करैरा कृषि उपज मंडी भ्रष्टाचार के कारण बंद, सड़क पर होती खरीद बिक्री
करैरा, 25 फरवरी (हि.स.)। कृषि उपज मंडी करैरा (शिवपुरी) में अनाज की बिक्री मंडी में न होकर कुछ महीनों से सड़क पर बैठे व्यापारियों के गोदामों और दुकानों पर की जा रही है। यहां आने वाले किसानों को उनकी फसल के उपयुक्त दाम प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं। मंडी में खरीद ना होने के कारण किसानों को मजबूर होकर अपनी फसल व्यापारियों की दुकानों और गोदाम पर बेचनी पड़ रही है। जिससे किसानों का शोषण बराबर बढ़ता ही जा रहा है।
करैरा अनुभाग में खरीफ की फसल के तहत मूंगफली का उत्पादन सर्वाधिक होता है, जो प्रदेश सहित देश के अलग-अलग भागों में पहुंचाई जाती है। मूंगफली के अलावा गेहूं, चना, धान आदि फसले बहुतायत मात्रा में होती हैं, लेकिन मण्डी में खरीद- बिक्री न होने से भ्रष्टाचार के कारण ना तो किसानों को लाभ मिल पा रहा और ना ही सरकार को, मंडी प्रबंधन की मिली भगत के चलते यहां पर प्रतिदिन सैकड़ों हज़ारों टन माल व्यापारियों द्वारा सीधे अपने गोदामों और दुकानों पर खरीद कर मंडी टैक्स दिए बगैर करैरा से बाहर देश के अन्य राज्यों में निर्यात कर दिया जाता है।जिससे सरकार को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
कृषि उपज मंडी करैरा का इतिहास यू तो स्वर्णिम रहा लेकिन कुछ वर्षों से यहां पदस्थ स्टाफ का अन्य किसी जगह स्थानांतरण ना होने से कर्मचारी और व्यापारियों की जुगल बंदी बेहतर तरीके से हो चुकी है। जिसके दुष्परिणामस्वरूप किसानों को और सरकार को निरंतर घाटा होता जा रहा है। मूंगफली के क्षेत्र में यह मंडी सबसे अच्छी मंडी मानी जाती थी जो ए और बी ग्रेड में भी रह चुकी है लेकिन आज यह है अपने हालात पर खून के आंसू बहा रही है।
खाली मंडी प्रांगण सड़क पर व्यापार
करैरा कृषि उपज मंडी के नाम पर यहां का मंडी प्रांगण खाली ही पड़ा रहता है लेकिन शहर के मुख्य मार्ग मुंगावली बाईपास से लेकर सिल्लारपुर बाईपास तक व्यापारियों की दुकान है और गोदाम पर करोड़ों का गल्ला मूंगफली ,गेहूं ,सरसों, धान आदि का क्रय- विक्रय प्रतिदिन सुबह से शाम तक आसानी से देखा जा सकता है। तो वहीं शाम होते ही इन्हीं गोदाम से बड़े-बड़े ट्रक माल लाद कर तड़ीपार होते दिखाई देते हैं। जिससे यह सिद्ध होता है कि माल पर्याप्त आता है लेकिन मंडी में नहीं लेकिन व्यापारियों के गोदामों पर।
मंडी से निराश होते किसान
किसान कड़ी मेहनत के बाद अपनी उपज बेचने के लिए मंडी में पहले पहुंच जाते हैं लेकिन जब वहां व्यापारी माल खरीदने आते नहीं तो अंततः हार थक कर और निराश होकर किसान मंडी से बाहर निकलकर सड़क पर बैठे व्यापारियों को ओने-पोने दामों में अपनी फसल बेचने को मजबूर हो जाता है। जिसका घाटा किसान के साथ-साथ सरकार को भी हो रहा है।
शिकायत पर गौर नहीं करता मंडी प्रशासन
किसानों का कहना है कि मंडी में तमाम समस्याएं व्याप्त हैं। जिसमें किसानों को भोजन- पानी यहां तक की बैठने तक की उचित व्यवस्था न होने से किसान खून के आंसू रोने को मजबूर है। वहीं तुलावटी और हम्माल भी रोजगार न मिलने से परेशान हैं।
मंडी कर्मचारी नहीं आते समय पर
किसानों का कहना है कि मंडी कार्यालय पदस्थ मंडी सचिव सहित अन्य कर्मचारी भी समय पर मंडी नहीं आते। वहीं सचिव तो माह में कुछ दिन ही खाना पूर्ति करने के लिए मंडी आते हैं जबकि वेतन पूरे माह का प्राप्त करते हैं।
क्या कहते हैं मण्डी सचिव
मण्डी सचिव विजय कुमार मीणा का कहना है कि मेरे कार्यभार संभालने के बाद से मण्डी पहले से प्लस में आई है। हमारे यहां सौदा पत्रक के माध्यम से खरीदी व टैक्स प्राप्त हो रहा है, जबकी मण्डी में खरीद बिक्री के सवाल को वह सफाई से टाल गए।
लेकिन यहां विचार करने वाली बात यह है कि यदि सिर्फ सौदा पत्रक के द्वारा मण्डी की आय प्लस में जा सकती है तो फिर यदि मण्डी में नियमित रूप से खरीद बिक्री शुरू हो तो फिर कितने फायदे में पहुंच सकती है। इसलिए यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि मंडी कार्यालय में पदस्थ कर्मचारी ही मण्डी प्रांगण में खरीद बिक्री नहीं होने देना चाहते। जो घोर भ्रष्टाचार और गहन जांच की ओर संकेत करता है।
हिन्दुस्थान समाचार/युगल किशोर शर्मा /नेहा
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