक कृषि, डॉ. एसकेएस धाकड़ उपसंचालक भेड़ प्रजनन प्रक्षेत्र, भगवान सिंह नरवरिया सहायक कृषि यंत्री, बृजमोहन मिश्रा सहायक संचालक उद्यान, प्रमोद श्रीवास्तव जिला प्रबंधक आजीविका मिशन, तुलाराम यादव बीज निगम, नीरज शर्मा मत्स्य उद्योग, एसएस जाटव तरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी शितपुरी, संजीव वर्मा इफको प्रतिनिधि, अवधेश वर्मा प्रगतिशील किसान पिपरसमा, त्रिलोचन सिंह प्रगतिशील प्राकृतिक खेती किसान ग्राम झुंड, अनिकेत धाकड़ युवा कृषक उद्यमी ग्राम ठर्रा के साथ ऑनलाइन माध्यम से प्रगतिशील कृषक रामगोपाल गुप्ता ग्राम भौती पिछोर, गोविंद सिंह दांगी प्रगतिशील किसान प्राकृतिक खेती ग्राम संगेश्वर, विकासखंड कोलारस विकास संवाद पोहरी से अजय यादव, डॉ. आरआर राउत वैज्ञानिक अटारी जबलपुर, डॉ. वाय. डी. मिश्रा वैज्ञानिक निदेशालय विस्तार सेवाएं रा.वि.सिं.कृ.वि.वि. ग्वालियर, रिंग कृषि विज्ञान केन्द्र से डॉ. कायम सिंह श्योपुर एवं डॉ. अवधेश सिंह प्रमुख रूप से सहभागी रहे। बैठक की समीक्षा वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा करते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र की प्रगति एवं कार्य योजना के बारे में महत्वपूर्ण सुझावों का समावेश करते हुए उचित मार्गदर्शन भी दिया गया।
कलौंजी का इस्तेमाल
कलौंजी का इस्तेमाल तेल बनाने और कई दवाईयों में उपयोग किया जाता है। साथ ही सुगन्ध के लिए भी कलौंजी के बीजों का इस्तेमाल होता है। कलौंजी का तेल गंजापन दूर करने में उपयोगी माना जाता है। इसके अलावा लकवा, माइग्रेन, खाँसी, बुखार और फेसियल पाल्सी के इलाज़ में भी कलौंजी के सेवन से फ़ायदा होता है। दूध के साथ कलौंजी खाने पर पीलिया के उपचार में भी मदद मिलती है। मसालों के रूप में कलौंजी की पहुँच हरेक रसोई तक होती है।
कलौंजी रबी की फसल है। उत्तर भारत का सर्दी-गर्मी का मिला-जुला मौसम कलौंजी की खेती की लिए माकूल है। इसीलिए कलौंजी की खेती मुख्य रूप से उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत के पंजाब, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल से लेकर असम में की जाती है।
हिन्दुस्थान समाचार / रंजीत गुप्ता