मेरे धर्म में, मेरे देश की प्रकृति में कुछ भी अंतिम नहीं है, भारत की अनवरत यात्रा है - विजय मनोहर
भोपाल, 24 अगस्त (हि.स.)। मध्य प्रदेश के भोपाल स्थित कुशाभाऊ ठाकरे हॉल में पाञ्चजन्य के सुशासन संवाद में विजय मनोहर तिवारी (पूर्व सूचना आयुक्त, मध्य प्रदेश) ने भारत का दिल : पुरखे और पहचान पर बात करते हुए शनिवार को कहा कि भारत के धर्म के बारे में, उसकी प्रकृति के बारे में, उसके मूल के बारे में, उसके धर्म के बारे में जब आप इन प्रश्नों के साथ उसके अतीत में उतरेंगे उसका परिचय लेने के लिए तो आप किसी भी जगह कुछ पकड़ ही नहीं पाएंगे।
वरिष्ठ पत्रकार अनिल पांडे द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में विजय मनोहर तिवारी बोले, मेरे विचार से, भारत में थोड़ी यात्रा करने और थोड़ा पढ़ने के बाद, भारत कोई स्थिर परिचय नहीं है जिसे आप एक पंक्ति या एक पैराग्राफ में सीमित कर सकें। ये बहुत युगों की बहुत लंबी यात्रा का एक सिलसिला है जो शतत है, इसलिए भारत के धर्म को हम ”सनातन” शब्द का इस्तेमाल करते हैं कि वो सनातन है प्राचीन नहीं है।
उन्होंने कहा है कि ''सनातन'' का मतलब जो कल था, आज है और आगे भी रहेगा ऐसा जीवंत सत्ता। हजारों वर्षों की भारत की यात्रा में मेरा धर्म सबसे बड़ी बात जो मुझे प्रभावित करती है, वह यह है कि वो किसी जगह पर ये दावा नहीं करता कि वह सर्वश्रेष्ठ है। तो मेरे धर्म में, मेरे देश की प्रकृति में कुछ भी अंतिम नहीं है। भारत की अनवरत यात्रा है।हजारों वर्षों की भारत की यात्रा में मेरा धर्म सबसे बड़ी बात जो मुझे प्रभावित करती है। वह यह है कि वो किसी जगह पर ये दावा नहीं करता कि वह सर्वश्रेष्ठ है। तो मेरे धर्म में, मेरे देश की प्रकृति में कुछ भी अंतिम नहीं है, भारत की अनवरत यात्रा है।
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी / मुकेश तोमर
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