दो दिवसीय भारतीय भाषा परिवार कार्यशाल सम्पन्न
उज्जैन, 24 दिसंबर (हि.स.)। भाषा विभेद के षड्यंत्र को समझना होगा। भाषा को जिस तरह विवाद का विषय बनाया जा रहा है, वह चिंताजनक है। साम्राज्यवादियों ने भारतीय भाषाओं को समाप्त करने का षड्यंत्र रचा और सफल रहे। भारत में भाषाई विभेद को नकारना चाहिए। भाषा का विचार करते समय हमें अपने सांस्कृतिक दृष्टिकोण का भी परिमार्जन करना चाहिए।
यह बात बुधवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन के माधव महाविद्यालय में भारतीय भाषा पर केंद्रित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन पर बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष प्रो. बलदेव शर्मा ने कही। उन्होने कहाकि अंग्रेजों ने हमारे दिमाग में जो जहर भरा, उसे दूर करना पड़ेगा। हम अंग्रेजी भाषा का विरोध नहीं करते, लेकिन उसका उत्थान अपनी भाषाओं की कीमत पर नहीं होना चाहिए।
इस अवसर पर साहित्यकार एवं प्राध्यापक हरीश पाठक द्वारा लिखित उपन्यास गांठे का विमोचन किया गया। वरिष्ठ पत्रकार पंकज पाठक ने डॉ. हरीश पाठक के उपन्यास गांठें की समीक्षा करते हुए कहा कि यह उपन्यास हमारे मन की कई गांठें खोलता है। डॉ. अरुण वर्मा ने शायर महमूद जकी द्वारा रचित गजलों की प्रशंसा करते हुए उज्जैन का तराना को एक श्रेष्ठ रचना निरूपित किया। उन्होंने कहा कि शायरी का मिजाज बदलने का कार्य महमूद जकी ने किया है। अध्यक्षता उच्च शिक्षा विभाग के अतिरिक्त संचालक डॉ. एचएल अनिजवाल ने की। उन्होंने कहा कि सभी भाषाएं एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। हम प्रयास करेंगे कि सेमिनार से प्राप्त निष्कर्ष प्रत्येक भाषा छात्र तक पहुंचे।
स्वागत भाषण प्राचार्य प्रो. कल्पना सिंह ने दिया। उन्होंने कहा कि भाषा विज्ञानी यहां मौजूद हैं। हमें भाषा के प्रयोग में शुद्धता रखनी चाहिए। हर भाषा की अपनी मिठास है। संगोष्ठी का प्रतिवेदन डॉ. सीमा बाला अवास्या ने प्रस्तुत किया। संचालन डॉ. जफर महमूद ने किया। आभार डॉ. नीलिमा वर्मा ने माना।
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हिन्दुस्थान समाचार / ललित ज्वेल

