मप्र के गृहमंत्री ने क्रांतिकारी बिपिन चंद्र पाल को उनकी पुण्यतिथि पर किया याद
भोपाल, 20 मई (हि.स.)। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में लाल, बाल, पाल की तिकड़ी का अनेक अवसरों पर जिक्र आता है। इनमें से बिपिन चंद्र पाल न सिर्फ एक स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि साथ ही वे श्रेष्ठ शिक्षक, लेखक, पत्रकार एवं क्रांतिकारी विचारों के लिए भी सुविख्यात थे । स्वतन्त्र भारत के स्वप्न को अपने मन में लिए 20 मई 1932 को कलकत्ता में आज ही के दिन वे चिरनिद्रा में सो गए थे ।
आज उनकी पुण्यतिथि पर मध्य प्रदेश के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने उन्हें अपनी ओर से कोटि-कोटि नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है। डॉ. मिश्रा ने ट्वीटर के जरिए दिए गए अपने संदेश में लिखा, ''मां भारती की स्वाधीनता के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने वाले वीर क्रांतिकारी, दृढ़ता के प्रतीक, महान राष्ट्रवादी श्रद्धेय बिपिन चंद्र पाल जी की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि।''
दरअसल, क्रांतिकारी बिपिन चन्द्र पाल देश की उन महान विभूतियों में शामिल हैं जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की मजबूत बुनियाद रखने में अपनी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका जन्म सात नवंबर 1858 को सिल्हेट जिले के पोइली गांव में हुआ था, जो वर्तमान समय में बांग्लादेश में स्थित है। उनकी बातों और लेखनी में ऐसा प्रभाव था कि उन्हें पूरे बंगाल में अंग्रेजों के खिलाफ हर मोर्चे पर समर्थन मिला. लेकिन अपने विचारों के लिए उन्होंने कभी समझौता नहीं किया और यहां तक वे महात्मा गांधी का विरोध करने से भी पीछे नहीं हटे।
वे 1886 में कांग्रेस में शामिल हुए। उन्होंने देश में स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की नीति को अपनाकर आजादी की लड़ाई के नयी धार देने का काम किया था। महान क्रांतिकारी पाल ने 1905 के बंगाल विभाजन के विरोध में अंग्रेजी हूकूमत के खिलाफ चलने वाले आंदोलन में बहुत बड़ा योगदान दिया था। इस आंदोलन को उस समय जन समुदाय का बहुत बड़े पैमाने पर व्यापक समर्थन मिला ।अंग्रेजों की औपनिवेशिकवाद नीति के खिलाफ पहले लोकप्रिय जनांदोलन को शुरू करने का श्रेय जिन नेताओं को दिया जाता है, उनमें से आप एक बड़े नेता थे ।
बिपिन चन्द्र पाल बहुत ही छोटी आयु में ही ब्रह्म समाज में शामिल हो गए थे और समाज के अन्य सदस्यों की भांति वो भी उस समय देश में व्याप्त सामाजिक बुराइयों, जातिवाद और रुढ़िवादी परंपराओं का खुलकर विरोध करने लगे थे। उन्होंने अपने जीवन में एक पत्रकार व संपादक के रूप में भी कार्य किया था। आपके द्वारा सिलहट से निकलने वाले 'परिदर्शक' नामक साप्ताहिक में कार्य आरम्भ किया गया था । साथ ही बिपिन चन्द्र पाल परिदर्शक, बंगाल पब्लिक ओपिनियन, लाहौर ट्रिब्यून, द न्यू इंडिया, द इंडिपेंडेंट इंडिया, बन्देमातरम, स्वराज, द हिन्दू रिव्यु , द डैमोक्रैट, बंगाली आदि पत्र-पत्रिकाओं के भी संपादक रहे थे।
हिन्दुस्थान समाचार/ मयंक

