व्रत, पूजन सब तुम्हारी खातिर अखण्ड रहे मेरा सौभाग्य
दतिया, 1 नवम्बर (हि.स.)। मांग में सुहाग का प्रतीक सिंदूर रंग-बिरंगी चूडियों से सजी हाथ की कलाईयां मेंहदी से रचे सुरख लाल हाथ पैरो में अलीता, महावर विभिन्न प्रकार से सोलह श्रृंगार से सजी-धजी सुहागिन स्त्रियों के रूप सौन्दर्य को देखते हुए चांद भी सरमा गया। जी - हां अंचल सुहाग और पति के सुखद कामना को लेकर करवा चौथ पर लाल सुरख जोड़े से लिपटी सुहागिन स्त्रियां सूर्य अस्त के बाद छत पर चढकर जब चांद निकलने का वेसब्री से इंतजार कर रहीं थीं। तब उनका रूप सौन्दर्य देखते ही बन रहा था।
विदित रहे कि प्राचीन समय से चली आ रही धार्मिक और सामाजिक परंपरा के अनुसार बुधवार को दतिया शहर सहित सम्पूर्ण अंचल में सुहागिनों का खास पर्व करवा चौथ पारंपरिक रीति रिवाज के साथ धूमधाम के साथ मनाया गया।
यह बताना प्रासंगिक होगा कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की चन्द्रोयोदय व्यापनी चतुर्थी को हर साल मनाया जाने वाला करवा चौथ का पर्व सुहागिन स्त्रियों अनमोल पर्व है। इस व्रत का पालन करते हुए सुहागिन स्त्रियां अखण्ड सुहाग की कामना का मन, वचन, कर्म से अपने पति देव के प्रति पूर्ण समर्पित रहने का संकल्प लेती हैं। यही कारण था कि भारतीय नारी के आदर्षों और संस्कृति को सहेज कर रखने वाले करवाचौथ पर्व को लेकर आज सुहागिन स्त्रियों में विशेषकर नई नवेली दुल्हनों में खास उत्साह देखने को मिला। इस करवाचौथ व्रत का कठोर पालन करने वाली सुहागिनें पिछले कई दिनों से तैयारियों में जुटी हुईं थीं।
पूजा अर्चना करने से पूर्व चावल और हल्दी पीसकर दीवाल पर करवा चैथ का चित्र बनाया जाता है और इस चित्र को वर का प्रतीक कहा जाता है। इसके अलावा सुहाग के अनेक रूपों की कल्पना जैसे नाईन, सात भाइ, एक बहिन, सूरज-चांद, पार्वती, गाय, मेंहदी, कहार आदि के चित्र दीवाल पर बनाये जाते हैं। तत्पष्चात मिट्टी, तवा, चांदी, शक्कर आदि से बने करवा में गेहूं भरकर ऊपर रखे ढक्कन, मिठाई, फल, वस्त्र जैसे एवं सुहाग सामग्री रखी गई तथा मिट्टी के ढेर से मोली लपेटकर गणपतिजी का चित्र बनाया गया। इसके बाद स्त्रियों ने आपस में सात बार करवा बदलने के बाद भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान कार्तिकेय, माता महालक्ष्मी का विधिवत पूजन किया। इसके बाद षुरू हुआ नीले गगन में चांद निकलने का बेसब्री भरा इंतजार चांद रात 8:30 बजे के बाद निकला।
चांद निकलते ही सुहागिन महिलाऐं पूजन सामग्री से सजी थाली और छलनी लेकर पूजा अर्चना में जुट गईं। विधिवत पूजन उपरांत सुहागिनों ने बड़े उत्साह से भगवान चन्द्र देव को अर्घ दिया और छलनी की ओर से चांद को निहारते हुए सदा सुहागिन बने रहने के लिए पति के चेहरे को भी निहारा और आरती उतारकर चरण स्पर्ष कर आशीर्वाद लिया। तत्पश्चात पति के हाथों जल ग्रहणकर व्रत का पालन किया। इसके बाद सुहागिनों द्वारा पूजन सामग्री साड़ी सुहाग की वस्तुएं अपनी सासो मां, नन्द आदि को भेंट स्वरूप प्रदान किया।
हिन्दुस्थान समाचार/संतोष/मुकेश
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