रतलाम: नर्मदा सामवेद का प्रतीक है और सामवेद कलाओं का प्रतीक है: अनुराधा खरे
रतलाम, 26 फ़रवरी (हि.स.)। मालवांचल लोक कला संस्कृति संस्थान में नर्मदा जयंती पर नर्मदा के लोक सांस्कृतिक महत्त्व पर संगोष्ठी आयोजित की गई।
संगोष्ठी में विशेष आतिथ्य प्रदान कर रही सत्य साँई समिति की झोनल डायरेक्टर अनुराधा खरे ने नर्मदा विचार यात्रा की भाव पूर्ण प्रस्तुति की। आपने नर्मदा के उदगम अमरकंटक से लेकर ओंकारेश्वर से गतिमान प्रमुख पढ़ावों घाटों का चित्रण विचार बिंदुओं के माध्यम से किया । विचार यात्रा में आपने कहा कि नर्मदा विपरीत दिशा में बहती है। नर्मदा सामवेद का प्रतीक है और सामवेद कलाओं का प्रतीक है । सभी सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारे हुआ हैं। नर्मदा की सभ्यता एवं संस्कृति बहुत प्राचीन संस्कृति है ।
नारियों को आत्म सम्मान की शिक्षा देती है
संगोष्ठी में सारस्वत आतिथ्य प्रदान कर रही डॉ. उषा व्यास ने कहा कि नर्मदा का स्वरूप लोक कल्याणकारी स्वरूप है। सरस्वती के किनारे वेदों की ऋचाओं ने जन्म लिया वहीं नर्मदा के किनारे मार्कण्डेय से शंकराचार्य तक कई ऋषियों, सन्तों ने भारत के सनातन धर्म को पोषित किया है । नर्मदा विपरीत दिशा में बहना आत्म सम्मान का प्रतीक है । नर्मदा नारियों को आत्म सम्मान की शिक्षा देती है ।
नर्मदा चारों युगों की साक्षी है
अध्यक्षता प्रदान कर रही डॉ. मंगलेश्वरी जोशी ने कहा कि नदियाँ हमारी जीवनदायिनी है । मध्यप्रदेश की जीवन रेखा माँ नर्मदा है जो अपने किनारों पर सम्पूर्ण सांस्कृतिक वैभव को समेटे हुऐ है । नर्मदा ऋषियों की जीवन गीता है । नर्मदा चारों युगों की साक्षी है । हर हर तू नर्मदा माई हो! गीत प्रस्तुत किया ।
विशिष्ट आतिथ्य प्रदान कर रही नूतन भट्ट ने नर्मदा की महिमा पर प्रकाश डालते हुए मैया अमरकंटक वाली गीत के माध्यम से नर्मदा की महिमा को प्रस्तुत करने के साथ फागुन और नर्मदा के लोकगीत नरबदा रंग से भरी बंसी वाला से खेलेगा फाग! के माध्यम से फागुन की अगवानी में रंग गुलाल हाथ मे लेकर मंगल गावो रे! फागण आयो रे!आदि गीत प्रस्तुत किये। लक्ष्मण पाठक ने नर्मदा किनारे बसे महेश्वर मण्डलेश्वर की सुंदरता एवं वहाँ की संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए नर्मदा की महिमा को मंडित करता हुआ गीत नक्शे में भारत के अंकित एक सुंदर सा मेरा नाम ! प्रस्तुत किया ।
अखिल स्नेही ने नर्मदा के महत्व पर अपनी बात कहते हुए कहा कि नेमावर नर्मदा का नाभिकुण्ड कहा जाता है । नर्मदा के किनारों पर बसे नगर एवं ग्रामीण क्षेत्र पौराणिक आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना का केंद्र है । बातें बौराएँ आम की और फाग की धुने गीत पड़ा। पंडित मुस्तफा आरिफ ने नर्मदा के उदगम एवं विकास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नर्मदा के किनारों के सौंदर्य की छटा निराली ही है । भारत की प्रमुख नदियों में पांचवी बड़ी नदी है नर्मदा । यहाँ का कंकर कंकर शंकर है ।
डॉ. शोभना तिवारी ने कहा कि नर्मदा सांस्कृतिक चेतना की संवाहक है । नर्मदा नदी ही नहीं सम्पूर्ण संस्कृति है जिसके किनारों पर विभिन्न संस्कृतियाँ बसती है । नर्मदा की जल तरंगे कई कई पौराणिक गाथाएं गाती हैं। प्रिया उपाध्याय ने फाग के लोकगीतों में मेरो खोई गयो बाजूबन्ध आदि गीतों की सस्वर प्रस्तुति दी ।
ऋषिका उपाध्याय ने म्हारा माथा नो भंवर सरकी जाय रे! जरा धीरे हांको नी स्याम बैलगाड़ी ! लोकगीत प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का शुभारंभ उपस्थित जनों ने नर्मदा अष्टक नमामि देवी नर्मदे के समवेत पाठ से किया।
हिन्दुस्थान समाचार/ शरद जोशी
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