रतलाम: कृष्ण की चौसठ कलाएं लोक जीवन एवं व्यवहार की आधार शिला है- शिवकांता भदौरिया
रतलाम, 27 दिसंबर (हि.स.)। डॉ.शिवमंगलसिंह सुमन स्मृति शोध संस्थान में जीवन व्यवहार एवं लोकाचार में गीता विषय पर संवाद कार्यक्रम में सम्बोधित कर रही विदुषी शिवकांता भदौरिया ने कहा कि योग कर्मसु कौशलम कार्यो को कुशलता पूर्वक करना ही जीवन व्यवहार एवं लोक जीवन में गीता है। कृष्ण सबसे बड़े मनोवैज्ञानिक है । वे अर्जुन की मन:स्थिति को जानते थे । वे अर्जुन के मोह को उनकी किंकर्तव्यविमूक्ता को दूर करना कहते थे। कृष्ण की चौसठ कलाएं लोक जीवन एवं व्यवहार की आधार शिला है । असमंजस की स्थिति में निर्णय क्षमता का सम्यक विकास ही गीता है ।
प्रमुख वक्ता के रुप में अखिल स्नेही ने अपने वक्तव्य में कहा कि गीता तो सदैव हमारे अन्त: करण में ही है । मन से फिर वह जीवन और जगत में प्रसारित होती है । हमारे मन का नित उतार चढ़ाव एवं मन मानस का आंदोलन ही गीता है । तू कौरव तू पांडव मनवा; तू रावण तू राम ! हिया के इस कुरुक्षेत्र में पल - पल होत संग्राम ! अत: हमारा ह्रदय ही कुरुक्षेत्र है ।
गीता के संदेश की आज महती आवश्यकता
विशेष रूप से उपस्थित पंडित दीपेश कटारे ने जीवन व्यवहार और गीता पर अपनी बात कहते हुए कहा कि पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण जीवन शैली विकृत हो गई है । जिससे हमारी नई पीढ़ी खोखली होती नजर आ रही है। गीता के सन्देश की आज महती आवश्यकता है। हमारे इस प्रकार के आयोजन निश्चित ही जीवन व्यवहार एवम लोकाचार में गीता को स्थापित करेंगे।
रश्मि उपाध्याय ने अपनी बात रखते हुए कहा कि मनसा वाचा कर्मणा ही गीता है। हम मन वचन कर्म से अपने कर्म के प्रति सजग और समर्पित होगे तभी जीवन व्यवहार के साथ लोकाचार में गीता को प्रसारित होता हुआ देखेंगे ।
डॉ शोभना तिवारी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गीता जीवन का गीत है। जीवन की तमाम उलझनों का सुलझाव है गीता । गीता महौषधि के साथ जीवन की संजीवनी है जो मनुष्य को कर्म के प्रति संचेतन करती है ।
शा.कला एवं विज्ञान महाविद्यालय के विद्यार्थी हार्दिक अग्रवाल ने गीता में कर्म की प्रधानता पर अपनी बात कहते हुए कहा कि गीता समर्पण एवम स्थितप्रज्ञ होने का सन्देश देती है।
आकाश अग्रवाल ने कहा कि जीवन के सारे प्रश्नों का उत्तर गीता है । संसार का सबसे बड़ा प्रश्न मंच है गीता । गीता शाश्वत सनातन ज्ञान का अपडेट वर्जन है जो पाँच हजार वर्षों पहले श्रीकृष्ण ने जीवन के नए दृष्टिकोण के साथ प्रसारित किया।श्रेयांस शर्मा ने गीता और कर्म की पूरकता पर मन के विविध विकारों की बात कही । अर्जुन की चित्त वृत्तियां प्रत्येक मनुष्य मन की है। इसलिए गीता की परम आवश्यकता है ।
कन्या महाविद्यालय की छात्राओं में प्रिया उपाध्याय ने अपने गीत खींचते हारा दूषशासन न पार पा सका ! द्रोपदी के चिर में क्या बात हो गई ! की प्रस्तुति के साथ गीता के प्रथम अध्याय की व्याख्या के साथ अष्टावक्र गीता पर अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर कृतिका परमार ,ऋ षिका उपाध्याय, भारती सिसोदिया, दीपा नागर ,सारिका नागर आदि उपस्थित रहे। संचालन डॉ. शोभना तिवारी ने किया । आभार रश्मि उपाध्याय ने माना।
हिन्दुस्थान समाचार/ शरद जोशी
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