भूमिहीन कृषि मजदूरों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता: ऊर्जा मंत्री तोमर
- भूमिहीन खेतिहर मजदूरों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिये ग्रामोदय में राष्ट्रीय संगोष्ठी प्रारंभ
सतना, 29 जून (हि.स.)। राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख ने चित्रकूट प्रकल्प के माध्यम से भूमिहीन कृषि श्रमिकों के लिये जो मॉडल प्रस्तुत किया है, वह आत्मनिर्भर ग्रामो के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को साकार करने के लिये आधारभूत प्रेरणास्रोत है। हमें आज के समय में भूमिहीन कृषि मजदूरों के आर्थिक सशक्तिकरण के लिये बहुआयामी प्रयास करने की आवश्यकता है।
यह उद्गार ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर ने भूमिहीन खेतिहर मजदूरों के आर्थिक सशक्तिकरण से कृषि प्रक्षेत्र को सुदृढ़ बनाने के लक्ष्य से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में शनिवार को महात्मा गॉंधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय में व्यक्त किए। दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, दीनदयाल शोध संस्थान और मध्यप्रदेश जनअभियान परिषद के एक साथ मिलकर कर रहे है। इस संगोष्ठी में देश भर के अनेक राज्यों से विद्वान विचार-विमर्श के लिये एकत्र हुये हैं।
उद्घाटन सत्र में भूमिहीन श्रमिकों के प्रश्न को संवेदनशीलता, प्रतिष्ठा, गरिमा और निजता से जोड़कर समाधान ढूंढने के लिये ‘आउट आफ बॉक्स’ विचार करने का आग्रह विशिष्ट अतिथि और पूर्व केन्द्रीय मंत्री संजय पासवान ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि भारत विरोधी ताकतें कृषक और भूमिहीन श्रमिकों में संघर्ष देखना चाहती हैं, किन्तु हमारा प्रयास समन्वय से समाधान निकालने का होना चाहिये। हमारे प्रयास केवल आर्नामेंटल नहीं इंस्ट्रूमेंटल होना चाहिये।
बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुये संगोष्ठी के सूत्रधार और सामाजिक समरसता के राष्ट्रीय संयोजक श्यामप्रकाश ने कहा कि पाश्चात्य चिन्तन ने हमारी दृष्टि कृषकों और भूमिहीन श्रमिकों में भेद करने वाली बनाने का प्रयास किया है, पर वस्तुतः यह दोनों एक ही हैं। परस्परपूरक और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिये अनिवार्य। संगोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुये श्याम प्रसाद ने बताया कि इस संगोष्ठी में देश भर के विभिन्न राज्यों से विद्वान प्रशासक और एक्टिविष्ट अपने अपने क्षेत्रों के भूमिहीन किसानों की समस्याओं और चुनौतियों के साथ साथ समाधान लेकर भी प्रस्तुत हुये हैं। जिसपर समग्रता से विचार होगा। आगे कार्य करने की रीति-नीति भी बनेगी।
ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलगुरु और उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष प्रो. भरत मिश्रा ने कहा कि महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय अपने नवाचारों के माध्यम से देश में अपनी विशेष पहचान बना रहा है। नानाजी देशमुख के संस्मरणों को साझा करते हुये डॉ. मिश्रा ने कहा कि नानाजी कहते थे कि आज की परिस्थितियों में- ’गॉंव उजाड़ हो रहे हैं और शहर आबाद।’ विकास का यह मॉडल दूरगामी रूप से ठीक नहीं हैं। इसके परिणाम समाज और राष्ट्र के हित में नहीं होगे। प्रो. मिश्रा ने कहा कि देश को नानाजी का चिंतन एक नई दृष्टि दे सकता है। उन्होंने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि राष्ट्रीय महत्व के इस विषय पर चिंतन मंथन नानाजी के विश्वविद्यालय में संपन्न हो रहा है।
उद्घाटन सत्र में विशिष्ट अतिथि दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन ने नानाजी के आत्मनिर्भर गॉंवों के संकल्प को साझा किया। दीनदयाल शोध संस्थान की ओर से भूमिहीन श्रमिकों के आर्थिक उन्नयन के लिये किये जाने वाले प्रयासों की पावन पॉइण्ट प्रस्तुति बसंत पंडित ने तथ्यात्मक रूप से की। उन्होंने त्रिस्तरीय ग्राम विकास माडल की प्रस्तुति की- जिसमें प्रथम स्तर पर उत्पादन, द्वितीय स्तर पर प्रोसेसिंग और अंतिम स्तर पर मार्केटिंग चेन के बारे में विस्तार से अनुभव और जानकारियॉं साझा कीं।
विशिष्ट अतिथि मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद के कार्यपालक निदेशक डॉ. धीरेन्द्र कुमार पाण्डेय ने परिषद को प्रदेश में स्वैच्छिकता का सबसे बड़ा संगठनात्मक तंत्र बताते हुये विविध स्तरों पर इसके स्वरूप को प्रस्तुत किया। डॉ. पाण्डेय ने परिषद की योजनाओं और उपलब्धियों पर भी विस्तार से प्रकाश डाला। मध्यप्रदेश शासन के पूर्व अपरमुख्य सचिव एवं वर्तमान में जनजातीय प्रकोष्ठ राजभवन के संयोजक दीपक खांडेकर ने कहा कि समस्या से हम सब परिचित हैं, हमें निदान की ओर बढ़ना चाहिये। इस दृष्टि से पॉलिसी निर्माण बहुत आवश्यक है। भूमिहीन श्रमिकों की आर्थिक स्थिति को कौन से उपाय बेहतर बना सकते हैं उनका सम्यक विचार इस संगोष्ठी में होना चाहिये। शिक्षा, संसाधनविहीन के जीवन में परिवर्तन लाने वाला सबसे महत्वपूर्ण घटक है। अतः भूमिहीन श्रमिकों के परिवारों के लिये स्तरीय शिक्षा और बाद में कौशल शिक्षा के अवसरों की उपलब्धता बहुत आवश्यक है।
उद्घाटन सत्र के अवसर पर 13 राज्यों के भूमिहीन श्रमिकों की सामाजिक आर्थिक स्थिति पर अध्ययन के आधार पर बनाये गये प्रतिवेदनों की पुस्तक- ‘सोशियो इकानोमिक रिपोर्ट्स ऑफ लैण्डलेस लेबर फ्राम वेरियस स्टेट्स’ और इस विषय पर चिन्तन आधारित विचार परक आलेखों का संकलन ‘वाइस आफ द लैण्डलेस’ पुस्तक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। आभार प्रदर्शन संगोष्ठी के संयोजक प्रो अमरजीत सिंह द्वारा किया गया। कार्यक्रम का आरम्भ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, दीनदयालजी और नानाजी के चित्रों पर माल्यार्पण से हुआ। संगोष्ठी में सहभागी विद्वानों द्वारा भूमिहीन कृषि श्रमिकों के बारे में समग्रता से चिन्तन कर संगोष्ठी के अंत में चित्रकूट घोषणा के नाम से एक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जायेगा, जिसमें शासन और समाज से अपेक्षाओं के साथ साथ इस दिशा में आगे बढ़ने का रोड मैप भी दिया जायेगा। संगोष्ठी में रविवार को भूमिहीन कृषि श्रमिकों के साथ विद्वतजनों का प्रत्यक्ष संपर्क और संवाद आयोजित होगा, जिसमें देश भर से आये विद्वान कृषि श्रमिकों की दशा और दिशा पर उन्हीं की जुवानी उनकी चुनौतियों और वेदनाओं से साक्षात्कार करेंगे।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/नेहा
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