मप्र विस चुनाव : त्योहारी माहौल में नहीं बन पा रहा है चुनावी माहौल
रतलाम, 7 नवंबर (हि.स.)। विधानसभा चुनाव 17 नवंबर को होंगे, जिसके लिए मात्र 9 से 10 दिन बचे है, इसमें भी दो दिन पूर्व चुनाव प्रचार बंद हो जाता है और इसके पहले दो-तीन दिन त्यौहार के जिसमें किसी को फुर्सत नहीं। कहने का आशय है कि 10 तारीख से ही त्यौहार का सिलसिला शुरू हो जाएगा जो 14-15 तक चलेगा। ऐसे में चुनावी माहौल का अभी तक रंगत नहीं पकडऩा उम्मीदवारों और राजनैतिक दलों को बेचेन किए हुए है।
अभी तक रतलाम में केवल प्रधानमंत्री की ही सभा ऐसी हुई है जिससे चुनावी माहौल बना था,लेकिन बाद में किसी नेता की सभा न होने से केवल जनसंपर्क और नुक्कड़ सभाओं से ही राजनैतिक दल माहौल बनाने में लगे है, लेकिन जनता में चुनावी माहौल नहीं बन पा रहा है और ना ही चुनावी चर्चा सुनने में आ रही है।
आम मतदाताओं की माने तो चुनावी माहौल केवल पार्टी कार्यकर्ताओं तक ही सीमित है। पार्टी से जुड़ा हर छोटा-बड़ा नेता उम्मीदवार के लिए काम करने में किसी न किसी तरह से जुड़ा हुआ है। कुछ मतदाताओं का कहना है कि त्यौहार का सीजन होने से चुनावी माहौल अभी नहीं बना है। व्यापारी व्यवसाय में व्यस्त है और जनता खरीदी में।
एक व्यापारी का कहना है कि आचार संहिता लगने के कारण नगद में व्यवसाय करने वाले व्यापारियों के समक्ष माल जप्ती का खतरा, रुपये जप्त होने का खतरा बना हुआ है। इस कारण जहां पिछले साल बिक्री जोरदार हुई थी वहीं इस बार केवल 10-20 प्रतिशत ही माल का उठाव है। यही हालत सराफा बाजार की है। दुकाने सुनी पड़ी है और ग्राहकों के पते नहीं है। दूसरी और नमकीन और मिठाई के भाव आसमान पर है जो आम आदमी के बूते में नहीं है। खाद्य विभाग छापे भी डाल रहा है कि कही उन्हें नकली माल मिल जाए। नकली माल मिल रहा है या नहीं मिल रहा, लेकिन उनकी इच्छी की पूर्ति अवश्य हो रही है। लोगों का कहना है कि जितने छापे नमकीन, मिठाई अथवा अन्य दुकानों पर पड़ते है उनके जांच परिणाम महिनों तक नहीं आते। इसलिए पता नहीं पड़ता है कि माल में मिलावट थी अथवा नहीं। यह अवश्य है कि इस छापामारी से व्यापारियों में भय अवश्य पैदा हो जाता है।
इसी प्रकार त्यौहार के दिनों में अन्य विभागों द्वारा भी छापे डाले थे। इसका आशय सीधा-सीधा लगाया जा सकता है कि इसके पीछे क्या कारण है। कहना का आशय यह है कि चुनाव के इस दौर में समस्याएं अधिक है। आचार संहिता के कारण व्यापारियों में भय का माहौल है, क्योंकि वह मनमाने तरीके से व्यवसाय नहीं कर पा रहे है। निर्वाचन आयोग के निर्देशों का पालन अधिकारियों को कराना उनकी बाध्यता है, लेकिन व्यापारी इसे मानने को तैयार नहीं। सराफा बाजार में तो मतदान का बहिष्कार जैसे पोस्टर अभी तक लगे हुए है। उसका कारण भी यही है। इसलिए दुकानों पर रौनक कम बाजार में रौनक ज्यादा नजर आ रही है।
चुनाव सामग्री तैयार करने वाले एक व्यापारी ने बताया कि अभी धंधा मंदा है। चुनावी सामग्री के खरीददार न के बराबर आ रहे है। पहले नामांकन प्रक्रिया के शुरू होने के साथ ही चुनाव प्रचार सामग्री की बिक्री शुरू हो जाती थी, लेकिन अब सम्पूर्ण चुनाव सामग्री पार्टी के उम्मीदवार को पार्टी द्वारा ही प्रदाय की जाती है। कार्यकर्ता चुनाव प्रचार सामग्री के लिए खर्च करना नहीं चाहते। इसी कारण स्टीकर और अन्य सामग्री की बिक्री नहीं के बराबर है। पार्टी के झंडों की बिक्री अवश्य हो रही है।
लोगों का यह भी कहना है कि अब पहले जैसे चुनाव नहीं है। मतदाता पहले मन से चुनाव प्रचार में जुटते थे। अब चुनाव प्रचार का व्यवसायीकरण हो गया है। मार्केट और इंवेंट से जुड़ी कंपनियां कार्यकर्ता उपलब्ध करवा रही है। अब पार्टी कार्यकर्ता के बल पर नहीं बल्कि प्रबंधन के बल पर चुनाव लड़े जा रहे है। कहा तो यह भी जाता है कि पहले श्रोता स्वयं पैदल चलकर सभा सुनने जाया करते थे। अब पार्टियां अपने खर्च पर न सिर्फ श्रोता जुटाती है बल्कि उन्हें खाना भी खिलाती है।
चुनाव प्रचार में अभी भारतीय जनता पार्टी आगे है। उसकी एक बड़ी सभा आयोजित हो चुकी है, दूसरी ओर जावरा में मुख्यमंत्री की सभा ने माहौल बनाया है और रतलाम ग्रामीण के धामनोद में गुजरात के मुख्यमंत्री भुपेन्द्रभाई पटेल की सभा उत्साहवर्धन किया है। दूसरी ओर कांग्रेस की अभी एक भी सभा ऐसी नहीं हुई है जिसकी चर्चा नगर व जिले में हो। ग्रामीणक्षेत्र के बिरमावल में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह की सभा जरूर हुई है। उन्होंने रतलाम में केवल कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। यहां उनकी सभा न होना चर्चा का विषय बना हुआ है। कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि स्टार प्रचारकों के लिए संपर्क किया जा रहा है लेकिन अभी तक किसी का दौरा निर्धारित नहीं हुआ है। यदि एक-दो दिन में किसी की सभा नहीं होती है तो फिर त्यौहारी रंग में लोग घुल जाएंगे। ऐसे में क्या सभा सफल हो सकेगी यह चर्चा का विषय है? यहां यह उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के उम्मीदवार पारस सकलेचा किसी स्टार प्रचारक से कम नहीं है उनकी भाषाशैली और भाषण देने का तरीका लोगों को काफी पसंद आता है, उनकी सभा में 5-7 हजार पब्लिक उपस्थित होना सामान्य बात है। दूसरी ओर भाजपा प्रत्याशी चेतन्य काश्यप नुक्कड़ सभाओं के द्वारा अपना प्रभाव जमाने का प्रयास कर रहे है।
हिन्दुस्थान समाचार/ शरद जोशी
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