रतलाम: राम को एक नजरिए से मत देखों,राम एक है लेकिन स्वरूप अनेक है : कुलबोधि सूरीश्वर
रतलाम, 16 दिसंबर (हि.स.)। आज सारी दुनिया मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्रीराम के पीछे पागल है, क्योकि प्रभु का आचरण सुंदर है। दुनिया इंतजार कर रही है कि अयोध्या में कब रामलला विराजित होंगे। राम को एक नजरिए से मत देखों। राम एक है, लेकिन स्वरूप अनेक है। राम सफल पुत्र, सफल भाई, सफल पति, सफल मित्र और सफल शत्रु रहे। राम वो ही पूर्ण विराम यानी एंड, अब इससे आगे चरम सीमा और कोई नहीं है।
यह बात आचार्य कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. ने धानमंडी में आयोजित दो दिवसीय विशेष प्रवचन श्रेणी में पहले दिन कही। उन्होने कहा कि श्रीराम को जब वनवास हुआ, तब उन्होने पिता से कोई सवाल नहीं किया। क्योंकि जहां समर्पण होता है, वहां सिर्फ स्वीकार होता है। पिताजी के वचन खातिर राज सिंहासन छोडऩे वाले राम कहां और आजकल अपनी पत्नी खातिर सगे मां-बाप को छोडऩे वाले रावण कहां। हमारा सर्वस्व माता-पिता के चरणों में न्यौछावर करना भारतीय संस्कृति थी। इसमें कहीं वृद्धाश्रम नहीं था। आज हम घर में पशु-पक्षियों को पालते है,लेकिन मां-बाप को निकाल देते है।
आचार्य श्री ने राम वो ही पूर्ण विराम को परिभाषित करते हुए कहा कि राम गुणों से पूज्य बने और रावण अवगुणों से अतीत बने। शक्ति दोनों के पास थी, लेकिन इसमें भी फर्क था। रावण को मिली शक्ति आग में घी जैसी थी और रामचंद्रजी को मिली शक्ति दिए में घी जैसी थी। राम नाम का एक दिया हजारों साल पहले प्रकट हुआ और उस एक नाम ने आज हजारों दिए प्रकट कर दिए है। हमें श्रीराम ने जो किया,वह करना है और श्रीकृष्ण ने जो कहा है, वह करना है। उनका उपदेश और जीवन हमारे लिए अविस्मरणीय रहेगा। प्रभु ने बखूबी से अपना जीवन जिया है।
उन्होंने कहा कि आज हमें कहां बैठना इसका विवेक है लेकिन किसके पास बैठना यह पता नहीं है। आप किसके साथ बैठते हो वह महत्व की बात है। जहां बुद्धि से बुद्धि टकराती है, वहां विवाद होता है और जहां दिल से दिल मिलता है, वहां संवाद होता है, दोनों में बहुत अंतर है। संवाद की विशेषता होती है कि इसमें दोनों में से कोई भी हारता नहीं है और विवाद में दोनों हारते है। आज हमारे घर में संवाद कम और विवाद ज्यादा है। हमारे घर में संवाद की भूमिका होना चाहिए, विवाद की नहीं। हम मंदिर एवं धर्म स्थान में जाते है, तब राम की भूमिका में होते है लेकिन बाहर आते ही रावण हो जाते है।
हजारों सदिया बीत गई, लेकिन राम जी सबके दिलो में है
उन्होंने कहा कि आज हम एक-दूसरे का मोबाइल चेक करते है,क्योंकि भरोसा नहीं है लेकिन राम-सीता को एक-दूसरे पर अटूट विश्वास था। हजारों सदियां बीत गई लेकिन आज भी रामचंद्र जी सबके दिलो में है। आप स्वयं से पूछे हम राम की ओर चल रहे हैं या रावण की ओर। सफल पुत्र बनना आसान है, सफल भाई बनना मुश्किल है। रावण की मृत्यु पर भी राम रोए थे, क्योकि उसके जैसा तत्व ज्ञानी कोई नहीं था। जीवन में यदि शत्रु भी मिले, तो श्री राम जैसा चाहिए जो हमें मारने का काम न करें, हमें जिंदा रखने का काम करें। आचार्य श्री के श्री मुख से धानमंडी क्षेत्र में महासत्संग के दूसरे दिन ऐसो जनम बार बार विषय पर प्रवचन होंगे। इसके लाभार्थी मोहनबाई सौभागमल तलेरा परिवार रहेगा।
हिन्दुस्थान समाचार/ शरद जोशी
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