जनजातीय वैद्यों का ज्ञान, सांस्कृतिक विरासत का है अनमोल हिस्साः केंद्रीय मंत्री उईके
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में पांच दिवसीय जनजातीय वैद्य शिविर एवं कार्यशाला का शुभारंभ
भोपाल, 21 सितंबर (हि.स.)। केंद्रीय जनजातीय कार्य राज्य मंत्री दुर्गादास उईके ने शनिवार को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल में पांच दिवसीय जनजातीय वैद्य शिविर एवं कार्यशाला का शुभारंभ किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हमारा देश प्राचीन काल से ही अपने अद्वितीय चिकित्सा ज्ञान और परम्पराओं के लिए विश्व मंच पर प्रसिद्ध रहा है। जनजातीय समाज ने सदियों से प्रकृति के साथ एकात्म जीवन जीते हुए औषधीय पौधों, जड़ी बूटियों और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का कुशलता से उपयोग कर पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों का विकास किया है। ये पद्धतियाँ न केवल शारीरिक रोगो के उपचार में सहायक है बल्कि मानसिक और आत्मिक संतुलन को बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाती हैं।
केन्द्रीय मंत्री उईके ने कहा कि हमारे जनजातीय वैद्यों के पास जो ज्ञान है, वह केवल उपचार का साधन नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की सांस्कृतिक विरासत का अनमोल हिस्सा है। मानव संग्रहालय न केवल इन परंपरागत औषधियों और उपचार विधियों का दस्तावेजीकरण कर रहा है, बल्कि उनके वैज्ञानिक अनुसंधान को भी बढ़ावा दे रहा है, ताकि जनमानस को इनसे अधिकतम लाभ मिल सके।
सम्मेलन में केंद्रीय राज्य मंत्री उईके ने पद्मश्री से सम्मानित विभूतियों यानु लेगो, लक्ष्मी कुट्टी एवं अर्जुन सिंह धुर्वे का शॉल एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया। उईके ने मानव संग्रहालय परिसर में एक पेड़ मां के नाम अभियान में तटीय ग्राम प्रदर्शनी में नारियल के पेड़ भी लगाए। उन्होंने ने सभी वैद्यों के स्टॉल का अवलोकन कर औषधियों के बारे मे जानकारी भी प्राप्त की। असम एवं मिज़ोरम के जनजातीय समाज ने केंद्रीय राज्य मंत्री उइके का दुशाला प्रदान कर सम्मान भी किया। इस अवसर पर शोध सारांश की पुस्तिका का विमोचन भी किया गया। प्रदेश के डिंडोरी एवं मंडला जिले से आए जनजातीय कलाकारों ने गेंडी नृत्य और गुदुमबाजा नृत्य की प्रस्तुति दी। विभिन्न सत्रों में शोधार्थियों द्वारा अपने शोध पत्र भी प्रस्तुत किए गए।
निदेशक जनजातीय शोध संस्थान अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार ने कहा कि प्रकृति हमको सिखाती है। जनजातीय ज्ञान को लिपिबद्ध करने की आवश्यकता है।
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एव संचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलगुरू डॉ. के.जी. सुरेश ने कहा कि यह सम्मेलन न केवल हमारे देश की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के पुनर्जीवन का प्रतीक है, बल्कि हमारे जनजातीय समाज की समृद्ध और गहन सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
संग्रहालय के निदेशक प्रो. (डॉ) अमिताभ पांडे ने जनजातीय समाज के योगदान पर प्रकाश डालते हुए जनजातीय समाज की इन धरोहरों को संग्रहित करने की बात कही। सम्मेलन में आयोजक एवं सहयोगी संस्थाओं के पदाधिकारीगण सहित विभिन्न क्षेत्रों से आए जनजातीय वैद्य एवं शोधार्थी उपस्थित थे।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर
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